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25 Heart Touching Ghazals in Hindi

25 Heart Touching Ghazals in Hindi


शायरी का रिश्ता दिल छूने से तो बहुत आम सी बात है। सिर्फ़ शायरी ही नहीं और भी भाषाओं की कविताएँ उठाकर कभी अगर आप देखें तो ज़ियादातर दुख और दर्द की बातें ही की जाती हैं। अब अगर हर शैली की कविताओं में दर्द पढ़ने और महसूस करके को मिलता है तो उनमें से ग़ज़ल भी एक शैली है। यहाँ बात दिल से निकलती है और दिल तक जाती है। तो क्या आपने कभी कोई heart touching ghazal पढ़ी या सुनी है ? आपका जवाब चाहे जो हो लेकिन इस पोस्ट पर आप आए हैं तो अपने पुराने ज़ख्म या ज़िन्दगी के एक तल्ख़ फ़लसफ़े को एक शायर के नज़रिए से देखने। मेरी भी यही कोशिश है कि अपनी उन ग़ज़लों को साझा करूँ जो कहीं न कहीं दर्द के लिफ़ाफ़े में बंद हैं और आपके दिल में घर करने के इंतज़ार में हैं।   

आगे बढ़ने से पहले मैं आप सभी से एक बात साझा करना चाहता हूँ। वो बात ये है कि यहाँ साझा की हुई एक-एक दिल को छूने वाली ग़ज़ल मैंने तब कही थी जब मैं depression में था। उस वक़्त ग़ज़ल ही इकलौती ऐसी चीज़ थी जिससे मुझे कुछ पल अपनी उदासी से छिपने का मौक़ा मिलता था। मेरी शायरी में optimism नहीं है या बहुत कम देखने को मिलता है।  होता है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ ग़म, दर्द, तन्हाई, ख़ौफ़, आदि। हाँ लेकिन ये बात भी सच है कि शेर-ओ-शायरी मेरा सुकून है। तो चलिए अब उन ग़ज़लों की तरफ़ बढ़ते हैं। 

25 Heart Touching Ghazals in Hindi

ग़ज़ल 1 

हर इक दिन दी सदा पर तुम न आए
न की कोई ख़ता पर तुम न आए

तुम्हारी यादों को रक्खा सजा के
किया सब हक़ अदा पर तुम न आए

कभी तो देखने आते मुझे तुम
मैं रोता ही रहा पर तुम न आए

ख़बर पहुँची तो होगी इसकी तुम तक
किया कितना गिला पर तुम न आए

तुम्हारे नाम के ही आबले हैं
हुई कितनी जफ़ा पर तुम न आए

तुम्हीं तो इश्क़ के दरिया में लाए
तुम्हीं थे आसरा पर तुम न आए

ख़फ़ा तुमसे तो हो सकता नहीं मैं
हुआ ख़ुद से ख़फ़ा पर तुम न आए
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 2

वो भी राज़ी न था अंजाम पे आने के लिए
मैंने भी टोका ही था बात बढ़ाने के लिए

मैं निभाने को निभा सकता हूँ हर इक का साथ
साथ में कोई हो तो साथ निभाने के लिए

मुझको क्यों लगता है ऐसा कहीं देखा है तुम्हें
इक जनम कम पड़ा क्या तुमको भुलाने के लिए

रूह ने ख़ुदकुशी कर ली है मेरे अंदर ही
अश्क मजबूर हैं अब लाश उठाने के लिए

ख़ौफ़ वाजिब है परिंदे का दिखे जब लोहा
काम आता है यही पिंजरा बनाने के लिए

रोक लेंगे मुझे ऐसा लगा उनको लेकिन
काँटे कम पड़ गए रस्तों पे बिछाने के लिए
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 3

जो कुछ मिला मुझको मेरी हाजत से तो आधा मिला
हालाॅंकि ख़ुश हूँ जो मिला उम्मीद से ज़्यादा मिला

