Top 10 Ghazals of Achyutam Yadav 'Abtar'

दोस्तो, इस ब्लॉग पोस्ट में मैं आपसे अपने नज़रिए से अपनी 10 सबसे ख़ूबसूरत ग़ज़लें साझा कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ आपको ये पोस्ट "Top 10 Ghazals of Achyutam Yadav 'Abtar'" पसंद आएगी।

Top 10 Ghazals of Achyutam Yadav 'Abtar'

1
मैं हूँ ‘आबिद तो ने’मत से तुम और मिले भी हो मन्नत से तुम दिल पे ख़ुद्दारी का ताला है तोड़ के देखो दौलत से तुम! बचना है मुझको तन्हाई से हाथ थामो मोहब्बत से तुम बुज़दिली खा गई हर हुनर काम लेते थे हिम्मत से तुम होगे गर मेरी क़िस्मत में तो होगे आधा ज़रूरत से तुम और मौक़े मिलेंगे मगर हाथ धो बैठे बरकत से तुम क्या है ‘अबतर’ में इतना अलग देखते हो जो हैरत से तुम - अच्युतम यादव 'अबतर'
नाराज़गी किसी से जता कर नहीं गया पर अपनी बे-दिली भी दिखा कर नहीं गया बरसात से डरा हुआ वो तन्हा आदमी काग़ज़ की कोई कश्ती बना कर नहीं गया ये कैसे मानूँ मैं कि वो आएगा लौट कर कोई दिलासा भी तो दिला कर नहीं गया उस जाने वाले से ये गिला ही रहा कि वो जाते हुए गले से लगा कर नहीं गया उसके फ़िराक़ से फ़ज़ा भी ग़मज़दा हुई तूफ़ाँ भी कोई पत्ता हिला कर नहीं गया शायद मेरा भी दिल नहीं था एक होने का वो भी कोई बहाना बना कर नहीं गया ‘अबतर’ थे मेरे पास सितारे कई मगर मैं आसमान सर पे उठा कर नहीं गया - अच्युतम यादव 'अबतर'
3
तेरा चेहरा फूल जैसा हो गया मेरा बेज़ारी का नक़्शा हो गया हाथ तेरे लगने की देरी थी और आदमी से मैं खिलौना हो गया छिप-छिपाकर महँगी चीज़ें रखते हैं अब ये आँसू कब से हीरा हो गया आज मंज़िल ने तमाचा जड़ दिया रस्ता जो टेढ़ा था सीधा हो गया चाँद वैसे निकला था पूरा मगर तुमको जब देखा तो आधा हो गया हिज्र के क़िस्सों को पढ़ते रहने से इश्क़ का इक्ज़ाम अच्छा हो गया और कहीं तहरीर कर दो लफ़्ज़ों को अब तो ये काग़ज़ भी बूढ़ा हो गया - अच्युतम यादव 'अबतर'
4
आँसुओं की नदी में गर जाना रुकना मत सीधे पार कर जाना गर मुकरना है तो मुकर जाना बात लहजे की है, सुधर जाना कुछ समझता नहीं था इश्क़ को मैं जब हुआ मुझको तब असर जाना जानते हो कि बोला क्या उसने! ‘मेरी आँखों को चूम कर जाना’ इतना ख़ुद्दार आदमी हूँ मैं मेरा मुश्किल ही है बिखर जाना बस यही आम आदमी का है काम आके दफ़्तर इधर-उधर जाना कुछ गुलों तक ही था वो गुल महदूद बाग़ से निकला तब शजर जाना - अच्युतम यादव 'अबतर'

