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1222 1222 122 बह्र पर ग़ज़ल और तक़्तीअ

1222 1222 122 बह्र पर ग़ज़ल

1222 1222 122 बह्र पर ग़ज़ल 


हुआ हर एक से झगड़ा हमारा
फ़क़त तुमसे ही है रिश्ता हमारा

ठिकाने लग गयी है अक़्ल अपनी
हमीं को खा गया पैसा हमारा

अब आने लग गए तोहफ़े हमें भी
न जाने उतरा कब क़र्ज़ा हमारा

फ़लक़ छूने की ख़्वाहिश ही नहीं है
भले ही टूटा हो पिंजरा हमारा

बड़ा मुश्किल है वस्ल-ए-यार अब तो
ग़लत-फ़हमी में है लड़का हमारा

डरे लश्कर को हिम्मत दे रहा है
अभी तक ज़िंदा है राजा हमारा

सुनहरी शाम गेसू खोले आई
सहर से था यही दावा हमारा

 - अच्युतम यादव 'अबतर'

वस्ल-ए-यार : प्रेमिका से मिलन 
गेसू : बाल
सहर : सुब्ह 

ग़ज़ल की तक़्तीअ

नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है। 

 हुआ हर ए / क से झगड़ा / हमारा
1222 / 1222 / 122 

फ़क़त तुमसे / ही है रिश्ता / हमारा
1222 / 1222 / 122 



ठिकाने लग / गयी है अक़् / ल अपनी
1222 / 1222 / 122 

हमीं को खा / गया पैसा / हमारा
1222 / 1222 / 122 



अब आने लग / गए तोहफ़े / हमें भी
1222 / 1222 / 122
(अलिफ़ वस्ल --> अब + आने = अबाने 122)

न जाने उत / रा कब क़र्ज़ा / हमारा
1222 / 1222 / 122 



फ़लक़ छूने / की ख़्वाहिश ही / नहीं है
1222 / 1222 / 122 

भले ही टू / टा हो पिंजरा / हमारा
1222 / 1222 / 122 



बड़ा मुश्किल / है  वस्ल-ए-या / र अब तो
1222 / 1222 / 122 

ग़लत-फ़हमी / में है लड़का / हमारा
1222 / 1222 / 122 



डरे लश्कर / को हिम्मत दे / रहा है
1222 / 1222 / 122 

अभी तक ज़िं / दा है राजा / हमारा
1222 / 1222 / 122 



सुनहरी शा / म गेसू खो / ले आई
1222 / 1222 / 122 

सहर से था / यही दावा / हमारा
1222 / 1222 / 122 

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