सब क़ैद रहना चाहते हैं इश्क़ में वरना मियाँ
पहले नहीं हैं आप जिसको कोई दरवाज़ा मिला

बालीदगी का क़त्ल करके फ़ैसले लेता है वो
तुम नाम की रानी हो तुमको नाम का राजा मिला

मेरे अनोखे इस्तिआरे देखना फिर बोलना
और सबका क्या है चाँद बोला और छुटकारा मिला

अबतर ख़ुद अपने आप को मैंने न जाने खोया कब
इक आदमी तो मुझसे भी ज़्यादा मेरे जैसा मिला
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 4 

किस आरज़ू को भला आसरा दिया जाए
किसे ख़ुद अपने ही दिल में डुबा दिया जाए

हवा से हार गया जंग जो चराग़-ए-गोर
बग़ल में उसकी भी तुर्बत बना दिया जाए

अगर सँवरना लिखा है बदन के हिस्से में
तो क्यों न रूह को भी आइना दिया जाए

याॅं नर्म-दिल हैं बहुत से बशर याॅं हैं नादान
अब ऐसे मौक़े पे किसको दग़ा दिया जाए

शिकस्त खा रहे हैं दिल की सुनते-सुनते हम
सलाह-कार हमें अब नया दिया जाए

जो क़र्ज़ मानके हर चीज़ लौटा दे अबतर
उस एक शख़्स को तोहफ़े में क्या दिया जाए
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 5

जवानी ज़ीस्त का ही एक हिस्सा है
पर इसने मेरा बचपन मुझसे छीना है

बजाए ख़ुदकुशी के देखकर शीशा
वो जी भर के अगर रो ले तो अच्छा है

पकड़कर एक उँगली इन किनारों की
नदी ने धीरे धीरे चलना सीखा है

उतरते ही ज़मीं पे रात ने देखा
थका-हारा सा दिन मिट्टी पे सोया है

ख़ुद अपने बच्चे को ही गोद में लेके
मुझे इक अच्छा बेटा बनना आया है

मेरी आँखें मुझे समझे न समझे पर
मेरे आँसू का हर क़तरा समझता है

ज़रा सी बात पर दिल दुखता है 'अबतर'
ये कोई कह दे तो दिल और दुखता है
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 6

ऐसा उमूमन तो नहीं होता कि जैसा हो गया
मैं अपनी ग़लती मान के भी आज छोटा हो गया

जब सर-ब-सर दिल मेरा यक-दम से तुम्हारा हो गया
तन्हाई का सदमा यकायक ही पुराना हो गया

आईना हैं ग़ज़लें मेरी उसके सँवरने के लिए
मेरा हर इक इक शेर मानो उसका चेहरा हो गया

हालात अपने देख के वो भी परेशाँ रहता है
चाहे वो कितना ही कहे सबसे कि तो क्या हो गया

मैं दिल में ऐसी आतिशें लेके चला था उस घड़ी
सूरज ने भी आँखें मिलाईं जब तो अंधा हो गया
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 7

गर यही होगा रवैया तो गए तुम काम से
तुमको तो मेहनत भी करनी है वो भी आराम से

बे-सर-ओ-पा होगा जलसा इब्तिदाई का वहाँ
जाना जाता है जहाँ हर आदमी अंजाम से

जानता हूँ आख़िरश जीतोगे तो तुम ही मगर
दूर रखना है तुम्हें कुछ देर इस इनआम से

तुम ही हो बाद-ए-सबा तुम ही बहारों का निशाँ
कितने गुल डरते हैं मेरी जाँ तुम्हारे नाम से

उन उजालों से तुम्हें क्या ख़ाक हिम्मत आएगी
ख़ौफ़ खाते हैं जो ख़ुद ही आने वाली शाम से
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 8

