यह प्रस्तावना एक ऐसे होनहार युवा शायर के लिए है जो अपनी कम उम्र में ही शब्दों से खेलना सीख गया है। प्रतिभा उम्र नहीं देखती—और यही बात चराग़ शर्मा जैसे तेज़-तर्रार शायर पर बिल्कुल सटीक बैठती है।
चराग़ शर्मा की शायरी में गहराई भी है और चंचलता, और मुस्कुराते हुए ज़िंदगी के सच कह जाते हैं। इस तरह की शायरी यह बताती है कि चराग़ शर्मा न सिर्फ़ प्रतिभाशाली है, बल्कि भविष्य में शायरी की दुनिया में एक ख़ास मुक़ाम बना सकते हैं।
तो आइए, इस पोस्ट "Charagh Sharma Shayari Collection" में हम इस शायर की शब्दों की दुनिया से रू-ब-रू होते हैं।
चराग़ शर्मा की ग़ज़लें
1
औरों की प्यास और है और उस की प्यास और
कहता है हर गिलास पे बस इक गिलास और
ख़ुद को कई बरस से ये समझा रहे हैं हम
काटी है इतनी उम्र तो दो-चार मास और
पहले ही कम हसीन कहाँ था तुम्हारा ग़म
पहना दिया है उस को ग़ज़ल का लिबास और
टकरा रही है साँस मिरी उस की साँस से
दिल फिर भी दे रहा है सदा और पास और
अल्लाह उस का लहजा-ए-शीरीं कि क्या कहूँ
वल्लाह उस पे उर्दू ज़बाँ की मिठास और
बाँधा है अब नक़ाब तो फिर कस के बाँध ले
इक घूँट पी के ये न हो बढ़ जाए प्यास और
'ग़ालिब' हयात होते तो करते ये ए'तिराफ़
दौर-ए-'चराग़' में है ग़ज़ल का क्लास और
– चराग़ शर्मा
2
अब ये गुल गुलनार कब है ख़ार है बे-कार है
आप ने जब कह दिया बे-कार है बे-कार है
छोड़ कर मतला ग़ज़ल दमदार है बे-कार है
जब सिपह-सालार ही बीमार है बे-कार है
इक सवाल ऐसा है मेरे पास जिस के सामने
ये जो तेरी शिद्दत-ए-इन्कार है बे-कार है
तुझ को भी है चाँद का दीदार करने की तलब
इक दिए को रौशनी दरकार है बे-कार है
मय-कदे के मुख़्तलिफ़ आदाब होते हैं 'चराग़'
जो यहाँ पर साहब-ए-किरदार है बे-कार है
– चराग़ शर्मा
3
वो हँस के देखती होती तो उस से बात करते
कोई उम्मीद भी होती तो उस से बात करते
हम इस्टेशन से बाहर आए इस अफ़सोस के साथ
वो लड़की अजनबी होती तो उस से बात करते
हमारे जाम आधी हौसला-अफ़ज़ाई कर पाए
अगर उस ने भी पी होती तो उस से बात करते
तवज्जोह से बहुत शरमाती है आवाज़ अपनी
अगर वो सो रही होती तो उस से बात करते
किसी से बात करना इतना मुश्किल भी नहीं था
किसी ने बात की होती तो उस से बात करते
ये ख़ामोशी भी क्या है गुफ़्तुगू की इंतिहा है
कोई बात अन-कही होती तो उस से बात करते
– चराग़ शर्मा
4
कुछ इस तरह दिल से इश्क़ उस का निकालना है
बग़ैर गुल्लक को तोड़े सिक्का निकालना है
मैं जानता हूँ मोहब्बतों का मक़ाम-ए-आख़िर
सो उस के कमरे से मुझ को पंखा निकालना है
निकाल फेंकी घड़ी कलाई से उस की दी हुई
अब अपने ख़ातिर इक-आध घंटा निकालना है
ज़मीन खोदें जिन्हें बनानी हैं क़ब्र-गाहें
ज़मीन जोतें जिन्हें ख़ज़ाना निकालना है
निकाल लाया जो मुझ को लहरों की साज़िशों से
मुझे समुंदर से अब वो तिनका निकालना है
– चराग़ शर्मा
5
तितली से दोस्ती न गुलाबों का शौक़ है
मेरी तरह उसे भी किताबों का शौक़ है
वर्ना तो नींद से भी नहीं कोई ख़ास रब्त
आँखों को सिर्फ़ आप के ख़्वाबों का शौक़ है
हम आशिक़-ए-ग़ज़ल हैं तो मग़रूर क्यों न हों
आख़िर ये शौक़ भी तो नवाबों का शौक़ है
उस शख़्स के फ़रेब से वाक़िफ़ हैं हम मगर
कुछ अपनी प्यास को ही सराबों का शौक़ है
गिरने दो ख़ुद सँभलने दो ऐसे ही चलने दो
ये तो 'चराग़' ख़ाना-ख़राबों का शौक़ है
– चराग़ शर्मा
6
वो हँस के देखती होती तो उससे बात करते
कोई उम्मीद भी होती तो उससे बात करते
हम स्टेशन से बाहर आए इस अफ़सोस के साथ
वो लड़की अजनबी होती तो उससे बात करते
हमारे जाम आधी हौसला-अफ़ज़ाई कर पाए
अगर उसने भी पी होती तो उससे बात करते
हम उसके झुमकों की लरज़िश पे अक्सर सोचते हैं
हवा से दोस्ती होती तो उससे बात करते
ये ख़ामोशी भी क्या है गुफ़्तगू की इंतेहा है
