अंकित मौर्या एक ऐसे युवा शायर हैं जिनकी शायरी में दिल की सच्चाई और लफ़्ज़ों की नरमी साफ़ झलकती है। उनकी ग़ज़लों में मोहब्बत की मासूमियत भी है और ज़िंदगी के फ़लसफ़े भी। वे परंपरागत उर्दू ग़ज़ल की तहज़ीब को आज के दौर की सोच से जोड़ते हैं — यही वजह है कि उनके अशआर न सिर्फ़ पढ़े जाते हैं, बल्कि महसूस भी किए जाते हैं।
अगर आप भी उन शेरों की तलाश में हैं जो सीधे दिल पर असर करें, तो Ankit Maurya Shayari Collection आपके लिए एक ख़ास तोहफ़ा साबित हो सकता है। तो आइए पहले हम अंकित मौर्या की ग़ज़लें देखते हैं।
अंकित मौर्या की ग़ज़लें
1
तू छोड़ कर गया है मुझे ऐसे हाल में
दिन रात उलझा रहता हूँ तेरे ख़याल में
ये ठीक बात है कि मैं वैसा नहीं रहा
तू भी बदल गया है बहुत तीन साल में
दुनिया में आ के फँस गया हूँ इस तरह से मैं
मछली फँसी हुई हो कोई जैसे जाल में
लहजा ही थोड़ा तल्ख़ है दुनिया के सामने
वैसे तो ठीक-ठाक हूँ मैं बोल-चाल में
जिन को था फूल तोड़ना वो तोड़ लिए गए
माली लगा ही रह गया बस देख-भाल में
– अंकित मौर्या
2
जाते वक़्त तुझे तो हम हँसता देखेंगे
फिर आईने में ख़ुद का रोना देखेंगे
एक दफ़ा हम ने तुम को जी भर देखा था
हम बा'द तुम्हारे अब क्या दुनिया देखेंगे
आप ने मेरी आँखों में दरिया देखा है
थोड़ा रुक जाएँ तो फिर सहरा देखेंगे
उन आँखों में और किसी का चेहरा देखा
हम इस से ज़ियादा क्या और बुरा देखेंगे
कौन निभाता है ता-उम्र किसी से रिश्ता
फिर तुझ को भी हम हैरत से क्या देखेंगे
– अंकित मौर्या
3
बाँट डाले ऐसे हम ने दिल के टुकड़े काट कर
जन्म-दिन पे बाँटते हैं केक जैसे काट कर
इक अँगूठी ले न पाएँ इतने में उस के लिए
जोड़ रक्खे थे जो पैसे जेब ख़र्चे काट कर
हम नदी के दो किनारे मिलना तो मुमकिन नहीं
पर मिलेंगे एक दिन दोनों किनारे काट कर
हौसलों पे इन परिंदों के न करना शक कभी
है रिहा होना जिन्हें पिंजरा परों से काट कर
इश्क़ जिस में ना बिछड़ने का ज़रा भी डर रहे
खेलना है खेल पर साँपों के खाने काट कर
ज़िंदगी से ऐसे काटा सीन उस ने इश्क़ का
देखता है कोई जैसे फ़िल्म गाने काट कर
– अंकित मौर्या
4
जो न आएगा मेरी चौखट पर
दिल मचलता है उसकी आहट पर
जिस्म अपना उतार कर कोई
मिलने आता था दिल के पनघट पर
भरी महफ़िल में अपना कहता है
दिल भी आया तो ऐसे मुँह-फट पर
ऐसे बिस्तर पे रात काटी है
नींद सोई थी एक करवट पर
रौशनी मेरी कम नहीं होगी
चंद तारों की टिमटिमाहट पर
मिलने आना अगर तो दुनिया को
छोड़ देना हमारी चौखट पर
– अंकित मौर्या
5
मुझसे तो इसी बात पे झगड़ा है किसी का
ये याद रखा कर कि तू अपना है किसी का
मंजिल बता के जिसको यूं इतरा रहा है तू