दोस्ती हो गई है ख़ल्वत से
चाहता था यही मैं मुद्दत से

यूँ किया सौदा मैंने फ़ुर्क़त से
नाम तेरा मिटाया हर ख़त से

है कहाँ वक़्त इक कुली को जो
बच्चों को देख पाए फ़ुर्सत से

तंग-दस्ती की देन है कि वो शख़्स
गुल चुराता है मेरी तुर्बत से

कोई समझा नहीं शजर के दुख
छाँव सबने ख़रीदी दौलत से

मुश्किलें ज़ीना चढ़ती हैं जब भी
हौसले कूद जाते हैं छत से

तुम बने हो मिरे लिए अबतर
ये सदा आ रही है जन्नत से
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 9

या तो रुक जाओ कि शायद मेरा यार आ जाए
घोंप दो वरना ये ख़ंजर कि क़रार आ जाए

क्या ख़बर तेरे तबस्सुम की कुशादा रुत में
मेरे नाशाद लबों पे भी बहार आ जाए

क्या ये तकलीफ़ ही हम-राह रहेगी मेरी
काश पैरों तले इसके कोई ख़ार आ जाए

ज़ेब-ओ-ज़ीनत न कर इतनी कि कहीं लेके फ़ुगाँ
कल को दर पे तिरे फूलों की क़तार आ जाए

इसलिए की है मोहब्बत की ज़मीं तर उसने
ख़ुश्क हों जैसे ही आँसू तो दरार आ जाए
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 10 

बात बन न पाएगी चंद ईंटें ढहने से
है अज़ीम महल-ए-ग़म मेरे दिल के रक़्बे से

छोड़ दी है दिल ने ज़िद अब उदास रहने की
और चाहते हैं क्या आप एक बच्चे से

तल्ख़-लहजे से दीवार दरमियाँ उठी थी जो
आख़िरश गिरी भी आज लहजा ही बदलने से

पहले तो नहीं समझा उसकी नफ़रतों को मैं
सरहदें हुईं ज़ाहिर हरकतों के नक़्शे से

हूँ मैं बा-हुनर नक़्क़ाश पर अदक़ है ये ज़िम्मा
इक बदन बनाना है वो भी एक साए से

इम्तिहाँ मोहब्बत का राएगाँ गया इतना
नाम लिस्ट में अपना ढूँढता हूँ नीचे से

इन खिलौनों पे ही तो कब से लेटी है 'अबतर'
लाश अपने बचपन की ढूँढ ली है बक्से से
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 11

हम-सफ़र तो चाहिए ऐसा जो शहज़ादा हो
और शहज़ादा भी वो जो उसका दीवाना हो

बिन इजाज़त की तुम्हारी कौन आ सकता है
अब तुम्हीं इस दिल की चाबी और तुम्हीं ताला हो

मेरा क़ातिल बन रहा है इस तरह से मासूम
जैसे उसने मुझको नईं मैंने उसे मारा हो

आता है पानी का प्यासा भी इसी दरिया पर
वो भी आता है जो अपने ख़ून का प्यासा हो

वस्फ़ बोलो इसको या कमबख़्ती इक मुफ़्लिस की
जीता है सौ दिन भले ही रिज़्क़ दो दिन का हो

एक बूढ़ा शख़्स गुज़रा सामने से जब आज
तो लगा जैसे कि आने वाला कल गुज़रा हो

साँसों की बख़्शिश अगर हो जाए मुमकिन अबतर
दहर में फिर हर किसी के हाथ में कासा हो
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 12

एक तो इक परेशानी से अपनी हैरान हूँ
और फिर ऐसी हैरानी से भी परेशान हूँ

जंग ऐसी छिड़ी है ख़ुदा बनने की लोगों में
मानो ख़ुद कह दिया हो ख़ुदा ने मैं इंसान हूँ

उम्र भर पुण्य करके हुआ इल्म इसका मुझे
ख़ुल्द में भी फ़क़त चार दिन का ही मेहमान हूँ

