2212 2212 2212 2212 बह्र पर ग़ज़ल
ऐसा उमूमन तो नहीं होता कि जैसा हो गया
मैं अपनी ग़लती मान के भी आज छोटा हो गया
जब सर-ब-सर दिल मेरा यक-दम से तुम्हारा हो गया
तन्हाई का सदमा यकायक ही पुराना हो गया
आईना हैं ग़ज़लें मिरी उसके सँवरने के लिए
मेरा हर इक इक शेर मानो उसका चेहरा हो गया
हालात अपने देख के वो भी परेशाँ रहता है
चाहे वो कितना ही कहे सबसे कि 'तो क्या हो गया'
मैं दिल में ऐसी आतिशें लेके चला था उस घड़ी
सूरज ने भी आँखें मिलाईं जब तो अंधा हो गया
- अच्युतम यादव 'अबतर'
📖 यह भी पढ़िए:
नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है।
ऐसा उमू / मन तो नहीं / होता कि जै / सा हो गया
2212 / 2212 / 2212 / 2212
मैं अपनी ग़ल / ती मान के / भी आज छो / टा हो गया
2212 / 2212 / 2212 / 2212
जब सर-ब-सर / दिल मेरा यक- / दम से तुम्हा / रा हो गया
2212 / 2212 / 2212 / 2212
तन्हाई का / सदमा यका / यक ही पुरा / ना हो गया
2212 / 2212 / 2212 / 2212
आईना हैं / ग़ज़लें मिरी / उसके सँवर / ने के लिए
2212 / 2212 / 2212 / 2212
मेरा हर इक / इक शेर मा / नो उसका चेह / रा हो गया
2212 / 2212 / 2212 / 2212
(अलिफ़ वस्ल ---> हर + इक = हरिक 12)
हालात अप / ने देख के / वो भी परे / शाँ रहता है
हालात अप / ने देख के / वो भी परे / शाँ रहता है
2212 / 2212 / 2212 / 2212
चाहे वो कित / ना ही कहे / सबसे कि 'तो / क्या हो गया'
2212 / 2212 / 2212 / 2212
मैं दिल में ऐ / सी आतिशें / लेके चला / था उस घड़ी
2212 / 2212 / 2212 / 2212
सूरज ने भी / आँखें मिला / ईं जब तो अं / धा हो गया
2212 / 2212 / 2212 / 2212
0 टिप्पणियाँ