क्या भूल गया है कि वो रस्ता है किसी का
लायक नहीं इसके इसे सर पे न बिठाओ
दुनिया जिसे कहते हो तमाशा है किसी का
मैं नाम नहीं लूंगा पर इतना तो कहूंगा
सांसों पे मेरे जिस्म पे कब्ज़ा है किसी का
इक लड़की है दुनिया में जो दुनिया है किसी की
इक लड़का है दुनिया में जो अपना है किसी का
दुनिया कि जिसे पा के भी ठुकरा रहा हूं मैं
पाना उसे तो आज भी सपना है किसी का
– अंकित मौर्या
6
कितना मुश्किल है ये रस्ता नहीं देखा जाता
साथ चलते हुए इतना नहीं देखा जाता
दरमियां आती है ये कहते हुए दुनिया दोस्त
ऐ दीवाने तेरा हंसना नहीं देखा जाता
ग़म सँभाले हुए मैं ऐसी जगह हूं जहाँ पर
हो अगर रोना तो कांधा नहीं देखा जाता
हर घड़ी कर रही नज़दीक बिछड़ने के मुझे
घड़ी मुझसे तेरा चलना नहीं देखा जाता
सच है इक रोज़ में दुनिया नहीं खुलती है और
रोज़ मुझसे ये तमाशा नहीं देखा जाता
मैं उसे रोता हुआ देखूं तो रो देता हूं
मुझसे इक शख़्स का रोना नहीं देखा जाता
सबको भाते हैं मोहब्बत के ये नग़में लेकिन
इश्क़ करता हुआ बच्चा नहीं देखा जाता
लड़कियां हँसते हुए चुभती हैं इस दुनिया को
और रोता हुआ लड़का नहीं देखा जाता
– अंकित मौर्या
7
बुरा है हाल इस दर्जा हमारा
कोई भी शख़्स नईं होता हमारा
हमारे दरमियाँ दुनिया खड़ी है
बहुत मुश्किल है जाँ मिलना हमारा
रखी थी ले के कॉपी हम ने उस की
ख़ुशी से झूम उठा बस्ता हमारा
तो क्या ये बात भी कहनी पड़ेगी
तेरे बिन जी नहीं लगता हमारा
तुम्हें तो सच में ऐसा लगता है ना
कभी भी दिल नहीं दुखता हमारा
– अंकित मौर्या
8
कैसे बताऊँ अब मुझे क्या क्या नहीं पसंद
बस तू पसंद है कोई तुझ सा नहीं पसंद
नींदें उड़ा गए जो इन आँखों के ख़्वाब थे
ऐसा नहीं कि अब मुझे सोना नहीं पसंद
लौटा के जब से आएँ हैं कॉपी वो उस की हम
तब से हमें तो अपना ही बस्ता नहीं पसंद
पहले बनाया उस ने तो अपनी तरह मुझे
कहता है अब कि मैं उसे ऐसा नहीं पसंद
जिस्मों के रस्ते आ गए हैं दिल तलक तो हम
आसाँ बहुत है पर हमें रस्ता नहीं पसंद
फिर आप ऐसे दरिया पे ला'नत ही भेजिए
मेरी तरह का गर उसे प्यासा नहीं पसंद
– अंकित मौर्या
9
पूछते हो इश्क़ क्या है
इक ज़रूरी हादिसा है
है दुआ बस लब पे सब के
और दिल में बद-दुआ' है
बिन तुम्हारे मेरा जीवन
एक अधूरा वाक़िआ' है
ये मिली तो जश्न कैसा
ज़िंदगी तो इक सज़ा है
कुछ नहीं बदला है इस में
साल ये भी ग़म-ज़दा है
आठ सौ दिन बाद उस को
इश्क़ धोका लग रहा है
हँसने वाले रो रहे हैं
जाने वाला जा चुका है
हाथ में रक्खी है सिगरेट
जलने को तो दिल जला है
– अंकित मौर्या
10
ये कभी सोचा नहीं था आप भी ऐसा करेंगे
जब बिछड़ जाएँगे हम से तो हमें रुस्वा करेंगे
बोल तो देते हैं ग़ुस्से में कि तुम जाओ यहाँ से
