दोस्तो, अगर आपने शायरी के नियम सतही तौर पे पढ़े होंगे तो शायद आपने अलिफ़ वस्ल का नाम सुना होगा। चलिए अगर नहीं भी सुना तो आज इसके बारे में जान लीजिए। शायरी में शे'र कहते हुए अलिफ़ वस्ल का इस्तेमाल बहुत आम बात है। इज़ाफ़त और वाव-ए-अत्फ़ के मुक़ाबले अलिफ़ वस्ल के उदाहरण आज भी मिलते हैं और वो भी बड़ी संख्या में। तो चलिए, पहले समझते हैं कि अलिफ़ वस्ल होता क्या है।
अलिफ़ वस्ल क्या है
अगर किसी शब्द के अंत में कोई बिना मात्रा वाला व्यंजन हो और उस शब्द के ठीक बाद एक ऐसा शब्द हो जो किसी स्वर से शुरू हो रहा हो तो ऐसे में उस व्यंजन और स्वर का योग किया जा सकता है। इस योग के बाद बदला हुआ उच्चारण अलिफ़ वस्ल कहलाता है। उदाहरण - 'याद आया' का मूल वज़्न है 21 22 लेकिन अलिफ़ वस्ल करने पर याद + आया = यादाया 222 हो जाएगा।
ऊपर वाला उदाहरण ध्यान से पढ़ें। याद के 'द' में कोई दीर्घ स्वर नहीं जुड़ा है और 'याद' के ठीक बाद 'आया' है, जिसकी शुरुआत स्वर से हो रही है। यानी इन दोनों लफ़्ज़ों को जोड़कर एक साथ बोला जा सकता है --> याद + आया = यादाया।
अलिफ़ वस्ल इन स्वर के साथ होता है : अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं
अलिफ़ वस्ल में मात्रा गणना :
अलिफ़ वस्ल करने के बाद जैसा उच्चारण होता है उसी के मुताबिक़ वज़्न तय होता है। उदाहरण के तौर पर 'जब अपना' में अलिफ़ वस्ल करने पर 'जबपना' यानी 122 होगा। यहाँ ध्यान देने वाली बात ये भी है कि मात्रा गिराने की छूट अलिफ़ वस्ल में भी मिलती है। तो 'जबपना' 122 की मात्रा गिरा कर 121 भी कर सकते हैं।
नोट : याद रखें कि अलिफ़ वस्ल केवल उच्चारण के समय ही होता है लिखते समय नहीं। इसलिए लिखा 'जब अपना ' ही जाएगा 'जबपना' नहीं।
तो दोस्तो, उम्मीद करता हूँ कि अब आपको अलिफ़ वस्ल के बारे में जानकारी हो गई होगी। मैं इसी तरह अपने इस ब्लॉग पर शायरी की बारीकियों पर बातें करता रहता हूँ। आप Blog सेक्शन पर जाके अन्य पोस्ट्स भी पढ़ सकते हैं या मेरी ग़ज़लें भी पढ़ सकते हैं। अंत तक बने रहने के लिए शुक्रिया।
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