किन चराग़ों को आख़िर बुझाना है किन को नहीं
इल्म है इसका मैं एक मोहतात तूफ़ान हूँ

आपने मरने के बाद की ज़िंदगी देखी है
देखिए मुझको उस ज़िंदगी की ही पहचान हूँ

बोलने लग गई है मेरे घर की हर एक शय
अपने घर में मैं अबतर अब इकलौता सामान हूँ
– अच्युतम यादव 'अबतर'
उम्मीद करती हूँ आपको मेरी Heart Touching Ghazals in Hindi की ये पोस्ट पसंद आ रही होंगी। इनमें कुछ शे’र तो ऐसे हैं जिनके केवल ख़याल भर आने से मेरी आँखें नम हो गईं थीं। वो सभी अश’आर मेरे दिल के बहुत ज़ियादा क़रीब हैं। उन्हें पढ़ता हूँ तो आज भी वो बीते दिनों के दर्द याद आने लगते हैं। ख़ैर, चालिए अब आप नीचे की भी हर एक दर्द भरी ग़ज़ल पढ़ें और सिर्फ़ और सिर्फ़ महसूस करें - एक ऐसा एहसास जिसमें दर्द के साथ-साथ सुकून भी है।
ग़ज़ल 13

कभी भी कोई भी ज़ुल्मी मुझे बशर न लगे
और इस नज़रिये को मेरे कभी नज़र न लगे

अगर नदी के भयानक भँवर से डर न लगे
तो फिर नदी को भी तैराक बे-हुनर न लगे

लगा के दाँव पे डर हारनी है ये बाज़ी
मैं चाहता हूँ कि मुझको अब और डर न लगे

ये क्या तिलिस्म-ए-सहर है या फिर कोई धोका
कि रात रात ही है ऐसा रात-भर न लगे

या तो ये दिल मेरा काँपेगा या तो फिर ये दहर
दबे या फिर उठे पर सौत बे-असर न लगे

बहुत ज़रूरी है फ़य्याज़ों का यहाँ रहना
दुआ है मुझको तेरी उम्र उम्र-भर न लगे

मैं इसलिए भी हूँ किरदारों का बहुत मोहताज
कि अगली नस्लों को ये क़िस्सा मुख़्तसर न लगे
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 14

जो क़र्ज़ मुझ पे था ऐसे चुका दिया मैंने
उसे मिला हुआ तोहफ़ा बता दिया मैंने

दिखाना चाहता था मुझको दिन में तारे वो
उसे ही रात में सूरज दिखा दिया मैंने

यही नतीजा हुआ रौशनी की सोहबत का
कि तपती धूप में साया गँवा दिया मैंने

कभी तो लगता है क्या ख़ूब शय बनाई है
तो लगता है कभी ये क्या बना दिया मैंने

जनाब हिज्र के ताने तो सुनिए कहता है
तुम्हें तुम्हारा ही फिर से बना दिया मैंने

अगर चुनाव कभी बोल पाता तो कहता
कि ख़स के सामने पर्वत झुका दिया मैंने

समय से पहले ही बर्बाद कर लिया ख़ुद को
समय का भी समय ऐसे बचा दिया मैंने
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 15 

गुल-ए-तर भले आप के हो गए
लब-ए-गुल मगर ख़ार से हो गए

ज़रा उम्र का फ़ासला ही है वज्ह
कि ता-उम्र के फ़ासले हो गए

हमारा तो बचपन गया ही नहीं
हमारे खिलौने बड़े हो गए

ज़रा बहस क्या हो गई मौत से
जनाज़े से उठ के खड़े हो गए

बस इक फूँक से बुझ गया आसमाँ
सितारे भी मानो दिए हो गए

हुईं ज़र्द साँसें तिरी इस क़दर
मिरे दिल के पत्थर हरे हो गए

न था कोई घर सो चलो मर के हम
कम-अज़-कम किसी घाट के हो गए

मुझे मर के भी काम आना पड़ा
मिरे नाम पर रास्ते हो गए
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 16