बाद में फिर सोचते हैं ये हुआ तो क्या करेंगे
उस के झगड़े पर कभी गर डाँट दूँ तो बोलता है
आप से है प्यार तो फिर किस से हम झगड़ा करेंगे
एक चेहरा जो कि हम से ना कभी भी बन सका है
एक चेहरा वो कि जिस को उम्र भर सोचा करेंगे
तेरी जानिब जब रहेंगी महफ़िलों की सब निगाहें
अपनी आँखों से तिरे चेहरे पे हम पर्दा करेंगे
है समझना आप को तो शे'र से इज़हार समझें
बात कहने को भला हम फूल क्यों तोड़ा करेंगे
– अंकित मौर्या
11
बिछड़ कर तुझसे अच्छा लग रहा है
मगर ये ख़ुद से धोखा लग रहा है
ये शायद आठवां है इश्क़ मेरा
मुझे पर पहला-पहला लग रहा है
जुदा हम दो बरस पहले हुए थे
मगर ये कल का क़िस्सा लग रहा है
जो तेरे वास्ते जादूगरी है
मुझे आंखों का धोखा लग रहा है
हक़ीक़त जानता हूं पहले से ही
सो तेरा झूठ अच्छा लग रहा है
तेरे आने पे इतने ख़ुश नहीं थे
तेरे जाने का सदमा लग रहा है
उसे आदत सी मेरी लग रही है
मुझे कुछ प्यार जैसा लग रहा है
– अंकित मौर्या
12
दिल के ख़ातिर ये बदन है क़ैद-ख़ाने की तरह
सो लगा है फड़फड़ाने ये परिंदे की तरह
हो परी कोई या कोई फूल ही हो क्या हुआ
कोई भी प्यारा नहीं है उस के चेहरे की तरह
चाँद है जो आसमाँ में वो तो है उस की जबीं
और तारे हैं ये सारे उस के झुमके की तरह
देखता ही क्यूँ न जाऊँ बैठ के मैं बस उसे
उस का चेहरा है हसीं कोई नज़ारे की तरह
काटती हैं बा'द तेरे रोज़ ही रातें मुझे
याद तेरी सीने पे चलती है आरे की तरह
हम इन आँखों से उसे हर रोज़ पढ़ते आए हैं
वो बदन तो याद है दो के पहाड़े की तरह
– अंकित मौर्या
13
सलाम आख़िर क़ुबूल करना तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं
यहाँ पे कोई नहीं हमारा तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं
हर ओर रंजिश हर ओर नफ़रत यहाँ ज़रा भी सुकूँ नहीं है
सो तंग आ कर हमारे मौला तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं
अगर बनाना इसे दोबारा तो नफ़रतों से जुदा बनाना
बना सको तब हमें बुलाना तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं
मुझे बनाओ उसे बनाओ हमारी दुनिया अलग बनाओ
हमारे क़ाबिल नहीं ये दुनिया तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं
उसे बताना कि बाद उस के हमें ये दुनिया तो काटती है
जो जाते जाते ये कह गया था तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं
– अंकित मौर्या
14
जी रहा हूँ ठीक भी हूँ आप की ही मैं बला से
दर्द मुझ को मिल रहे हैं आप की ही बस दुआ से
हाल मेरा जो हुआ है है मोहब्बत का नतीजा
ठीक तो होना नहीं है अब ये कैसी भी दवा से
तू कहानी और कोई लिख दे ना हिस्से में मेरे
