शायर वरुन आनंद एक ऐसे युवा और प्रतिभाशाली शायर हैं जिनकी शायरी दिल में घर कर जाती है। उनके सुख़न ना सिर्फ़ भावनाओं को बयाँ करते हैं, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करते हैं। वे अपने तख़य्युल को इस तरह पिरोते हैं कि हर शेर में ताज़गी भरी हुई होती है।
उनका अंदाज़ सीधा होते हुए भी गहराई से भरा होता है। यूँ कहें कि वे आज की पीढ़ी के उन शायरों में से हैं जो संवेदनाओं को बड़ी ख़ूबसूरती से ज़ुबान देते हैं। चाहे इश्क़ हो, तन्हाई, या ज़िंदगी की कोई उलझन—वरुन आनंद की शायरी हर एहसास को जीने का नाम है। तो आइए, इस पोस्ट "Varun Anand Shayari Collection" में हम वरुन आनन्द की शायरी से रू-ब-रू होते हैं।
वरुन आनन्द की ग़ज़लें
1
ग़ज़ल की चाहतों अशआ'र की जागीर वाले हैं
तुम्हें किस ने कहा है हम बरी तक़दीर वाले हैं
वो जिन को ख़ुद से मतलब है सियासी काम देखें वो
हमारे साथ आएँ जो पराई पैर वाले हैं
वो जिन के पाँव थे आज़ाद पीछे रह गए हैं वो
बहुत आगे निकल आएँ हैं जो ज़ंजीर वाले हैं
हैं खोटी निय्यतें जिन की वो कुछ भी पा नहीं सकते
निशाने क्या लगें उन के जो टेढ़े तीर वाले हैं
तुम्हारी यादें पत्थर बाज़ियाँ करती हैं सीने में
हमारे हाल भी अब हू-ब-हू कश्मीर वाले हैं
– वरुन आनन्द
2
ख़ुद अपने ख़ून में पहले नहाया जाता है
वक़ार ख़ुद नहीं बनता बनाया जाता है
कभी कभी जो परिंदे भी अन-सुना कर दें
तो हाल दिल का शजर को सुनाया जाता है
हमारी प्यास को ज़ंजीर बाँधी जाती है
तुम्हारे वास्ते दरिया बहाया जाता है
नवाज़ता है वो जब भी अज़ीज़ों को अपने
तो सब से बा'द में हम को बुलाया जाता है
हमीं तलाश के देते हैं रास्ता सब को
हमीं को बा'द में रास्ता दिखाया जाता है
– वरुन आनन्द
3
फ़रेबी शीरीं ज़ियादा ज़हीन लोगों से
गुरेज़ करता हूँ मैं ऐसे तीन लोगों से
फ़क़ीर औलिया शाइ'र मतीन लोगों से
मिला-जुला करो इन बेहतरीन लोगों से
ये कितनी लाशें सहेजे कहाँ कहाँ रक्खे
कि तंग आ गई है अब ज़मीन लोगों से
यक़ीन कर वो तिरे पास लौट आएगा
जब उस का उठने लगेगा यक़ीन लोगों से
तुम उस के हुस्न पे जब जब भी तब्सिरा करना
तो पहले मशवरा लेना हसीन लोगों से
ये माँगने पे कहाँ कुछ किसी को देते हैं
जो तेरा हक़ है उसे लड़ के छीन लोगों से
– वरुन आनन्द
4
सच बताएँ तो शर्म आती है
और छुपाएँ तो शर्म आती है
हम पे एहसान हैं उदासी के
मुस्कुराएँ तो शर्म आती है
हार की ऐसी आदतें हैं हमें
जीत जाएँ तो शर्म आती है
उसके आगे ही उसका बख़्शा हुआ
सर उठाएँ तो शर्म आती है
ऐश औकात से ज्यादा की
अब कमाएँ तो शर्म आती है
धमकियाँ ख़ुदकुशी की देते हैं
कर न पाएँ तो शर्म आती है
– वरुन आनन्द
5
काश कि मैं भी होता पत्थर
गर था उन को प्यारा पत्थर
लोगो की तो बात करें क्या
तेरा दिल भी निकला पत्थर
हम दोनों में बनती कैसे
एक था शीशा दूजा पत्थर