ज़िन्दगी ने मेरे साथ क्या क्या किया
खोल दीं मेरी आँखें ये अच्छा किया

अपनी मंज़िल पे आ ही न पाते कभी
हमने ही रस्तों के साथ धोका किया

एक मल्लाह की खोज है दोस्तों
याद-ए-दिलबर ने दिल को सफ़ीना किया

एक एहसान से कम नहीं है ये भी
मौत ने ज़ीस्त का क़र्ज़ हल्का किया

चाँदनी मेरे हिस्से में आई नहीं
मैंने महताब का ख़ूब पीछा किया

मैं भी ‘अबतर’ शहंशाह था उन दिनों
वक़्त ने ताज को मेरे कासा किया
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 17

उन की क़िस्मत सँवारता हूँ मैं
एक दो लोगों का ख़ुदा हूँ मैं

तेरी यादों के पर कतर के ही
दिल के पिंजरे को खोलता हूँ मैं

फ़ैसले दिल से लेता था सारे
ज़ेहन के शहर में नया हूँ मैं

ख़ामुशी था ज़बान वालों की
बे-ज़बानों की अब सदा हूँ मैं

किस ने आवाज़ दी है पीछे से
किस की ख़ातिर रुका हुआ हूँ मैं

ग़ालिबन सोचता हूँ काफ़ी कम
कुछ ज़ियादा ही सोचता हूँ मैं

ख़ुद से आगे निकल के ऐ राही
ख़ुद को आवाज़ दे रहा हूँ मैं

बारहा करता हूँ हदें मैं पार
फिर कहीं पाँव देखता हूँ मैं

जाने कितनों की हो तुम्हीं मंज़िल
जाने कितनों का रास्ता हूँ मैं
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 18

बह गया उस का भी लहू शायद
थक गया है मिरा 'अदू शायद

रूठ कर आज अपने दिलबर से
लौट आया वो अपने कू शायद

चाहता था तुझे तबाह करूँ
हो गया दिल-पज़ीर तू शायद

रब ने शब में फ़लक के कपड़ों पर
तारों से कर दिया रफ़ू शायद

मेरे दिल को मिरी ज़ेहानत से
करनी है कोई आरज़ू शायद

मुझ को ग़मगीन करती जाती है
आज ख़ल्वत की जुस्तुजू शायद
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 19

लोग अब क्या अपने को बेहतर बनाएँगे
हम ही अपने दिल को अब पत्थर बनाएँगे 

बंद आँखों से भी ये सब गर बनाएँगे
तब भी हर शय आपसे बेहतर बनाएँगे 

अपने ही दिल तक पहुँचना हो हमें तो फिर
आपकी आँखों को ही रहबर बनाएँगे 

दाइमी ख़ामोशी में होंगी शिगाफ़ें तब
जब सदा को अपनी सब नश्तर बनाएँगे 

दिल में आके रहिए चश्म-ए-तर में ख़तरा है
आप दरिया में कहाँ तक घर बनाएँगे 

चंद ख़त अपनी उदासी को लिखेंगे, और
चंद उम्मीदों को नामा-बर बनाएँगे
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 20

हर शख़्स के हाथों में पत्थर आ गए
तक़दीर वाले जो हैं बचकर आ गए 

पैरों तले जिनके ज़मीं तक भी न थी
वो ताज बनके आज सर पर आ गए 

पहुँचे वहाँ तक जीत कर ही सबसे हम
फिर एक दिन हमसे भी बेहतर आ गए 

दिल अपना खोला ताकि कुछ ग़म निकले, पर
इस दर से कुछ और ग़म भी अंदर आ गए

कुछ ढूँढ लाने का बहाना करके हम
कुछ देर को कमरे में रोकर आ गए 

फिर से खुलेंगे आज टाँके हिज्र के
फिर कू में फ़ुर्क़त के रफ़ूगर आ गए
– अच्युतम यादव 'अबतर'