जी मिरा उक्ता गया है या ख़ुदा अब इस कथा से
गर मिलाना ही नहीं था तो मिलाया क्यों हमें फिर
मैं ने तो इस बात पे कर लेना है झगड़ा ख़ुदा से
ज़ुल्फ़ को उस की ना छेड़ो मत करो उस को परेशाँ
इल्तिजा ये रोज़ ही करता हूँ मैं ज़ालिम हवा से
– अंकित मौर्या
15
अभी भी इश्क़ सच्चा कर रहे हैं
ये बच्चे क्या तमाशा कर रहे हैं
ज़माने से भरोसा उठ चुका है
मगर तुझ पर भरोसा कर रहे हैं
नज़र में आ गए हैं अब हम उसकी
नज़र-अंदाज़ इतना कर रहे हैं
हमारा काम ही है इश्क़ करना
हम अपना काम पूरा कर रहे हैं
निभाना उनकी फ़ितरत में नहीं है
मगर वादे पे वादा कर रहे हैं
निवाला आंसुओं को मिल रहा है
तेरे ग़म से गुज़ारा कर रहे हैं
इन्हें डरता था तन्हा देखने से
मुझे जो लोग तन्हा कर रहे हैं
– अंकित मौर्या
तो ये थीं अंकित मौर्या की कुछ ग़ज़लें। लेकिन अभी भी कुछ रह गया है, और वो है अंकित मौर्या के कुछ चुनिंदा अश'आर। बग़ैर इसके ये शायरी कलेक्शन अधूरा रह जाएगा।
अंकित मौर्या के अश'आर
फिर दरमियाँ बचेगा जो वो इश्क़ ही तो है
दुनिया अगर निकाल दें हम दरमियान से
– अंकित मौर्या
हर घड़ी कर रही नज़दीक बिछड़ने के मुझे
घड़ी मुझसे तेरा चलना नहीं देखा जाता
– अंकित मौर्या
राह तकती हैं मेरी भी नदियाँ कई
ख़ुद को प्यासा रखा इक नदी के लिए
– अंकित मौर्या
वो ग़ुस्से में सीधी बात नहीं करता
तूफ़ानों में बारिश तिरछी होती है
– अंकित मौर्या
बाँट डाले ऐसे हम ने दिल के टुकड़े काट कर
जन्म दिन पे बाँटते हैं केक जैसे काट कर
– अंकित मौर्या
इस लिए आने नहीं देता किसी को दिल में
टूटे घर में जो भी आता है चला जाता है
– अंकित मौर्या
जान तेरी बातों को रखता था मैं सर आँखों पे
और तुम से फ़ोन तक मेरा उठाया न गया
– अंकित मौर्या
इक पेड़ की तरह मैं किनारे खड़ा रहा
इक रेल की तरह वो गुज़रता चला गया
– अंकित मौर्या
ज़िंदगी से ऐसे काटा सीन उस ने इश्क़ का
देखता है कोई जैसे फ़िल्म गाने काट कर
– अंकित मौर्या
जितने उदास हम तुझे खो कर हुए हैं आज
इतने तो ख़ुश कभी तुझे पा कर नहीं हुए
– अंकित मौर्या
हैं बहुत काम ज़िंदगी के पास
नहीं रुकना है बस मुझी के पास
मिलने आना तो ऐसे आना तुम
छोड़ के वक़्त को घड़ी के पास
– अंकित मौर्या
मैं जैसे कोई ख़ार था चुभने लगा उसे
वो तो कोई गुलाब था आँखों में रह गया
– अंकित मौर्या
उम्मीद करता हूँ कि यह पोस्ट "Ankit Maurya Shayari Collection" आप के दिल में घर कर पाई होगी। मुझे कॉमेंट बॉक्स में बताएँ कि उनकी कौन सी ग़ज़ल या कौन सा शे'र आपको सबसे ज़ियादा पसंद आया। दोस्तो, ऐसी ही शायरी कलेक्शन पढ़ने के लिए आप हमारे इस ब्लॉग पर आते रहें।
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