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Sapna Moolchandani Shayari Collection

Sapna Moolchandani Shayari Collection

कुछ आवाज़ें तेज़ नहीं होतीं, पर सीधी रूह तक पहुँचती हैं। कुछ लफ़्ज़ चीख़ते नहीं, बस धीरे से दिल में उतर जाते हैं। ऐसी ही एक शायरा हैं सपना मूलचंदानी, जिनकी शायरी जज़्बात की कोई आम तस्वीर नहीं, बल्कि एक आईना है — जिसमें दर्द भी है, सवाल भी और शिकवे भी। 

उनके हर मिसरे में एक दुनिया बसती है — कभी टूटी हुई, कभी ख़ूबसूरत, कभी बाग़ी। वो शायरी को एक ज़रिया नहीं, एक ज़रूरत मानती हैं — खुद से मिलने की, औरों तक पहुँचने की। चलिए, इस पोस्ट "Sapna Moolchandani Shayari Collection" में हम उनकी शायरी से जुड़ते हैं।


सपना मूलचंदानी की ग़ज़लें 

एक सदमे से हर दिन उभरती रही
रोज़ जीती रही रोज़ मरती रही

जिस को पाना ही मुमकिन नहीं था कभी
'उम्र-भर उस को खोने से डरती रही

सीढ़ियाँ कामयाबी की चढ़ते हुए
मैं बहुत से दिलों से उतरती रही

दूसरों को मैं मरहम लगाते हुए
अपने दिल पर लगे ज़ख़्म भरती रही

'इश्क़ करना किसी और का काम था
मैं किसी और का काम करती रही

मुझ को पोशीदा रखनी थी सादा-दिली
सो मैं हुलिए से बनती सँवरती रही

'इश्क़ मुझ को भी होने लगा था मगर
मैं ज़माने के डर से मुकरती रही

'इश्क़ कहने को दोनों तरफ़ था मगर
वो सिमटता गया मैं बिखरती रही
– सपना मूलचंदानी
2
कभी हम अपने दिल को इस तरह भी शाद करते हैं
किसी पंछी को तेरे नाम से आज़ाद करते हैं

उदासी में ख़ुशी को इस तरह आबाद करते हैं
हँसाकर एक बच्चे को तुझे हम याद करते हैं

समझने और सुनने वाले मिलते ही कहाँ है अब
यहाँ मौजूद हैं तो हम भी कुछ इरशाद करते हैं

मेरा रब मुझसे राज़ी है तो बस उसका शबब ये है
इबादत पहले सारे काम उसके बाद करते हैं

कभी तुझसे मिलेंगे तो कहेंगे झूठ तुझसे हम
न तेरी फ़िक्र करते हैं न तुझ को याद करते हैं
– सपना मूलचंदानी
3
कभी दुश्मनों से लड़ाई नहीं की
कभी दोस्तों की बुराई नहीं की

मुहब्बत में ज़ख़्मी हुए दिल की ख़ातिर
दुआएँ की हमने दवाई नहीं की

हमें क्या पता कैसे जीते हैं वो लोग
कभी हमने तो बेवफ़ाई नहीं की

मुख़ालिफ़ हमें जानते ही नहीं थे
सो हासिद रहे आश्नाई नहीं की

वो मुफ़लिस था मुफ़लिस है मुफ़लिस रहेगा
मुहब्बत की जिसने कमाई नहीं की
– सपना मूलचंदानी
4
उसे इस वक़्त इस महफ़िल में होना चाहिए था ख़ैर
मुहब्बत में अना को दिल से खोना चाहिए था ख़ैर

बिछड़ते वक़्त उसकी आँख में कुछ भी नहीं देखा
उसे दो पल तो पलकों को भिगोना चाहिए था ख़ैर

मुझे मसरूफ़ लम्हों ने कही फ़ुर्सत की सच्चाई
उसे बस एक अच्छा सा खिलौना चाहिए था ख़ैर

मेरे क़िस्सों में सुनकर नाम उसका लोग हँसते थे
उसे इस बात पर थोड़ा तो रोना चाहिए था ख़ैर

मेरे दिल की तसल्ली के लिए तस्वीर भेजी है
तुम्हें इस वक़्त मेरे पास होना चाहिए था ख़ैर
– सपना मूलचंदानी
5
जब तलक वो नज़र नहीं आता
दर्द दिल का उभर नहीं आता

