दोस्तों, कितनी बार ऐसा होता है कि हमें कोई कविता, शे'र या ग़ज़ल बहुत ज़ियादा पसंद आ जाता हैं। हम कुछ पल ठहर कर सोच में पड़ जाते हैं कि क्या ख़ूब लिखा है। आपको कुछ ऐसा ही एहसास देने के लिए मैं लाया हूँ 100+ Best Heart Touching Shayari in Hindi पढ़के आपका दिल ख़ुश हो जाएगा। इस collection में ज़ियादातर शे'र हैं और चंद ग़ज़लें भी हैं जो आपको ज़रूर पसंद आएँगी।
दोस्तों एक ज़रूरी बात कहूँगा कि यहाँ प्रस्तुत हर शे'र और ग़ज़ल मेरी अपनी कही हुई है। मैं पिछले कई सालों से लिख रहा हूँ और जितना लिखा है उनमें से ही चुनकर आपके लिए Best Heart Touching Shayari in Hindi का कलेक्शन लाया हूँ। तो चलिए अब शुरू करते हैं।
100+ Best Heart Touching Shayari in Hindi
एक दिन ये किताब लौटानी भी है
और छलक के गिर गया इक आँसू पिछली रात का
ताकि उसमें बे-झिझक "तुम्हारा अपना" लिख सकूँ
नफ़रत भी उसने मुझसे की तो की बड़ी तहज़ीब से
है ख़फ़ा मुझ से फ़ना उसको मनाना भी तो है
ऐसे रोना है अब कि शाद लगूँ
वरना इक ही तरकश में थे रखे हुए हम सब
और लोग कहते हैं कि ख़ाली हाथ जाते हैं सभी
इंसाँ थक के बैठे तब भी बढ़ता रहता है आगे ही
अपने हर दुख लय में लाने पड़ते हैं
निगल रहा है मलाल जितना
ज़ोम उसका मेरे एहसानों से हारा आख़िर
रो भी ले कि निकल आए अब लाश भी मेरी
कि डर रहा हूँ अपनाने से अब तन्हाई भी
मुझको इक ग़लती की भी रिआयत न थी
कि भूल जाता हूँ पढ़ा हुआ मैं शब का सुब्ह तक
अपने रस्ते का आख़िरी पत्थर था मैं
दिन ऐसे बदले कि अब उम्मीद तक भी नहीं
इक इल्ज़ाम ने ही तय कर दी क़ीमत मेरी
वैसे भी धूप में बारिश कम ही होती है
इसकी ख़ातिर इक तारे ने ख़ुद-कुशी कर ली
कि हँस भी ले कोई तो भी ये नहीं टूटता
अब्र-ए-मुहाल है ग़मों का पस्त होना याँ
दूरियाँ हैं तो बहुत पर लगता है इक साथ ही हैं
तब मिरे हाथों में क़लम आई
ज़िन्दगी मेरे हिस्से में तू भी
आई लेकिन बहुत ही कम आई
उस शख़्स ने ही तो हमें तन्हा किया
यादें पलकों पर पत्थर रख देती हैं
सबको घुलता देख मैं और भी अकेला हो गया
ग़रीबी में तो पलकें भी घरों से भारी होती हैं
आइने में नहीं दिखता मेरा बदन
न जीता शख़्स घर जा पाता है न हारा शख़्स ही
दौड़ निकला घर से इक दिन गिरता तारा देखकर
क्या मलाल मुझ को अब कल यहाँ न होने का
हाँ मैं भी तमाशबीन भीड़ का ही हिस्सा था
मैं तो कर लूँगा ये दरिया पार बस डर आपका है
अब क्योंकि तू मुझसे जुदा होता नहीं
दिल में ग़मों का दाख़िला होता नहीं
दिल को तसल्ली कैसे दें तू ही बता
अब ज़र्द पत्ता तो हरा होता नहीं
सामने उनके सर झुकाएँ हम
वो हैं तूफ़ान और हवाएँ हम
तन्हा रातों में अश्क बहते रहे
तुमको देते रहे सदाएँ हम