कोई बात अनकही होती तो उससे बात करते
तवज्जो से बहुत शर्माती है आवाज़ अपनी
अगर वो सो रही होती तो उससे बात करते
किसी से बात करना इतना मुश्किल भी नहीं था
किसी ने बात की होती तो उससे बात करते
– चराग़ शर्मा
7
उमूमन हम अकेले बैठते हैं
वो बैठा है तो चलिए बैठते हैं
मिरी आँखों में गुंजाइश तो कम है
पर उस के ख़्वाब पूरे बैठते हैं
उठीं नज़रें तो नज़रों से गिरेंगे
यहाँ नज़रों पे पहरे बैठते हैं
अदब का फ़र्श है ये इस पे बच्चे
बुज़ुर्गों के सहारे बैठते हैं
वो ख़ुद मरकज़ में थोड़ी बैठता है
सब उस के आगे पीछे बैठते हैं
उदासी से भरोसा उठ रहा है
चलो 'नासिर' को पढ़ने बैठते हैं
– चराग़ शर्मा
8
थक जाता हूँ रोज़ के आने जाने में
मेरा बिस्तर लगवा दो मयख़ाने में
उस के हाथ में फूल है मत कहिए कहिए
उस का हाथ है फूल को फूल बनाने में
मैं कब से मौक़े की ताक़ में हूँ उस को
जान-ए-मन कह दूँ जाने अनजाने में
आँखों में मत रोक मुझे जाना है उधर
ये रस्ता खुलता है जिस तह-ख़ाने में
लाद न उस के हुस्न का इतना बोझ 'चराग़'
आ जाएगी मोच ग़ज़ल के शाने में
– चराग़ शर्मा
9
चमन में कौन बबूलों की डाल खींचता है
यहाँ जो आता है फूलों के गाल खींचता है
वो तीर बा'द में पहले सवाल खींचता है
सवाल भी जो समा'अत की खाल खींचता है
ऐ प्यार बाँटने वाले मैं ख़ूब जानता हूँ
कि कितनी देर में मछवारा जाल खींचता है
निकल भी सकता हूँ क़ैद-ए-तख़य्युलात से गर
वो शख़्स खींच ले जिस का ख़याल खींचता है
मैं उस के आगे नहीं खींचता नियाम से तेग़
वो शेर-शाह जो दुश्मन की ढाल खींचता है
ये सर्द सुब्ह में सोया शरारती सूरज
बस आँख खुलते ही परियों की शाल खींचता है
मैं होश-मंद हूँ ख़ुद भी सो मेरी ग़ज़लों में
न रक़्स करता है 'आशिक़ न बाल खींचता है
– चराग़ शर्मा
10
हमारा इश्क़ भी याराने की कगार पे था
जब उस ने प्यार कहा था ज़ोर यार पे था
मैं रोज़गार-ए-मोहब्बत में कम पगार पे था
और इतनी कम कि ग़ज़ल का गुज़र उधार पे था
हुआ था क़त्ल कल उस के किसी दिवाने का
ख़ुदा का शुक्र कि इल्ज़ाम ख़ाकसार पे था
– चराग़ शर्मा
तो ये थीं चराग़ शर्मा की कुछ ग़ज़लें। मगर चराग़ शर्मा की शायरी उनके तन्हा अश'आर के बग़ैर पढ़ें तो ये ना-इंसाफ़ी होगी। तो आइए, उनके कुछ अश'आर भी देखते हैं।
चराग़ शर्मा के चुनिंदा अश'आर
अब के मिली शिकस्त मिरी ओर से मुझे
जितवा दिया गया किसी कमज़ोर से मुझे
– चराग़ शर्मा
हाथ भर दूरी पे है क़िस्मत की चाबी आप की
एक छोटा सा क़दम और कामयाबी आप की
– चराग़ शर्मा
उन्हों ने अपने मुताबिक़ सज़ा सुना दी है
हमें सज़ा के मुताबिक़ बयान देना है
– चराग़ शर्मा
मैं ने क़ुबूल कर लिया चुप चाप वो गुलाब
जो शाख़ दे रही थी तिरी ओर से मुझे
– चराग़ शर्मा
तुम्हें ये ग़म है कि अब चिट्ठियाँ नहीं आतीं
हमारी सोचो हमें हिचकियाँ नहीं आतीं
– चराग़ शर्मा
ख़ताएँ इस लिए करता हूँ मैं कि जानता हूँ
सज़ा मुझे ही मिलेगी ख़ता करूँ न करूँ
– चराग़ शर्मा
कोई ख़त-वत नहीं फाड़ा कोई तोहफ़ा नहीं तोड़ा
कि वो देखे तो ख़ुद सोचे कि दिल तोड़ा नहीं तोड़ा
– चराग़ शर्मा
उदासी इक समंदर है कि जिसकी तह नहीं है
मैं नीचे और नीचे और नीचे जा रहा हूँ
– चराग़ शर्मा
थोड़ा सा गँवाता था उन्हें रोज़ मैं 'अबतर'
और रोज़ मुझे थोड़ा गँवाते थे पिता जी
और रोज़ मुझे थोड़ा गँवाते थे पिता जी
– चराग़ शर्मा
इतने अफ़सुर्दा नहीं हैं हम कि कर लें ख़ुदकुशी
और न इतने ख़ुश कि सच में मरने की ख़्वाहिश न हो
– चराग़ शर्मा
तो ये थी चराग़ शर्मा की शायरी। मुझे उम्मीद है कि जितना प्यार आप चराग़ शर्मा की शायरी को देते हैं उतना ही प्यार इस पोस्ट को भी देंगे। मुझे कॉमेंट बॉक्स में अपना पसंदीदा शे'र या ग़ज़ल ज़रूर बताएँ। अंत तक बने रहने के लिए शुक्रिया।
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