जिस के हिस्से में हों सफ़र-नामे
उस के हिस्से में घर नहीं आता

ये मोहब्बत की एक ख़ूबी है
'ऐब कोई नज़र नहीं आता

जिस दु'आ में मिली हो ख़ुद-ग़रज़ी
उस दु'आ का असर नहीं आता

हाँ उसे भी है वस्ल की चाहत
चाहता है मगर नहीं आता

क्यों करे वक़्त इंतिज़ार उस का
जो कभी वक़्त पर नहीं आता

कितना दुश्वार है सफ़र मेरा
जिस में कोई शजर नहीं आता

दोस्ती भी हो और रंजिश भी
मुझ को ऐसा हुनर नहीं आता

वो मिरी नज़्म में उतर आए
याद वो इस क़दर नहीं आता

कोई भी दिल से जब उतर जाए
वो कभी लौट कर नहीं आता
– सपना मूलचंदानी
6
हमारे बीच का रिश्ता समझ लो
उसे आँखें मुझे सपना समझ लो

समझते हो अगर ख़ुद को किनारा
मुझे ऐसा करो दरिया समझ लो

नहीं पड़ता मुझे अब फ़र्क़ कोई
बुरा समझो कि फिर अच्छा समझ लो

खिलौना समझा जिस ने तुम को अब तक
चलो तुम भी उसे बच्चा समझ लो

ये हमदर्दी तो फ़ितरत है हमारी
बता दूँ तुम न जाने क्या समझ लो

कभी पूरे नहीं होते जो सपने
मुझे भी तुम वही 'सपना' समझ लो
– सपना मूलचंदानी
7
ख़्वाब की रात से निकल आई
अपने जज़्बात से निकल आई

वो मुलाक़ात जो तसव्वुर थी
उस मुलाक़ात से निकल आई

मेरे बस से निकल गए हालात
मैं भी हालात से निकल आई

सुब्ह का यूँ करम हुआ मुझ पर
शब की ज़ुल्मात से निकल आई

कोई था जो दु'आ में माँगता था
फिर मैं आयात से निकल आई

मुझ को नेकी का ये मिला था सिला
सारे सदमात से निकल आई

दर्जनों में किया मुझे भी दर्ज
उस के दर्जात से निकल आई

जिन ख़यालों में क़ैद थी अब तक
उन ख़यालात से निकल आई
– सपना मूलचंदानी
8
ज़माना छोड़ कर घर आ गए हैं
तिरी महफ़िल से उठ कर आ गए हैं

हक़ीक़त जान ली है तेरी जब से
तिरे ख़्वाबों से बाहर आ गए हैं

किसी ने भेजा है पैग़ाम मुझ को
मिरी छत पर कबूतर आ गए हैं

गए थे जीतने दिल फिर किसी का
दिल अपना हार कर घर आ गए हैं

मिरे रब ने मिरी आवाज़ सुन ली
मदद में मेरी लश्कर आ गए हैं

नहीं माँगा कभी हम ने सहारा
यहाँ तक अपने दम पर आ गए हैं
– सपना मूलचंदानी
9
जो वफ़ादार नहीं हो सकता
वो मिरा यार नहीं हो सकता

जो भी करता है मोहब्बत तुझ से
वो समझदार नहीं हो सकता

ख़ुद को दफ़्तर में ये समझाते हैं
रोज़ इतवार नहीं हो सकता

बे-वफ़ाओं से त’अल्लुक़ रखना
मेरा मेआ'र नहीं हो सकता

'इश्क़ में होता है मुजरिम वो शख़्स
जो गिरफ़्तार नहीं हो सकता

'इश्क़ में होती है दुश्वारी पर
'इश्क़ दुश्वार नहीं हो सकता

दिल से होती हैं ख़ताएँ लेकिन
दिल गुनहगार नहीं हो सकता

'इश्क़ भी कर न सके कोई शख़्स
इतना बेकार नहीं हो सकता
– सपना मूलचंदानी
10
मिरी शक्ल-ओ-सूरत से मत जान मुझ को
मिरे शेर से सिर्फ़ पहचान मुझ को

