दो गज़ सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे ज़मींदार कर दिया
राहत इंदौरी साहब का ये शे'र मेरे पसंदीदा शेरों में से एक है। और इसी तरह मौत पर शायरी एक आम मंज़र है शायरी की दुनिया में। सुख़नवरी जज़्बात को अल्फ़ाज़ देती है और मौत एक ऐसा मंज़र है जहाँ मरने वाले शख़्स से जुड़े लोग ख़ासकर कि उसका परिवार इतना ग़मगीन हो जाते हैं कि उन्हें होश ही नहीं रहता। किसी अपने को खोना एक बहुत ही दर्दनाक एहसास है। और देखिए, हर दिन लाखों लोग किसी अपने को खोते हैं।
कई शायरों ने इस दर्द को बयाँ करने के लिए मौत पर शायरी की है। आपके भी ज़ेहन में कोई न कोई शे'र या quote होगा जो मौत पर आधारित है। मैंने भी इस एहसास को जिया है और इसलिए कुछ अश'आर भी कह पाया हूँ। आज मैं अपने वही अश'आर साझा करने जा रहा हूँ। कुछ दिन पहले ही मौत रदीफ़ पर एक ग़ज़ल भी हुई थी वो भी साझा करूँगा। तो चलिए पहले मैं मौत पर मेरे चंद अश'आर पेश करता हूँ।
मौत पर शायरी
मौत पर चंद अश'आर
भर दो मेरे मक़बरे को और फूलों से ज़रा
है ख़फ़ा मुझ से फ़ना उसको मनाना भी तो है
– अच्युतम यादव 'अबतर'
मौत ऐसी मंज़िल है 'अबतर' जिसका तर्ज़-ए-सफ़र है नायाब
इंसाँ थक के बैठे तब भी बढ़ता रहता है आगे ही
– अच्युतम यादव 'अबतर'
वो जाने वाला तो मेरी दुनिया ही जैसे ले गया
और लोग कहते हैं कि ख़ाली हाथ जाते हैं सभी
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ज़िंदगी का हर इक वरक़ पढ़िए बा-शौक़
एक दिन ये किताब लौटानी भी है
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ताकि मिरी इक ख़्वाहिश तो पूरी हो जाए
इसकी ख़ातिर इक तारे ने ख़ुद-कुशी कर ली
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ये ज़िन्दगी की दौड़ दौड़कर मिला ही क्या हमें
न जीता शख़्स घर जा पाता है न हारा शख़्स ही
– अच्युतम यादव 'अबतर'
जब तलक रही तू ऐ ज़िन्दगी रही ज़्यादा
क्या मलाल मुझ को अब कल यहाँ न होने का
– अच्युतम यादव 'अबतर'
थोड़ा सा गँवाता था उन्हें रोज़ मैं 'अबतर'
और रोज़ मुझे थोड़ा गँवाते थे पिता जी
– अच्युतम यादव 'अबतर'
बिक जाने दे ये मेरी साँसें आज तू
इन में ही तो मेरी उधारी रहती है
– अच्युतम यादव 'अबतर'
जंग में बच न पाया सर मेरा
ख़ुल्द में बन गया है घर मेरा
मेरे यारो मुझे इजाज़त दो
इतना ही था यहाँ सफ़र मेरा
– अच्युतम यादव 'अबतर'
रोल नंबर दे रही थी ज़िंदगी जब मौत का कल
पास आके मुझसे बोली पहला नंबर आपका है
– अच्युतम यादव 'अबतर'
'अबतर' न घूमी तेरी तरफ़ एक आँख भी
तू डूबते हुए भी नज़ारा न बन सका
– अच्युतम यादव 'अबतर'
वो इसलिए कि दिल में कहानी उतर सके
इक शख़्स चाहिए जो कि आख़िर में मर सके
– अच्युतम यादव 'अबतर'
रूह ने ख़ुदकुशी कर ली है मेरे अंदर ही
अश्क मजबूर हैं अब लाश उठाने के लिए
– अच्युतम यादव 'अबतर'
इन खिलौनों पे ही तो कब से लेटी है 'अबतर'
लाश अपने बचपन की ढूँढ ली है बक्से से
– अच्युतम यादव 'अबतर'
मन वहाँ भी लग न पाया
क़ब्र में भी देखा रहकर
– अच्युतम यादव 'अबतर'
जिसको समझता था कभी मैं वक़्त की रज़ा
वो मौत ज़िंदगी के इशारे पे आई है
– अच्युतम यादव 'अबतर'
मुझे मर के भी काम आना पड़ा
मेरे नाम पर रास्ते हो गए
– अच्युतम यादव 'अबतर'
सिर्फ़ ख़ामोशी ही है पड़ोसन मेरी
क़ब्र ही बन गया है अब अपना मकाँ
– अच्युतम यादव 'अबतर'
एक एहसान से कम नहीं है ये भी
मौत ने ज़ीस्त का क़र्ज़ हल्का किया
– अच्युतम यादव 'अबतर'
उम्मीद करता आपको मेरी मौत पर शायरी पसंद आ रही होगी। मैंने अपने कुल 20 अश'आर पेश किए जिनमें मौत के मौज़ू' को अलग-अलग नज़रिए से पढ़ा और महसूस दिया। मैंने इसी मौज़ू' को रदीफ़ लेके एक ग़ज़ल भी कही है। चलिए वो भी पढ़ते हैं।
मौत पर ग़ज़ल
ये कौन कहता है मुझे हसरत है मौत की
पर साँस लेते रहना भी ख़िदमत है मौत की
कोई न होश-मंद रहे देखकर इसे
महबूब से भी ख़ूब-रू सूरत है मौत की
हम पारसाओं को भी नहीं मिलता है बहिश्त
क्या इतनी बे-शुऊर अदालत है मौत की
इसके फ़िराक़ से ही बढ़ेगी मिरी हयात
यानी ये बरहमी भी मोहब्बत है मौत की
हाथों में आए जो भी है वो ज़िंदगी की देन
हाथों से जो भी जाए वो क़ीमत है मौत की
– अच्युतम यादव 'अबतर'
मुझी उम्मीद है कि आप को मौत पर मेरी शायरी पसंद आई होगी और कोई न कोई शे'र आपके दिल में घर कर गया होगा। मैं भविष्य में जैसे-जैसे मौत पर नए शे'र कहूँगा इस पोस्ट में आके उन्हें भी जोड़ दूँगा ताकि आप सभी को और ज़ियादा शायरी मिले मौत के विषय पर।
अगर आपको मेरे अश'आर और ग़ज़ल पसंद आएँ तो आप इस ब्लॉग पर अन्य ग़ज़लें पढ़ सकते हैं। वो भी आपको निराश नहीं करेंगी।
धन्यवाद।
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