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2122 1212 22/112 बह्र पर ग़ज़ल और तक़्तीअ

 

"2122 1212 22/112" बह्र पर ग़ज़ल

2122 1212 22/112 पर ग़ज़ल 


ख़ू-ए-दिल वाक़ई सही है मिरी
अक़्ल ही थोड़ी सर-फिरी है मिरी

बातों में आएगी न लोगों की
ये उदासी पढ़ी-लिखी है मिरी

तुम ने रस्ते बनाने की ज़िद में
एक मंज़िल तबाह की है मिरी

हूँ लबों से तुम्हारे वाबस्ता
हर तबस्सुम से ताज़गी है मिरी

एक इंसान जब बना दुनिया
तब से दुनिया बड़ी बनी है मिरी

अपने बच्चों में भी मैं जीता हूँ
एक से ज़्यादा ज़िंदगी है मिरी

दोस्ती कर रहा हूँ हर किसी से
क्यूँकि ख़ुद से ही दुश्मनी है मिरी

आख़िरी साँस पीछा कर रही है
ज़ीस्त आगे निकल चुकी है मिरी

- अच्युतम यादव 'अबतर'

ख़ू-ए-दिल - दिल की आदत 
वाबस्ता - सम्बंधित
ज़ीस्त - ज़िंदगी


ग़ज़ल की तक़्तीअ

नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है। 

ख़ू-ए-दिल वा / क़ई सही / है  मिरी
2122 / 1212 / 112

अक़्ल ही थो / ड़ी सर-फिरी / है  मिरी
2122 / 1212 / 112


बातों में आ /गी न लो / गों की
2122 / 1212 / 22

ये उदासी / पढ़ी-लिखी / है  मिरी
2122  / 1212 / 112


तुम ने रस्ते / बनाने की / ज़िद में
2122 / 1212 / 22

एक मंज़िल / तबाह की / है  मिरी
2122 / 1212 / 112


हूँ लबों से / तुम्हारे वा / बस्ता
2122 / 1212 / 22

हर तबस्सुम / से ताज़गी / है  मिरी
2122 / 1212 / 112


एक इंसा / न जब बना / दुनिया
2122  / 1212  / 22

तब से दुनिया / बड़ी बनी / है  मिरी
2122 / 1212 / 112


अपने बच्चों / में भी मैं जी / ता हूँ
2122 / 1212 / 22

एक से ज़्या / दा ज़िंदगी / है  मिरी
2122 / 1212 / 112


दोस्ती कर / रहा  हूँ  हर / किसी से
2122 / 1212 / 112

क्यूँकि ख़ुद से / ही दुश्मनी / है  मिरी
2122 / 1212 / 112


आख़िरी साँ / स पीछा कर / रही है
2122 / 1212 / 112

ज़ीस्त आगे / निकल चुकी / है  मिरी
2122 / 1212 / 112


कुछ ज़रूरी बातें :

1. इस बह्र के आख़िरी रुक्न 22 को ज़रुरत अनुसार 112 भी कर सकते हैं। 
 
2.  'मेरी' को 22, 21, 12 या 11 में से किसी भी वज़्न पर ले सकते हैं।

3. किसी भी मिसरे में पहले रुक्न 2122 को 1122 भी कर सकते हैं।  

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