किसी और से 'इश्क़ करने लगा है
तो किस हक़ से कहता है तू जान मुझ को

कभी मुझ पे भी नज़्म कोई लिखी है
लिखी तो बता उस का 'उन्वान मुझ को

तुझे फिर किसी से मोहब्बत हुई है
तिरी बातें करती हैं हैरान मुझ को

न कर अपने महबूब का ज़िक्र मुझ से
न कर इस तरह से परेशान मुझ को

तिरी मीठी बातें ज़रा सी तवज्जोह
नहीं चाहिए तेरा एहसान मुझ को

तुझे मैं ने उस की जगह रख दिया है
मु’आफ़ी नहीं देगा भगवान मुझ को

फ़क़त अपनी तकलीफ़ दिखती है तुझ को
कभी तू समझता है इंसान मुझ को

मोहब्बत में अब तक मरी तो नहीं हूँ
मगर अब तू ज़िंदा भी मत मान मुझ को
– सपना मूलचंदानी
11
नहीं ये फ़िक्र कि वो शख़्स बेवफ़ा होगा
जो मेरा हो न सका वो किसी का क्या होगा

ये सोच कर के त'आरुफ़ नहीं दिया अपना
ज़रूर तुम ने मिरे बारे में सुना होगा

ये जानते हैं कि सीने में उस के पत्थर है
मगर यक़ीन है पत्थर में दिल छुपा होगा

ज़बाँ पे लाता नहीं है कभी जो ज़िक्र-ए-‘इश्क़
ज़रूर 'इश्क़ में पागल कभी रहा होगा

समझ रहे थे मोहब्बत का सिलसिला जिस को
ख़बर नहीं थी कि वो एक हादिसा होगा

ये सोच कर तुझे हम याद करते रहते हैं
तुझे भुलाने का कोई तो रास्ता होगा
– सपना मूलचंदानी
12
आगे की ठोकरों से बचा कर चला गया
इक शख़्स मेरे रस्ते में आ कर चला गया

वो दर्द के दवा के दिलों के सवाल पर
'ग़ालिब' का एक शेर सुना कर चला गया

जिस को कभी भुला न सकी एक पल भी मैं
वो मुझ को एक पल में भुला कर चला गया

उस ने सफ़र में साथ तो मेरा नहीं दिया
मुझ को मगर वो रस्ता दिखा कर चला गया

दिल चाहता है उस को ही मरहम के तौर पर
जो शख़्स दिल पे ज़ख़्म लगा कर चला गया

सोचो ज़रा कि कितना दुखा होगा उस का दिल
हँसते हुए जो अश्क छुपा कर चला गया
– सपना मूलचंदानी
तो ये थीं सपना मूलचंदानी जी की चुनिंदा ग़ज़लें। लेकिन जब बात सपना मूलचंदानी जी की शायरी की हो और उनके कुछ बे-मिस्ल अश'आर का ज़िक्र न हो ऐसा मुमकिन नहीं। तो आइए, अब हम उनके चंद अश'आर भी देखते हैं। 

 सपना मूलचंदानी के चुनिंदा अश'आर

फ़क़त अपनी तकलीफ़ दिखती है तुझ को
कभी तू समझता है इंसान मुझ को
 – सपना मूलचंदानी
कभी तुझसे मिलेंगे तो कहेंगे झूठ तुझसे हम
न तेरी फ़िक्र करते हैं न तुझ को याद करते हैं
– सपना मूलचंदानी
वो मेरी ज़िन्दगी का आख़िरी ग़म था
उसी ने मुझको ख़ुश रहना सिखाया है
– सपना मूलचंदानी
अब ये सोचा है बस ख़ुश रहेंगे
दिल उदासी से उकता गया है
– सपना मूलचंदानी
यहाँ मौत का ख़ौफ़ कुछ यूँ है सबको
कि जीने की ख़ातिर मरे जा रहे हैं
– सपना मूलचंदानी
उस ने सफ़र में साथ तो मेरा नहीं दिया
मुझ को मगर वो रस्ता दिखा कर चला गया
– सपना मूलचंदानी
न कर अपने महबूब का ज़िक्र मुझ से
न कर इस तरह से परेशान मुझ को
– सपना मूलचंदानी
उम्मीद करता हूँ कि आपको सपना मूलचंदानी जी की शायरी बेहद पसंद आई होगी। मुझे कॉमेंट बॉक्स के ज़रिए ज़रूर बताएँ कि आपको कौन सी ग़ज़ल या कौन सा शे'र सबसे ज़ियादा पसंद आया। अंत तक बने रहने के लिए आपका शुक्रिया।  

Sapna Moolchandani's Instagram Profile : https://www.instagram.com/sapna_poetry

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