2212 2212 2212 बह्र पर ग़ज़ल
अब क्योंकि तू मुझसे जुदा होता नहीं
दिल में ग़मों का दाख़िला होता नहीं
दिल को तसल्ली कैसे दें तू ही बता
अब ज़र्द पत्ता तो हरा होता नहीं
गर ज़ब्त हों आँसू तो दिल बह सकता है
रो लेने से ये हादसा होता नहीं
इक और नज़रिया तो मिला रिश्ते का आज
सो हिज्र इतना भी बुरा होता नहीं
मेरा नहीं होता है जो है आपका
जो मेरा है वो आपका होता नहीं
ऐसा भी कोई फ़लसफ़ा हो सकता है
जो जानना हो मानना होता नहीं
‘अबतर’ मैं डरता ही रहा इक उम्र तक
और डरने का अब हौसला होता नहीं
- अच्युतम यादव 'अबतर'
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