और रोज़ मुझे थोड़ा गँवाते थे पिता जी
क्यों लबों पे तिरी 'नहीं' 'नहीं' है
तुझको क्या मुझपे भी यकीं नहीं है
देखते हो हज़ार बार उसे
और कहते हो वो हसीं नहीं है
तुम्हीं तो इश्क़ के दरिया में लाए
तुम्हीं थे आसरा पर तुम न आए
ख़याल आया जब आज तेरा
हुए साफ़ कुछ दिल के जाले
गर्मी में तो पेड़ों से यारी रहती है
सर्दी में क्यों हाथों में आरी रहती है
ये बात मेरे सर पे तारी रहती है
चिंता मुझे हर पल तुम्हारी रहती है
तेरी अँधेरी शब का सहारा न बन सका
मैं भी वो जुगनू था जो सितारा न बन सका
जंग में बच न पाया सर मेरा
ख़ुल्द में बन गया है घर मेरा
उसने आँखें टिका के क्या देखीं
हो गया दिल इधर-उधर मेरा
गर ज़ब्त हों आँसू तो दिल बह जाएगा
रो लेने से ये हादसा होता नहीं
ख़्वाब में आए थे मेरे माँ-बाप
पूछे दुख तेरे लेके जाएँ हम?
कर न पातीं वसूली यादें तेरी
वो तो दिल का कोई मकीं नहीं है
मेरी नज़रें तुझ पर ही होंगी
कहीं तू न आँखें चुरा ले
झुक जाए माँ की शर्म से गर्दन जो लोगों में
लहजा कभी भी ऐसा हमारा न बन सका
आज तक मिल सके न ये दोनों
बाप का कंधा और सर मेरा
तुम्हारे बिन मेरी कोई ताबानी ही नहीं है
मैं चाँद हूँ और मेरे ही आफ़ताब हो तुम
एक दूजे से कितनी नफ़रत है
झूठ है ये कि दुनिया जन्नत है
तजरबे ऐसे नहीं मिलते तबर्रा में
तजरबे जो इश्क़ के दौरान होते हैं
ज़िन्दगी ने मेरे साथ क्या क्या किया
खोल दीं मेरी आँखें ये अच्छा किया
ख़्वाहिशों के लबों को सी लेंगे
हम भी तेरे बग़ैर जी लेंगे
आई नज़दीक जब मेरी मंज़िल तो फिर
रास्ते से मिरे हट गया रास्ता
साँसों की इस खिड़की पे तू पर्दा न कर
मैं मर ही जाऊँगा मुझे तन्हा न कर
तेरा दिल दरिया है तो उसमें मैं अपनी
दिल की कश्ती को डुबाना चाहता हूँ
अपना लहजा नहीं बदल सकते
दोस्त! इसको ग़ुरूर कहते हैं
मानो मिल आए अजनबी से हम
जब मिले आज ज़िन्दगी से हम
ज़िन्दगी ले गई जिधर मुझ को
बस कराती रही सफ़र मुझ को
ऐ नज़र को उतारने वाले
लग गई आपकी नज़र मुझ को
जाने मंज़िल हमें मिलेगी कब
एक रस्ते पे कब से चल रहे हैं
इक ग़ज़ल का शजर लगाना है
मेरे अशआर छत पे जल रहे हैं
ज़ख़्म मेरा नया नहीं लगता
और तू इसकी दवा नहीं लगता
ज़िन्दगी इक तमाशा ही तो है
अब ये मंज़र बुरा नहीं लगता
उसके साए से भी मैं लिपट जाता हूँ
जब कभी भी दिए को जलाती है माँ
ये कैसे मानूँ मैं कि वो आएगा लौट कर
कोई दिलासा भी तो दिला कर नहीं गया
अरमानों के टूटे हुए दो पर मिले
मेरी इन आँखों में कई पत्थर मिले
इस तन्हा दिल को तू मिला कुछ इस तरह
मानो नदी पे तैरता अख़्तर मिले
इश्क़ की सफ़ में ढूँढ़ते हैं मुझे
मैं नहीं आता हूँ किसी के बाद
ख़ुल्द में ढूँढ़कर निकालूँगा
मुझको धरती पे तू अगर न मिला
