शायरी और सोशल मीडिया


अगर आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं तो आप शायरी से रू-ब-रू ज़रूर हुए होंगे। हों भी क्यों न, नए दौर में शायरी को नए platforms मिले हैं जो कि एक अच्छी ख़बर है अदब के चाहने वालों के लिए। इस दौर में जहाँ लोग घंटो फ़ोन पर बिता देते हैं उस वक़्त शायरी पीछे रह जाए ऐसा तो मुमकिन ही नहीं। न केवल शायरी सुनने और पढ़ने वाले बल्कि शायरी करने वालों की भी संख्या दिन-प्रतिदिन इन online platforms पर बढ़ती जा रही है। आपने लोगों को दर्द भरा status लगाते हुए तो देखा ही होगा। यह इसलिए भी हो रहा है या होता है क्योंकि हम अपने जज़्बात अपने तक नहीं रख पाते और ये ज़िंदगी का एक फ़लसफ़ा है। शायरी अपने जज़्बात को ज़ाहिर करने का एक ख़ूबसूरत माध्यम है। इसके बहुत से फ़ायदे निकल के आते हैं और आज हम उन्हीं की चर्चा करेंगे और साथ-साथ कुछ नए दौर की चुनौतियों से भी रू-ब-रू होंगे।

सोशल मीडिया ने शायरी को कैसे बदला

अब शायरी सिर्फ़ मुशायरों में शिरकत करने तक सीमित नहीं रही। आज-कल ऐसा क्या है जो ऑनलाइन नहीं है और शायरी इसका कोई अपवाद नहीं। शायरों ने अपने कलाम न केवल मुशायरों में बल्कि अलग-अलग digital platforms के ज़रिए साझा करना शुरू कर दिया है। इन platforms ने कई नए शायरों को अपनी बात लोगों तक पहुँचाने का मौक़ा दिया। आपने इंस्टाग्राम और फेसबुक पर कई उभरते हुए शायर और कवि देखे होंगे और लोगों ने उन्हें बहुत प्यार दिया है। कुछ platforms तो ऐसे भी आएँ जो ख़ास कर लिखने की ख़ातिर ही बनाए गए हैं। मैं भी उनमें से एक platform से जुड़ा हूँ। वो platform है YourQuote.

नए शायरों के लिए अवसर

सोशल मीडिया ने नई और बुलंद आवाज़ों को लोगों के दिल में जगह बनाने का अवसर दिया है। कई ऐसे शायर हैं जो इंस्टाग्राम, फेसबुक, आदि platforms पर अपने कलाम लोगों से साझा करते हैं। केवल साझा करना ही नहीं बल्कि नए शायरों को बहुत कुछ सीखने का अवसर भी मिला। एक दूसरे की शायरी को परखना एक आम बात हो गई है और इससे उभरते हुए शायरों को बहुत फ़ायदा मिल रहा है। यहाँ यह समझना बहुत ज़रूरी है कि नए दौर ने और सोशल मीडिया ने कई शायराओं को भी अपनी सदियों पुरानी बेड़ियाँ तोड़ने का हौसला दिया है। अब वो भी अपनी शायरी के बदौलत एक नया ज़ाविया दुनिया को शायरी के माध्यम से दिखा रही हैं।  

चुनौतियाँ

सोशल मीडिया पर ऐसा बहुत देखने को मिलता है जहाँ लोगों ने 'शायरी' कहकर वो सब भी सुना दिया जो अस्ल में शायरी होती भी नहीं है। यह वाक़ई में एक बड़ी चिंताजनक बात है क्योंकि इससे शायरी धीरे-धीरे अपनी असली पहचान खो रही है। दूसरी चिंताजनक बात यह है कि लोग अन्य शायरों के कलाम बिना उन्हें क्रेडिट दिए ही साझा करने लगे हैं। इससे भी ज़ियादा दुखद बात ये है कि पाठक भी शायर का नाम पता करने की कोशिश नहीं करते। यहाँ दोनों तरफ़ से एक साकारात्मक कोशिश होनी चाहिए। 

शायरी का भविष्य

बावजूद इसके कि सोशल मीडिया पर 'शायरी' कहकर कोई भी रचना साझा करना एक आम बात हो गई है लेकिन वक़्त के साथ-साथ नई और बुलंद आवाज़ें भी आती रही हैं जो शायरी की रूह को ज़िंदा रखी हैं। बहुत से नए शायर जो अभी टेक्निकल चीज़ें सीख रहे हैं teenagers हैं। इतनी कम उम्र में शायरी की तालीम एक साकारात्मक पहलू है और ये शायरी की रूह को ज़िंदा रखने के लिए काफ़ी है। उम्मीद है कि ये सिलसिला थमेगा नहीं और हमें भविष्य में नई-नई आवाज़ें मिलती रहेंगी।