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ग़ज़ल 21

उन्हीं की ज़ीनत उन्हीं का शादाब ख़्वाब हो तुम
जो बनके शबनम गिरे गुलों पे वो आब हो तुम

उलझता रहता था जिसमें सुलझा न पाया जिसको
मिरे हर इक अश्क का इक ऐसा हिसाब हो तुम

जहाँ हिफ़ाज़त के साथ मुस्कान करता हूँ दफ़्न
उन्हीं लबों के मज़ार का इक गुलाब हो तुम

तुम्हारे बिन मेरी कोई ताबानी ही नहीं है
मैं चाँद हूँ और मेरे ही आफ़ताब हो तुम

हज़ार ग़ज़लें लिखीं हैं बे-मिस्ल उसने तुममें
मुबारक उस शाइरा को जिसकी किताब हो तुम

है रंज मुझको कि तिश्नगी बन न पाए तुम गाह
उतार दे सबका जो नशा वो शराब हो तुम
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 22

मुकम्मल आदमी ढूँडा ज़माने में 
मिले वो आख़िरश मुझको फ़साने में

मैं तेरी राह का पत्थर नहीं हूँ दोस्त
समय ज़ाया न कर मुझको हटाने में

हज़ारों ग़लतियाँ कर बैठता हूँ ख़ुद
किसी की एक-इक ग़लती गिनाने में

अगर ऐसे ही इंसाँ होने थे तो फिर
समय ज़ाया हुआ जन्नत बनाने में

दिल-ए-हसरत न कर हँसने की हसरत अब
ये शय है ही नहीं अपने ख़ज़ाने में 

यक़ीनन इंतिहा पर आ गया रिश्ता
लियाक़त आ गई बातें बनाने में

उन्हें तो शाख़-ए-दिल आबाद करनी थीं
बहारें लग गईं पत्ते गिराने में
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 23

हुआ हर एक से झगड़ा हमारा 
फ़क़त तुमसे ही है रिश्ता हमारा

ठिकाने लग गयी है अक़्ल अपनी
हमीं को खा गया पैसा हमारा

अब आने लग गए तोहफ़े हमें भी
न जाने उतरा कब क़र्ज़ा हमारा 

फ़लक़ छूने की ख़्वाहिश ही नहीं है
भले ही टूटा हो पिंजरा हमारा

बड़ा मुश्किल है वस्ल-ए-यार अब तो
ग़लत-फ़हमी में है लड़का हमारा

डरे लश्कर को हिम्मत दे रहा है
अभी तक ज़िंदा है राजा हमारा

ज़मीं का सौदा करने वालो देखो
क़मर पे रक्खा है नक़्शा हमारा

सुनहरी शाम गेसू खोले आई
सहर से था यही दावा हमारा
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 24

ख़ुशियों  से  एक-दम जुदा रही है
ज़िन्दगी   मेरी   बे-मज़ा   रही  है

माजरा  क्या  है  जो मिरी तक़दीर
बे-मुरव्वत   ही  रास  आ  रही  है 

आशिक़ी   ने   रुलाया   है   यारो
बेवफ़ाई    बहुत   हँसा   रही   है

हर तरफ़ मुज़्महिल बशर ही दिखे
ना-मुरादी   बहुत   सता   रही   है

वो    मिरा    चैन    छीनने   वाली
मुझसे  हमदर्दी  क्यों  जता रही है

फिर  से  बनके अरूस   वो  बेवा 
अश्कों  से  आइना  सजा  रही है

आरज़ू  है  कि  ख़ुल्द तक जाऊँ
ख़ुदकुशी  रास्ता  दिखा   रही  है
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ग़ज़ल 25

