जून का महीना था और गर्मी इतनी कि मानो लोहा पिघला दे। कृति, एक नौ साल की छोटी सी बच्ची, अपने घर के पास के एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ती थी। वह आमतौर पर पैदल ही स्कूल जाती और आती थी।
उसका सबसे डरावना दिन आ गया था—वही दिन जब उसकी क्लास टीचर ने एक हफ्ता पहले हुए पीरियॉडिक टेस्ट के नंबर सुनाए। हमेशा की तरह उसने हर विषय में अच्छे अंक लाए थे, सिवाय "नैतिक शिक्षा" (moral education) के। जैसे ही स्कूल की घंटी बजी, उसने रिपोर्ट कार्ड बैग में डाला और फौरन घर की ओर दौड़ पड़ी।
रास्ते में एक इलाक़ा था, बेहद गंदा, कूड़े-कचरे से भरा हुआ। जब वह उस जगह पहुँची तो उसे कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई दी जिससे उसे जिज्ञासा हुई। उसने ढूँढ़ा तो देखा कि एक चूहेदानी (rat trap) पड़ी थी। लेकिन हैरानी की बात ये थी कि चूहा अब तक उस जाल में फँसा हुआ था। वो पिंजरा इतना छोटा था कि उसमें चूहे के लिए हिलने-डुलने की भी जगह नहीं थी। उसका दर्द साफ़ झलक रहा था।
"कितना अमानवीय है... ये अमानवीय है!" कृति ने धीरे से कहा।
चूहे के पास कोई रास्ता नहीं था बाहर निकलने का। कृति ने ठान लिया कि वो इस पिंजरे को घर ले जाएगी और माँ की मदद से चूहे की देखभाल करेगी।
घर पहुँचकर कृति ने अपनी माँ को सब कुछ बताया, आँखों में आँसू भरे हुए। माँ उस वक़्त अपने पालतू कुत्ते को गोद में लिए हुई थीं। उन्हें चूहे बेहद नापसंद थे, लेकिन बेटी की ऐसी दयालुता देख कर वो चौंक गईं।
"लेकिन बेटा, ये 'कोई' नहीं है... ये तो बस एक चूहा है," माँ ने कहा, जैसे अपनी बेटी से एक ठोस जवाब की उम्मीद कर रही हों।
"तो क्या मम्मा! भगवान ने सबको ज़िंदगी दी है और हम प्रार्थना में उसका शुक्रिया अदा करते हैं। सब जीना चाहते हैं, मौत कौन चाहता है? तो फिर किसी और की ज़िंदगी छीनना कैसे सही हो सकता है, चाहे वो जानवर ही क्यों न हो?" बेटी ने वही जवाब दिया जिसकी माँ को उम्मीद थी।
"लेकिन बेटा, तुम्हें चूहों के बारे में अच्छे से पता है, या नहीं तो सुनो — ये घर में घुसते हैं और ख़तरनाक बीमारियाँ लाते हैं, इसलिए हमें इन्हें पकड़ना पड़ता है," माँ ने खरगोश को सहलाते हुए कहा।
"हाँ मम्मा, आप सही कह रही हैं, लेकिन पकड़ने का तरीक़ा ऐसा तो न हो जैसा इस चूहे के साथ किया गया। क्या पिंजरा थोड़ा बड़ा नहीं हो सकता था? और क्या उसे कुछ खाने को नहीं दिया जा सकता था?" कृति की आँखें नम थीं।
उसने अपनी माँ की गोद में बैठे खरगोश को देखा, जो शायद अभी-अभी खाना खाकर आराम से सो रहा था। फिर उसने उस चूहे की ओर देखा जो उसकी तरह ही शांत था, लेकिन भूख और थकावट से। उसने समझा — यह दुनिया कितना अलग बरताव करती है अलग-अलग जीव-जंतुओं को लेकर।
माँ ने भी अब खरगोश से नज़र हटाकर उस अधमरे चूहे को देखा — उसकी आँखें ज़िंदगी की भीख माँग रही थीं। एक ज़िंदगी जो कभी उसकी थी, एक आज़ादी जो उससे छीन ली गई थी। वह चूहा रो नहीं सकता था, लेकिन माँ ने बेटी की आँखों के आँसुओं में उसकी पीड़ा महसूस की।
माँ ने जल्दी से अपनी आँखों से आँसू पोंछे — उन्हें अपनी बेटी पर गर्व महसूस हुआ। कृति न केवल भावनात्मक है बल्कि ज़िंदगी के इस फ़लसफ़े को बेहद छोटी उम्र में ही समझ लिया है। माँ ने मन ही मन अपनी ग़लती स्वीकारी क्योंकि उस चूहे को उन्हीं ने उतने छोटे पिंजरा सहित फेंका था ताकि वो दुबारा घर में न आ सके।
उसी समय, कृति ने अपना स्कूल बैग खोला, रिपोर्ट कार्ड निकाला और नैतिक शिक्षा में कम अंक आने के लिए माँ से माफ़ी माँगी।
लेकिन माँ के पास कहने को कोई शब्द नहीं था, उनके लिए कृति 100 में 100 अंक लेके आई है और उसकी ये कॉपी ज़िंदगी ने खुद जाँची है।
⸻ Achyutam Yadav 'Abtar'
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