शीशा तो कमज़ोर बड़ा था
फिर भी कैसे टूटा पत्थर
सब के हिस्से हीरे मोती
मेरे हिस्से आया पत्थर
पारस था वो तुम ने जाना
सब ने जिस को समझा पत्थर
कल तक फूल थे जिन हाथों में
उन हाथों में आज था पत्थर
– वरुन आनन्द
6
फ़रेबी शीरीं ज़ियादा ज़हीन लोगों से
गुरेज़ करता हूँ मैं ऐसे तीन लोगों से
फ़क़ीर औलिया शाइ'र मतीन लोगों से
मिला-जुला करो इन बेहतरीन लोगों से
ये कितनी लाशें सहेजे कहाँ कहाँ रक्खे
कि तंग आ गई है अब ज़मीन लोगों से
यक़ीन कर वो तिरे पास लौट आएगा
जब उस का उठने लगेगा यक़ीन लोगों से
तुम उस के हुस्न पे जब जब भी तब्सिरा करना
तो पहले मशवरा लेना हसीन लोगों से
ये माँगने पे कहाँ कुछ किसी को देते हैं
जो तेरा हक़ है उसे लड़ के छीन लोगों से
– वरुन आनन्द
7
बहाना कर के वो बिछड़ा था मुझ से
या दूजा वाक़ई अच्छा था मुझ से
उसे जब जब ज़माना तंग करता
वो उसको छोड़ कर लड़ता था मुझ से
महीनों फूल भिजवाने पड़े थे
वो पहली बार जब रूठा था मुझ से
भरोसा फिर किसी पर हो न पाया
तुम्हारा आख़िरी रिश्ता था मुझ से
बड़ी मुद्दत में फिर से हाथ आया
बड़ी उजलत में जो छूटा था मुझ से
बुलंदी पर पहुच कर भूल बैठा
जो अक्सर सीढियाँ लेता था मुझ से
अब उस के बिन भी हँस कर कट रही है
कभी इक पल नहीं कटता था मुझ से
– वरुन आनन्द
8
तेरे पीछे होगी दुनिया पागल बन
क्या बोला मैं ने कुछ समझा पागल बन
आधा दाना आधा पागल नईं नईं नईं
उस को पाना है तो पूरा पागल बन
देखें तुझ को लोग तो पागल हो जाएँ
इतना उम्दा इतना आ'ला पागल बन
लोगों से डर लगता है तो घर में बैठ
जिगरा है तो मेरे जैसा पागल बन
– वरुन आनन्द
9
दुनिया में जो मीठे दरिया होते हैं
वो सब उस के जूठे दरिया होते हैं
बाहर से जो बहते दरिया होते हैं
अन्दर से वो प्यासे दरिया होते हैं
रोने वाले तुझ को इतना इल्म भी है
इक आँसू में कितने दरिया होते हैं
बारिश की बूंदों ने हम को समझाया
कुछ क़तरों में कैसे दरिया होते हैं
अपनी आँखें धोता है वो दरिया में
अब समझा क्यों नीले दरिया होते हैं
उस गाँव से पूछो क़तरे की क़ीमत
जिस गाँव में सूखे दरिया होते हैं
उस की आँख से निकले आँसू हैं वो सब
रस्ते से जो भटके दरिया होते हैं
– वरुन आनन्द
10
कोई मिसाल नहीं है तिरी मिसाल के बाद
मैं बे-ख़याल हुआ हूँ तिरे ख़याल के बाद
बस इक मलाल पे तू ज़िंदगी तमाम न कर
बड़े मलाल मिलेंगे मिरे मलाल के बाद
हर एक ज़ख़्म को अश्कों से धो के चूम लिया
मैं ऐसे ठीक हुआ उस की देख-भाल के बाद
उलझ के रह गया वो जाल में तबीबों के
मरीज़ घर नहीं लौटा है अस्पताल के बाद
दुआ सलाम से आगे मैं बढ़ नहीं पाता
उसे भी सोचना पड़ता है हाल-चाल के बाद
हमारे बीच में जो है सही नहीं है वो
उसे ये याद भी आया तो चार साल के बाद
हज़ारों ख़्वाब जो आँखों के आसरे थे कभी
यतीम हो गए आँखों के इंतिक़ाल के बाद
– वरुन आनन्द
11
