11212 11212 11212 11212 बह्र पर ग़ज़ल

11212 11212 11212 11212 बह्र पर ग़ज़ल 


कभी मैं चलूँ कभी तू चले कभी बे-मज़ा ये सफ़र न हो
किसे मंज़िलों की तलाश है हमें चलते रहने का डर न हो

कहाँ शब है और कहाँ सहर कहाँ धूप और कहाँ चाँदनी
मैं तिरे गुमान में ही रहूँ मुझे इन सभी की ख़बर न हो

गिला मुझसे हो उसे या-ख़ुदा हाँ मगर फ़िराक़ न हो कभी
कि फ़िराक़-ए-यार अगर हुआ, तो ये दास्तान अमर न हो

ये जो आँसुओं का लिफ़ाफ़ा है कई दर्द इस में पले बढ़े
कभी झाँक ले मिरी आँख में तुझे एतिबार अगर न हो

न अयाँ हुईं मिरी ख़ामियाँ न अयाँ हुईं तिरी ख़ामियाँ
कोई करना चाहे भी गर अयाँ तो सदा में उस की असर न हो


 - अच्युतम यादव 'अबतर'

अयाँ : प्रकट


ग़ज़ल की तक़्तीअ

नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है। 

भी मैं चलूँ / कभी तू चले / कभी बे-मज़ा / ये सफ़र न हो
11212 / 11212 / 11212 / 11212

किसे मंज़िलों / की तलाश है / हमें चलते रह / ने का डर न हो
11212 / 11212 / 11212 / 11212



हाँ शब  है  औ / र कहाँ सहर / कहाँ धूप और / कहाँ चाँदनी
11212 / 11212 / 11212 / 11212

मैं तिरे गुमा / न में ही रहूँ  / मुझे इन सभी / की ख़बर न हो
11212 / 11212 / 11212 / 11212



गिला मुझसे हो / उसे या-ख़ुदा / हाँ मगर फ़िरा / क़ न हो कभी
11212 / 11212 / 11212 / 11212

कि फ़िराक़-ए-या / र अगर हुआ, / तो ये दास्ता / न अमर न हो
11212 / 11212 / 11212 / 11212



ये जो आँसुओं / का लिफ़ाफ़ा है / कई  दर्द इस / में पले बढ़े
11212 / 11212 / 11212 / 11212

भी झाँक ले / मिरी आँख में / तुझे एतिबा / र अगर न हो
11212 / 11212 / 11212 / 11212



न अयाँ हुईं / मिरी ख़ामियाँ / न अयाँ हुईं / तिरी ख़ामियाँ
11212 / 11212 / 11212 / 11212

कोई करना चा / हे  भी गर अयाँ / तो सदा में उस / की असर न हो
11212 / 11212 / 11212 / 11212
('कोई' को 22, 21, 12, या 11 भी ले सकते हैं।)


कुछ ज़रूरी बातें :

यह एक बहुत लंबी बह्र है इसलिए अगर आप शायरी करने की शुरुआत कर रहे हैं तो अभी के लिए इस बह्र पर ग़ज़ल न कहें। आप 32 प्रचलित बहरों में किसी आसान बह्र से शुरुआत कीजिए।  


अगर आप इस बह्र पर ग़ज़ल कह रहे हैं तो इसे शिकस्ता बह्र मान कर ही ग़ज़ल कहिए ताकि रवानी की दिक़्क़त न आए। लंबी बह्र होने की वजह से बीच में एक pause आए तो रवानी बनी रहती है।