उसी दरिया में डूबा था मैं जहाँ
मुझे राख़ करके बहाया गया
पहले घटा को छाने दो
पानी ज़रा सा आने दो
जाएँगे फिर कभी वहाँ
कुछ दिन उसे बुलाने दो
चढ़ी है जब से मेरे माथे पर वो कर्ज़ की ख़िज़ाँ
यूँ लगता है कि कोई पत्ता होठों से उतर गया
याद आख़िर मिरी आई तुम को
रास आई न तन्हाई तुम को
साँसें भी अंतिम निशानी होती हैं ये माना तब
जब हमें उसका फुलाया एक गुब्बारा मिला
उजाला अपने हाथों से मुझे भी दूर कर देता
अगर मैं पीठ पीछे उसके कुछ बे-नूर कर देता
रूबरू होना उस ख़त से तुम
लौट के आना जन्नत से तुम
होगे गर मेरी क़िस्मत में तो
होगे आधा ज़रूरत से तुम
जिसको समझता था मैं कभी वक़्त की रज़ा
वो मौत ज़िन्दगी के इशारों पे आई है
निकल कर मेरी जेब से रूह भी
गिरी जब मुझे नीचे झुकना पड़ा
बिन बाली पहने बच्ची के वो कान देखिए
लाचारी, मुफ़लिसी के भी गुलदान देखिए
होली के रंग सा हूँ उसकी हथेली पर मैं
डरा हूँ वक़्त कभी तो मिटा कर जाएगा
घरौंदे बच्चों के ख़ातिर बनाता हूँ
मैं मिट्टी को भी मिट्टी से सजाता हूँ
धूप ही ज़िन्दगी है शजर कहते हैं
छाँव धोखा है इससे बचा कीजिए
कि जाते जाते हर इक जंग कह जाती है लश्कर से
कि क्यों तलवारों को तुमने मियानों में नहीं रक्खा
ये पल इक पल और भी ख़ूबसूरत हो सकता है क्या
उजाला भी इस तमस में किसी दिन खो सकता है क्या
जंग में बच न पाया सर मेरा
ख़ुल्द में बन गया है घर मेरा
तेरी अँधेरी शब का सहारा न बन सका
मैं भी वो जुगनू था जो सितारा न बन सका
ज़िन्दगी आग का खेल है
खेल कर आप जल जाइए
चाँदनी मुझसे लिपट जाए तो क्या होगा
दुनिया दो गज़ में सिमट जाए तो क्या होगा
आज मेरा आशियाँ बाज़ार हो जाए तो
इक असासा रखना भी दुश्वार हो जाए तो
नेक-नीयत रखना अच्छी बात है हाँ लेकिन
गर यही ख़ुद के लिए तलवार हो जाए तो
हो हसीन कितनी तुम जानते हैं हम लेकिन
कहना हो हमें जब भी बस तभी नहीं कहते
हो गया दिल इधर-उधर मेरा
लहजा कभी भी ऐसा हमारा न बन सका
सब कुछ कितना अच्छा होता
ख़ुशियों का गर पहरा होता
शब चूम लिया करती मुझको
मैं गर शबनम जैसा होता
ख़्वाब में आते थे ख़ुदा की तरह
रौशनी देते थे दिया की तरह
सोचता था मैं क्या ये सोचते थे
है कठिन सोचना पिता की तरह
जिस्म पर हर ज़ख़्म का रुतबा तो मरहम तय करेगा
कितना हँसना है हमें ये बात भी ग़म तय करेगा
मिट गई ख़लिश न जाने कब मुझे नहीं पता
काँटों की लगी है क्यों तलब मुझे नहीं पता
मेरा हर झरोखा चुन दिया गया अगर तो फिर
मुझको कौन बेचता है शब मुझे नहीं पता
ख़ुश बहुत है मेरा हमसफ़र हर एक मोड़ पर
ऐसा मुझसे क्या हुआ ग़ज़ब मुझे नहीं पता
पाँव बेड़ियों में ज़्यादा तेज़ चलने लग गए
कुछ न कुछ ज़रूर है सबब मुझे नहीं पता
