हृदेश जल्दी-जल्दी अपने घर से निकला। नागपुर की जी.टी. रोड पर एक क़त्ल की ख़बर कवर करनी थी। सुब्ह के क़रीब 8 बजे का वक़्त था। थोड़ी देर इंतज़ार और सब्र के पसीने के बाद आख़िरकार उसे एक ऑटोरिक्शा मिला पर उसमें जगह नहीं थी। क़िस्मत से एक आदमी का स्टॉप वहीं था तो वो उतर गया और हृदेश को सीट मिल गई।
मकान नंबर 19 पर पहले से ही कई पत्रकार जमा थे, जैसे कि इस शहर में कोई और ख़बर ही न हो। हृदेश की मुलाक़ात इंस्पेक्टर पाल से हुई जो मामले की तफ़्तीश कर रहे थे। इंस्पेक्टर पाल ने बताया कि मरने वाले का नाम अनिल था। पोस्टमार्टम और शुरुआती सबूतों से ये साफ़ था कि उसकी मौत ज़हर से हुई थी, क्योंकि उसके मुँह से झाग जैसा कुछ निकला था।
अनिल एक मेहनती, 31 साल का कुंवारा नौजवान था, जो पिछले चार साल से अकेले उसी छोटे से मकान में रह रहा था जिसे उसने अपनी मेहनत की कमाई से ख़रीदा था। उसने अपने गाँव से एक आदमी धीरज को अपने घरेलू कामों में मदद के लिए रखा था और उसे एक कमरा भी उसी मकान के पीछे दे दिया था।
धीरज आँगन के पास दरवाज़े पर बैठा था, आँखों में आँसू लिए। इंस्पेक्टर पाल की निगाहों में वही पहला शक था।
रात के खाने का सैंपल फ़ॉरेंसिक जाँच के लिए भेजा गया। जाँच में पाया गया कि अचार में ज़हरीला पदार्थ मिला हुआ था। इस खोज ने धीरज के ख़िलाफ़ शक और पुख़्ता कर दिया।
तलाशी में एक सीसीटीवी क्लिप भी मिल गई जो कि सामने वाली क्लीनिक से रिकॉर्ड हुई थी। वीडियो में धीरज को रात 9:10 बजे अनिल के घर से बाहर जाते और 9:55 बजे एक जार लेकर वापस आते हुए दिखाया गया। उसे पुलिस स्टेशन बुला लिया गया।
“उस जार में क्या था, और तुम इतनी देर रात उसे लेकर क्यों आए?” इंस्पेक्टर ने पूछते हुए वीडियो क्लिप दिखाई।
“15 साल का लड़का!” इंस्पेक्टर साहब चौंके।
“तुमने ये नहीं पूछा कि इतने छोटे बच्चे को किसने शहर भेज दिया?” पाल ने पूछा।
“उसने बताया कि वो हीरा लाल का बेटा है — अनिल के गाँव का पड़ोसी। वो अकसर आता रहता था। इस बार शहर आकर पेस्टिसाइड ख़रीदने आया था और अपने बेटे को अचार पहुँचाने के लिए भेज दिया।”
इंस्पेक्टर साहब को शक तो था, लेकिन वो धीरज की कहानी को झुठला नहीं पाए। उन्होंने तीन सिपाहियों को उस लड़के की तलाश में लगा दिया, मगर लड़का नहीं मिला।
उधर, जाँच में दो बातें सामने आईं — अनिल की माँ ने कोई अचार नहीं भेजा था और हीरा लाल का कोई बेटा नहीं था — उसकी दो बेटियाँ थीं: रीमा और सुषमा।
अब धीरज पर शक और गहरा होता जा रहा था।
फिर एक शाम, धीरज को वही लड़का एक दुकान के पास खड़ा दिखा। उसने तुरंत एक सिपाही को कॉल किया, और दोनों को थाने लाया गया।
“साहब, यही है वो लड़का जिसने मुझे जार दिया था,” धीरज ने बुलंद आवाज़ में बोला।
“चुप रहो! मैं देखता हूँ,” इंस्पेक्टर साहब गरजकर बोले।
इस बयान से साफ़ हुआ कि लड़का अगवा किया गया था। कुछ दिन पहले ही एक आदमी ने अपने 15 साल के बेटे के गुमशुदा होने की रिपोर्ट लिखवाई थी — उसकी तस्वीर इस लड़के से मिलती थी। अब यह तय हो गया कि किडनैपर और क़ातिल एक ही व्यक्ति था।
“शाबाश बेटे,” पाल बोले और एक सिपाही को उसे घर छोड़ने का आदेश दिया।
अगले दिन अख़बारों में यही ख़बर छाई रही। हृदेश की रिपोर्ट की शहरभर में सराहना हुई।
दोपहर के वक़्त, एक आदमी थाने आया और बताया कि वो ‘इन’ होटल का रिसेप्शनिस्ट है और वही आदमी, जो अख़बार की तस्वीर में था, उसके होटल में कमरा लेने आया था — लेकिन ID कार्ड न होने के कारण उसे मना कर दिया गया।
सीसीटीवी फुटेज में वही वैन, वही कपड़े, वही कद-काठी — लड़के ने उसे पहचान लिया।
पुलिस ने उसकी तस्वीर जारी की और पकड़वाने वाले को 30,000 रुपये इनाम का ऐलान कर दिया।
वो वही आदमी था जो उस दिन ऑटोरिक्शा से उतरकर गया था, जब हृदेश पहली बार मर्डर रिपोर्टिंग पर निकला था।
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