क़ाफ़िया के नियम व दोष

दोस्तो, ग़ज़ल कहने के लिए क़ाफ़िया का इल्म होना बहुत ज़रूरी है। जैसा कि हमने पिछले ब्लोग पोस्ट्स में समझा था कि ग़ज़ल में रदीफ़ हो न हो मगर क़ाफ़िया का होना अनिवार्य है। लेकिन कई बार जाने-अनजाने में हमसे भूल हो जाती है और हम क़ाफ़िया के नियमों का उलंघन कर बैठते हैं। तो आज की पोस्ट में हम क़ाफ़िया के नियम व दोष समझेंगे ताकि उन ग़लतियों से बचा जा सके।

क़ाफ़िया क्या होता है 

सबसे पहले तो क़ाफ़िया की परिभाषा देखते हैं - वो शब्द जो रदीफ़ से पहले आता है और हर शे'र में सम तुकांतता के साथ बदलता रहता है उसे क़ाफ़िया कहते हैं। ये तो हो गई क़ाफ़िया की परिभाषा लेकिन अभी भी बात स्पष्ट नहीं हुई होगी। चलिए, उदाहरण सहित समझते हैं। नीचे दिए गए शब्द आपस में हम-क़ाफ़िया हैं :

आ, निभा, बना, जला, सज़ा, हौसला

मैं एक बेहद आसान तरीक़ा बताता हूँ जिससे आप समझ सकें कि कौन-कौन से शब्द हम-क़ाफ़िया होते हैं। देखिए, क़ाफ़िया किन्हीं दो या दो से अधिक शब्दों की आख़िर में आने वाली common sound (व्यंजन + स्वर या सिर्फ़ स्वर) से तय होता है।  जैसा कि आपने ऊपर के उदाहरण देखे, उन सभी शब्दों में common sound '' स्वर की आ रही है इसलिए वे हम-क़ाफ़िया हैं। 

कुछ और उदाहरण लेते हैं - ख़त, मोहब्बत, दौलत, इज़्ज़त, आदि में common sound 'अत' है इसलिए वे हम-क़ाफ़िया हैं। 

घर, शजर, पर, अगर, क़मर, आदि में common sound 'अर' है इसलिए वे हम-क़ाफ़िया हैं।

इस में एक दोष का ख़याल रखना पड़ता है जिसने नाम है इक्फ़ा दोष। इसके बारे में आगे बात करेंगे।

अब हमने क़ाफ़िया समझ लिया है और हम-क़ाफ़िया का नियम भी समझ लिया है। अब बात करते हैं क़ाफ़िया में होने वाले दोषों की।

ग़ज़ल में होने वाले तीन प्रमुख क़ाफ़िया के दोष     

क़ाफ़िया के सभी दोषों को बड़ा दोष माना जाता है। क़ाफ़िया के तीन प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं :

1. इकवा दोष : मतला में क़ाफ़िया लेते वक़्त ध्यान रखना होता है कि उनमें व्यंजन से पहले स्वर भी एक ही हो। जैसे - कल पल के साथ खिल, मिल  हम-क़ाफ़िया नहीं हो सकते। ऊपर जहाँ मैंने क़ाफ़िया समझाया है वहाँ से भी आपको ये पता चल रहा होगा कि ऐसा करने से क़ाफ़िया दोष हो जाएगा। 

2. इक्फ़ा दोष : अगर उच्चारण एक जैसा है लेकिन दोनों शब्दों के आख़िरी व्यंजन अलग हैं तो इक्फ़ा दोष हो जाता है। उदाहरण - अगर केश के साथ शेष क़ाफ़िया बाँधा जाए तो इक्फ़ा दोष हो जाएगा। इसलिए क़ाफ़िया तय करते वक़्त ध्यान दें।  

3. ईता दोष : जब दो शब्दों के मूल रूप के अंत में अक्षर सामान न होते हुए भी शब्द किसी कारण समतुकांत होने का भ्रम पैदा करें और उसे क़ाफ़िया के रूप में मतले में इस्तेमाल कर लिया जाए तो ईता दोष हो जाता है। उदाहरण - 'करता','पड़ता' सुनने में हम-क़ाफ़िया लगते हैं लेकिन इन दोनों शब्दों का मूल रूप है 'कर' और 'पड़' जो कि आपस में हम-क़ाफ़िया नहीं हैं। 

एक और उदाहरण से समझते हैं - मान लीजिए मतले में क़ाफ़िए लिए गए हैं 'जलाया' और 'मिटाया।' लेकिन ये मूल शब्द नहीं हैं। मूल शब्द हैं 'जल' और 'मिट' जो कि हम-क़ाफ़िया नहीं हैं यानी कि ईता दोष उत्पन्न हो गया। ध्यान रखें कि ऐसी जगह पर 'आया' रदीफ़ का हिस्सा हो जाता है।     

ईता दोष से बचने के लिए मतले में एक क़ाफ़िया मूल रूप का होना चाहिए।  उदाहरण - अगर मतले में 'पड़ता' और 'तन्हा' इस्तेमाल किया जाए तो ये हम-क़ाफ़िया होंगे क्योंकि 'तन्हा' मूल रूप में है और '' स्वर common sound है।

एक और तरीक़ा है ईता दोष से बचने का और वो ये है कि मतला के दोनों क़ाफ़ियों में प्रत्यय अलग-अलग हों। उदाहरण - मतले में 'समझदार' और 'गुनहगार' को क़ाफ़िया ले सकते हैं। 

नोट : कोशिश करें कि मतले में क़ाफ़िया तय करते वक़्त ऐसा क़ाफ़िया लें जिसके हम-क़ाफ़िया आसानी से मिल जाएँ वरना आप क़ाफ़िए में ही उलझ जाएँगे। दूसरी बात, एक ही क़ाफ़िए को एक ही ग़ज़ल में कई बार इस्तेमाल करने से बचें। 

तो दोस्तो, उम्मीद करता हूँ कि आपको अब क़ाफ़िया के नियम व दोष समझ में आ गए होंगे।  मैंने पूरी कोशिश की है कि जितना आसानी से समझा सकूँ उतना आसानी से समझाऊँ। फिर भी अगर आपका कोई सवाल है तो कॉमेंट बॉक्स के ज़रिए आप मुझसे पूछ सकते हैं। मैं इसी तरह शायरी की बारीकियाँ अपने इस ब्लॉग पर प्रकाशित करता रहता हूँ ताकि आपकी शायरी में भी सुधार आए। अगर आपको मेरी कोशिश अच्छी लगे तो Blog सेक्शन पर जाके मेरे अन्य ब्लोग पोस्ट्स भी ज़रूर पढ़ें। अंत तक बने रहने के लिए आपका शुक्रिया।