अपने बच्चों से पाल पाल के दुख
हम ने रक्खे तिरे सँभाल के दुख
एक दिन की ख़ुराक है मेरी
आप के हैं जो पूरे साल के दुख
मेरी ख़ुशियाँ भी रौंदते हैं सभी
उस के रखते हैं सब सँभाल के दुख
मैं ने मेहनत से सब कमाए हैं
मेरे दुख हैं सभी हलाल के दुख
उन को दरकार है समा'अत भी
दिल से देखे कभी निकाल के दुख
आप के दुख तो आम ही दुख हैं
मेरे दुख हैं सभी कमाल के दुख
आप इंग्लिश में बात करते हैं
आप क्या जानें मीम दाल के दुख
– वरुन आनन्द
12
ये शोख़ियाँ ये जवानी कहाँ से लाएँ हम
तुम्हारे हुस्न का सानी कहाँ से लाएँ हम
मोहब्बतें वो पुरानी कहाँ से लाएँ हम
रुकी नदी में रवानी कहाँ से लाएँ हम
हमारी आँख है पैवस्त एक सहरा में
अब ऐसी आँख में पानी कहाँ से लाएँ हम
हर एक लफ़्ज़ के मा'नी तलाशते हो तुम
हर एक लफ़्ज़ का मा'नी कहाँ से लाएँ हम
चलो बता दें ज़माने को अपने बारे में
कि रोज़ झूटी कहानी कहाँ से लाएँ हम
– वरुन आनन्द
तो ये थीं वरुन आनन्द की कुछ ग़ज़लें। लेकिन वरुन आनन्द की शायरी बिना उनके तन्हा अश'आर के अधूरी है। तो चलिए, अब हम उनके कुछ अश'आर भी देखते हैं।
वरुन आनन्द के अश'आर
प्यार मेरी कमज़ोरी थी और उसने मुझे
जी भर कर कमज़ोर किया फिर छोड़ दिया
– वरुन आनन्द
लोगों को उस का नाम बताने से रह गया
इक लफ़्ज़ था जो शेर में आने से रह गया
इस बार भी उसी की सुनी उस की मान ली
इस बार भी मैं अपनी सुनाने से रह गया
– वरुन आनन्द
थोड़ा सा गँवाता था उन्हें रोज़ मैं 'अबतर'
और रोज़ मुझे थोड़ा गँवाते थे पिता जी
– वरुन आनन्द
न जाने कौन सी आए सदा पसंद उसे
सो हम सदाएँ बदल कर सदाएँ देते रहे
– वरुन आनन्द
थोड़ा सा गँवाता था उन्हें रोज़ मैं 'अबतर'
और रोज़ मुझे थोड़ा गँवाते थे पिता जी
– वरुन आनन्द
हम पे एहसान हैं उदासी के
मुस्कुराएँ तो शर्म आती है
– वरुन आनन्द
ये प्यार तेरी भूल है क़ुबूल है
मैं संग हूँ तू फूल है क़ुबूल है
तू रूठेगी तो मैं मनाऊँगा नहीं
जो रूल है वो रूल है क़ुबूल है
– वरुन आनन्द
मैंने जैसी चाही थी ना वैसी इनमें खनखन नइँ
जितने प्यारे हाथ हैं तेरे उतने प्यारे कंगन नइँ
– वरुन आनन्द
नज़र आए न तू जिनको परेशानी से मरते हैं
जो तुझको देख लेते हैं वो हैरानी से मरते हैं
– वरुन आनन्द
ये कितनी लाशें सहेजे किसे कहाँ रक्खें
कि तंग आ गई है अब ज़मीन लोगों से
– वरुन आनन्द
तेरी निगाह-ए-नाज़ से छूटे हुए दरख़्त
मर जाएँ क्या करें बता सूखे हुए दरख़्त
हैरत है पेड़ नीम के देने लगे हैं आम
पगला गए हैं आपके चूमे हुए दरख़्त
– वरुन आनन्द
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको वरुन आनन्द की शायरी पसंद आई होगी। मुझे कॉमेंट बॉक्स के ज़रिए अपना पसंदीदा शे'र या ग़ज़ल ज़रूर बताएँ। नीचे कुछ और शायरों के शायरी संकलन हैं। आप चाहें तो उन्हें भी पढ़ सकते हैं।
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