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5
हमको तो कोई हमसफ़र न मिला मिलना तो चाहिए था पर न मिला रंज तोहफ़े में सर-ब-सर न मिला फिर भी हँस पाने का हुनर न मिला ख़ुल्द में ढूँढ़कर निकालूँगा मुझको धरती पे तू अगर न मिला ज़ख़्म लहरों से कश्ती खाती रही और किनारा भी रात भर न मिला ज़ुल्म बेटों के सहने पड़ते हैं घर में रहकर भी माँ को घर न मिला ज़ोम है तीरगी को ख़ुद पे मगर चाँदनी को भी आज दर न मिला - अच्युतम यादव 'अबतर'
6
इतनी बरकत मुझे अता न करो करना भी हो तो बारहा न करो वो तुम्हारे ही राह की हों तो ठीक हर मुसीबत का सामना न करो तोड़ कर देखना जो कुछ भी मिले रिश्तों में ऐसा बचपना न करो अपनी मंज़िल पे मैं पहुँचता नहीं मेरे नक़्श-ए-पा पे चला न करो हिज्र से मुझको मर ही जाने दो मेरे इस दर्द की दवा न करो कुछ तो ख़ुद्दारी है अँधेरों में रौशनी भीक में लिया न करो - अच्युतम यादव 'अबतर'
7
सच यही है, ये कोई सफ़ाई नहीं इश्क़ करने में कोई बुराई नहीं बद्दुआ दिल से दी उसने मुझको मगर उम्र मेरी ज़रा भी घटाई नहीं ख़ामियाँ तो गिना सकता था मैं मगर नीव यारी की मैंने हिलाई नहीं रोज़ आती थी सो आज डर गया मैं सुब्ह जब माँ उठाने को आई नहीं माँग भर दूँगा तेरी मैं लेकिन ये क्या तू ने माथे पे बिंदी लगाई नहीं! मुझसे छीना है इक हादसे ने उसे वज्ह हर हिज्र की बेवफ़ाई नहीं - अच्युतम यादव 'अबतर'
8
सिर्फ़ इक दीन से बना ही नहीं ये वतन सिर्फ़ आपका ही नहीं दोस्तों ने दिए सभी झाँसे दुश्मनों से तो मैं घिरा ही नहीं उसने मिलने को दस बजे बोला उसका दस तो कभी बजा ही नहीं मेरा सर फोड़ने चला था वो उससे पत्थर मगर उठा ही नहीं चाँद क्यूँ बोलूँ मैं तुम्हें जानाँ चाँद की अपनी तो ज़िया ही नहीं ज़ाविए तो बहुत निकाले मगर शे’र बेहतर मिरा हुआ ही नहीं - अच्युतम यादव 'अबतर'
9
सभी के लिए ग़म बनाया गया हर इक आदमी आज़माया गया मैं अपने पे ही था जमी इक परत मुझे मुझपे से ही हटाया गया उसी दरिया में डूबा था मैं जहाँ मुझे राख़ करके बहाया गया मियाँ ज़ीस्त के इतने एहसान थे कि मर-मर के क़र्ज़ा चुकाया गया सुख़न जंग की तेग़ थोड़ी है दोस्त सितम को कलम से मिटाया गया कभी जाना मत मौत के पास तुम जो भी इसकी सोहबत में आया, गया - अच्युतम यादव 'अबतर'
10
ज़िंदगी का तर्ज़ मुबहम कर दिया मौत ने तो नाक में दम कर दिया गूँज क्यों है एक सहरा की यहाँ उसने किसकी आँखों को नम कर दिया दिल पे दस्तक देते-देते औरों के मैंने अपने दिल को बरहम कर दिया रोज़ दिल के फूलों पे जमती रही तुझको इन यादों ने शबनम कर दिया देख कर ये ज़ख़्म मेरा लोगों ने और भी महँगा अपना मरहम कर दिया - अच्युतम यादव 'अबतर'
दोस्तो, आशा करता हूँ कि आपको मेरी top 10 ghazals पसंद आई होंगी। अगर ऐसा है तो अपनी पसंदीदा ग़ज़ल अपने दोस्तों और परिवार के साथ ज़रूर साझा करें। अंत तक बने रहने के लिए शुक्रिया।