आज मायूस हो गया है ग़म
फिर भी देखो खड़ा हुआ है ग़म

हम-नवा जैसे क्यों नहीं हो तुम
ऐसा ख़ुशियों से पूछता है ग़म

फैला दे तीरगी दिलों में ये
इक अजब सा कोई दिया है ग़म

आँख भर के मैं जब भी देखूँ उसे
खिलखिलाते हुए दिखा है ग़म

आइने से मुझे मिटाता रहा
मेरी आँखों में जो छुपा है ग़म

मुस्कुराहट की लग न जाए हवा
अश्कों की आग में दबा है ग़म

टूटा दिल वो दरीचा है जिससे
आदतन रोज़ झाँकता है ग़म
– अच्युतम यादव 'अबतर'
ये Heart Touching Ghazals उन एहसासात का नतीजा हैं जिन्हें मैंने जिया, सहा और फिर काग़ज़ पर उतारा। अगर आपने भी अपनी ज़िंदगी के किसी लम्हे को फिर से जिया तो मेरी कोशिश कामयाब रही। दर्द सिर्फ़ माशूका से हिज्र तक सीमित नहीं है, इसका दायरा बहुत बड़ा है। मेरी कोशिश हमेशा ऐसे तख़य्युल पर ख़ास ध्यान देने की होती है जिसमें ज़िंदगी के और भी बड़े फ़लसफ़े छिपे होते हैं। 

आज मैंने जितनी भी दिल को छूने वाली ग़ज़लें साझा कीं वो मेरा नज़रिया है दुनिया को देखने का और लोगों को परखने का। मुझे उम्मीद है हर ग़ज़ल ने आपके शायरी के प्रति प्यार को और उभारा होगा। अगर आपको मेरी ये दिल छूने वाली ग़ज़लें पसंद आईं तो आप इस ब्लॉग पर मेरी और ग़ज़लें भी ज़रूर पढ़ें। वो भी आपको निराश नहीं करेंगी। 

 धन्यवाद।

FAQs – 25 Heart Touching Ghazals in Hindi

Q. क्या चीज़ एक ग़ज़ल को heart touching बनाती है ?
A. वो ग़ज़ल जो आपके किसी एहसास को अलफ़ाज़ दे दे और आपको उस लम्हे में ले जाए जहाँ आप दिमाग़ से नहीं बल्कि दिल से सोचें heart touching ghazals कहलाती हैं।
Q. इन 25 ग़ज़लें किस शायर की हैं ?
A. यह सभी ग़ज़लें मेरी हैं यानी अच्युतम यादव 'अबतर' की।  
Q. 25 ख़ूबसूरत heart touching ghazals कौन सी हैं ?
A. इस ब्लॉग पोस्ट में मैंने ऐसी ही 25 ग़ज़लें साझा की हैं जो आपका दिल छू ले।  
Q. कौन-कौन से शायरों की दर्द भरी ग़ज़लें सबसे ज़्यादा मशहूर हैं?
A. जॉन एलिया, नासिर काज़मी, बशीर बद्र, और मोहम्मद अल्वी जैसे शायरों की दर्द भरी ग़ज़लें बहुत मशहूर हैं।
Q. क्या मैं ये ग़ज़लें अपने इंस्टाग्राम, फेसबुक, आदि पर बतौर कैप्शन या रील इस्तेमाल कर सकता हूँ ?
A. जी हाँ, लेकिन शायर को यानी मुझे क्रेडिट देते हुए ही ऐसा करें।  
Q. दर्द भरी ग़ज़ल पढ़ना दिल का बोझ हल्का करता है क्या?
A. कई लोग मानते हैं कि जब वे दर्द भरी शायरी पढ़ते हैं, तो वे अपने जज़्बात को ज़ाहिर कर पाते हैं और अंदर का बोझ हल्का महसूस करते हैं।
Q. क्या शायरों को ख़ुद दर्द से गुज़रना पड़ता है ताकि वे heart touching ghazals लिख सकें?
A. ज़रूरी नहीं, मगर कई बार व्यक्तिगत अनुभव ग़ज़ल को और सजीव और असरदार बना देते हैं। कुछ शायर कल्पना से भी गहरी ग़ज़लें लिखते हैं।

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