आँखें नाक कान गाल तो हसीन थे बहुत
क्या थे इतने ही हसीन लब मुझे नहीं पता
आसमाँ भी पार कर लिया अब उनकी साँसों ने
उनकी यादें थक के बैठीं कब मुझे नहीं पता
हर कोई इतना मुकम्मल क्यों है
मुझ में इस बात से हलचल क्यों है
अपनी दरवाज़े सी पलकें खोलो
उस दरीचे पे वो काजल क्यों है
अब नहीं रोता हूँ रातों में तो
खाट के पास ये दलदल क्यों है
यार मैं अक्ल का मारा हूँ ना
बोलो फिर दिल मिरा पागल क्यों है
माँ ने रोटी को दिया है तरजीह
पूछो मत हाथों में पायल क्यों है
आग इक जेब में रक्खे हो फिर
दूसरी जेब में बादल क्यों है
क्या सच में वो लाचार था
या फिर कोई ग़द्दार था
महफूज़ था मैं लहरों में
जो डूबा वो उस पार था
घाटे में लगता था नफ़ा
ऐसा भी इक बाज़ार था
सच का पता है ही नहीं
और हाथ में अख़बार था
बरसाए मुझपर कितने फूल
मरना भी क्या त्यौहार था
रस्ते ही दुश्मन थे मेरे
पत्थर मिरा जब यार था
खोटी हैं नज़रें उसकी जो
आँखों का दावेदार था
तुझसे तेरा क़मर ख़फ़ा है, है ना?
तुझको भी कुछ न कुछ हुआ है, है ना?
कोई तो है जो उसको भा रहा है
तीर सा दिल पे कुछ लगा है, है ना?
खोलता क्या है राज़ उसके तू
इश्क़ तुझको भी तो हुआ है, है ना?
मिट्टी हैरत से देखे जा रही है
आसमाँ जेब से गिरा है, है ना?
तेरे होने से है सुकून बहुत
बोल तू ही मिरा ख़ुदा है, है ना?
एक तितली की तरह आती हो तुम
गुल मिरे होठों पे खिला है, है ना?
मुझे पता नहीं मिरा ज़मीर कितने दर गया
कोई बताए क्यों मैं अपनी बातों से मुकर गया
मैं खो गया था ऊँची सी हवेलियों की चाह में
कि खोजने मुझे मिरा ही घर हज़ारों घर गया
वो अश्म बावला था, नासमझ था और सनकी भी
सुना है ठोकरों के इंतज़ार में ही मर गया
किसी की आँधियों से कोई दुश्मनी नहीं है पर
हवाओं का बदलता लहजा जो भी देखा डर गया
बग़ीचे सी ज़ुबाँ पे एक गुल सा लहजा बोया था
रुकी जहाँ से बातें, उसके आगे तक असर गया
चढ़ी है जब से मेरे माथे पर वो कर्ज़ की ख़िज़ाँ
यूँ लगता है कि कोई पत्ता होठों से उतर गया
तुमने ख़ुद को मेरा हमदम कर दिया
मैंने भी ग़म करना अब कम कर दिया
गूँज क्यों है एक सहरा की यहाँ
उसने किसकी आँखों को नम कर दिया
मैं हवा की तरह उड़ता था कभी
छू के किसने मुझको मौसम कर दिया
रोज़ दिल के फूलों पे जमती रही
तुझको इन यादों ने शबनम कर दिया
देख कर ये ज़ख़्म मेरा लोगों ने
और भी महँगा अपना मरहम कर दिया
जो शोहरत से जल जाते हैं
तन्हाई में ढल जाते हैं
पत्थर से भी ठोस थे जो लोग
जाने कैसे पिघल जाते हैं
तखरी पे मत तोलो इनको
इंसाँ पल में बदल जाते हैं
इतना ऊब गए ख़र्चों से
जन्नत भी पैदल जाते हैं
ख़ामोशी कैसे ठहरेगी
याँ तूफ़ान फिसल जाते हैं
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