1222 1222 1222 1222 बह्र पर ग़ज़ल
मेरी सीरत भी तो मेरी अबस सूरत से मिलती है
मियाँ बद-क़िस्मती इतनी बड़ी क़िस्मत से मिलती है
यहाँ अब हँसना ही आसान है सो हँस रहे हैं सब
कि रोने की रिआयत आज-कल मन्नत से मिलती है
बनोगे हद से ज़्यादा अच्छे तो जाओगे तुम दोज़ख
मुझे इक ऐसी धमकी बारहा जन्नत से मिलती है
तुम्हारे सामने आने से कतराना नहीं आसाँ
ये ऐसी बुज़दिली है जो बड़ी हिम्मत से मिलती है
हाँ ये माना कि ख़ुशियों को ख़रीदा जा नहीं सकता
मगर यारो उदासी भी कहाँ दौलत से मिलती है
उसी संगम पे आती है नहाने कामयाबी भी
मशक़्क़त करने की निय्यत जहाँ हसरत से मिलती है
यही इक फ़लसफ़ा हर वस्फ़ से वाबस्ता है 'अबतर'
नहीं मिलती है जो नेमत में वो मेहनत से मिलती है
- अच्युतम यादव 'अबतर'
मियाँ बद-क़िस्मती इतनी बड़ी क़िस्मत से मिलती है
यहाँ अब हँसना ही आसान है सो हँस रहे हैं सब
कि रोने की रिआयत आज-कल मन्नत से मिलती है
बनोगे हद से ज़्यादा अच्छे तो जाओगे तुम दोज़ख
मुझे इक ऐसी धमकी बारहा जन्नत से मिलती है
तुम्हारे सामने आने से कतराना नहीं आसाँ
ये ऐसी बुज़दिली है जो बड़ी हिम्मत से मिलती है
हाँ ये माना कि ख़ुशियों को ख़रीदा जा नहीं सकता
मगर यारो उदासी भी कहाँ दौलत से मिलती है
उसी संगम पे आती है नहाने कामयाबी भी
मशक़्क़त करने की निय्यत जहाँ हसरत से मिलती है
यही इक फ़लसफ़ा हर वस्फ़ से वाबस्ता है 'अबतर'
नहीं मिलती है जो नेमत में वो मेहनत से मिलती है
- अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल की तक़्तीअ
नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है।
मेरी सीरत / भी तो मेरी / अबस सूरत / से मिलती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
मियाँ बद-क़िस् / मती इतनी / बड़ी क़िस्मत / से मिलती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यहाँ अब हँस / ना ही आसा / न है सो हँस / रहे हैं सब
1222 / 1222 / 1222 / 1222
कि रोने की / रिआयत आ / ज-कल मन्नत / से मिलती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
बनोगे हद / से ज़्यादा अच् / छे तो जाओ / गे तुम दोज़ख
1222 / 1222 / 1222 / 1222
मुझे इक ऐ / सी धमकी बा / रहा जन्नत / से मिलती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
तुम्हारे सा / मने आने / से कतराना / नहीं आसाँ
1222 / 1222 / 1222 / 1222
ये ऐसी बुज़ / दिली है जो / बड़ी हिम्मत / से मिलती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
हाँ ये माना / कि ख़ुशियों को / ख़रीदा जा / नहीं सकता
1222 / 1222 / 1222 / 1222
मगर यारो / उदासी भी / कहाँ दौलत / से मिलती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
उसी संगम / पे आती है / नहाने का / मयाबी भी
1222 / 1222 / 1222 / 1222
मशक़्क़त कर / ने की निय्यत / जहाँ हसरत / से मिलती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यही इक फ़ल / सफ़ा हर वस् / फ़ से वाबस् / ता है 'अबतर'
1222 / 1222 / 1222 / 1222
नहीं मिलती / है जो नेमत / में वो मेहनत / से मिलती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यह बह्र (1222 x 4 ) शायरी की बहुत ही मशहूर बह्र है। कुमार विश्वास जी का गीत "कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है " इसी बह्र पर है। इस बह्र पर बहुत से फ़िल्मी गीत भी लिखे गए हैं।
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