Shayari Explanation सीरीज़ में आपका इस्तक़बाल। आज हम जिस शायर का कलाम ले कर आए हैं वो हैं फ़ैज़ अहमद फैज़। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी में एक अलग ही पैनापन है जो दिल को छू लेती है। Faiz Ahmad Faiz Shayari Collection में हमने उनके ऐसे ही अश'आर पेश किए हैं और वो भी उनके मा'नी के साथ। फ़ैज़ साहब की शायरी ज़िंदगी के कई पहलुओं को समेटे हुए है जिसे आज हम आप तक पहुँचाने वाले हैं।
Faiz Ahmad Faiz Shayari Collection
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
ये शे'र बहुत ही मक़बूल है। शायरी में मोहब्बत और मिलन की ही बातें अक्सर होती हैं। एक आम आदमी शायरी को ऐसे ही देखता है। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का ये शे'र इसके विपरीत है और इसमें शायर कह रहा है कि ज़िंदगी में सिर्फ़ मोहब्बत ही नहीं है जहाँ आदमी को दुःख झेलने पड़ते हैं बल्कि और भी बहुत सारी वजह हो सकती हैं। फिर वो ये भी कहता है कि सिर्फ़ मिलन ही इकलौती राहत नहीं है क्योंकि ज़िंदगी में और भी बहुत कुछ है जिससे आदमी को राहत मिलती है।
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
यह शेर हौसले की मिसाल है। शायर कह रहा है कि वो नाकाम हुआ है लेकिन इस नाकामी में भी उसने उम्मीद नहीं छोड़ी है। वो इस बात पर भी ज़ोर दे रहा है कि ये लम्हा लंबा हो सकता है लेकिन जिस तरह शाम ढलती है उस तरह उसके भी बुरे दिन ख़त्म हो जाएँगे। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने इस शे'र के ज़रिए कहीं न कहीं हालात से शिकायत करने से मना किया है। यह शे'र भी बहुत मक़बूल है।
उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर
कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं
इस शे'र को Faiz Ahmad Faiz Shayari Collection में इसलिए शामिल किया गया है क्योंकि ये बिछड़ने का एहसास और मजबूरी दर्शाता है। शायर कह रहा है कि वो अपनी महबूबा से दूर आ गया है लेकिन उसका दिल अब भी वहीं है जहाँ उसकी महबूबा है। मिसरा-ए-सानी को फ़ैज़ साहब ने बहुत ख़ूबसूरती से कहा है। आपको फ़ैज़ साहब के इस तरह के कई शे'र मिलेंगे।
ये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदम
विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं
ये शेर मोहब्बत के गहरे फ़लसफ़े और हक़ीक़त दोनों को बहुत ख़ूबसूरती से बयाँ कर रहा है। शायर यहाँ मोहब्बत की हक़ीक़त समझा रहा है - इश्क़ में चाह होना स्वाभाविक है, पर सिर्फ़ चाहने से विसाल (मिलन) नहीं होता। मिलन तक पहुँचने के लिए क़िस्मत, वक़्त, सब्र, और क़ुरबानी की भी ज़रूरत पड़ती है। यानी मोहब्बत सिर्फ़ आरज़ू नहीं — एक सफ़र है, जिसमें बहुत कुछ देना पड़ता है।
सारी दुनिया से दूर हो जाए
जो ज़रा तेरे पास हो बैठे
इस शे'र में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ अपनी माशूका की तारीफ़ करते हुए कह रहे हैं कि जो भी उसके पास बैठे - यानी उसके क़रीब जाए, वो दुनिया भर के दुख-दर्द और तक़लीफ़ों से दूर हो जाता है। इस शे'र में गहराई कुछ इस वजह से है कि शायर ने महज़ किसी के साथ होने की तुलना क़ायनात की हर मुसीबत से की है और ये भी स्पष्ट किया है कि ये मुसीबतें उन पे कोई असर नहीं करतीं।
जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी
जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई
इस शे'र में शायर कहता है कि महबूब की मौजूदगी या याद से उसकी पूरी कायनात रंग बदल लेती है — जब वो उसे याद करता है, तो सुब्ह भी महक उठती है, यानी हर चीज़ में ताज़गी आ जाती है और जब वो उसके ग़म में डूबता है, तो रात भी मचल जाती है, यानी रात की तन्हाई उसे बहुत तंग करती है। यहाँ ये दर्शाने का प्रयास है कि प्रेम इतना गहरा है कि सुब्ह की रौशनी और रात की तन्हाई दोनों पर असर डाल देता है।
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे
हम ने Faiz Ahmad Faiz Shayari Collection में इस शे'र पर ख़ास तवज्जोह दिया है। ये शे'र जूनून और हौसला दर्शाता है। शायर कह रहा है कि आगे बढ़ते चलो, बिना डरे और सिर्फ़ अपनी मंज़िल पर जा कर ही ठहरना है, उससे पहले नहीं। ये मुमकिन है कि सफ़र में दर्द, संघर्ष और बलिदान की ज़रुरत पड़े इसलिए इनसे कतराना नहीं है और आगे बढ़ते जाना है।
उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है
जो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे
ये एक कमाल का दार्शनिक शे'र है। शायर कहता है कि इस दुनिया में जितनी भी तरक़्क़ी, नई खोजें, या बदलाव हुए हैं वो सिर्फ़ और सिर्फ़ उन लोगों ने किए हैं जो दीवाने थे न की अक़्लमंद। ये क्रांतिकारियों, शायरों, और सोच बदलने वालों की तरफ़ इशारा करता है जो समाज के नियमों को चुनौती देते हैं और दुनिया को कुछ नया दे कर जाते हैं।
अब अपना इख़्तियार है चाहे जहाँ चलें
रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम
ये शे'र प्रेरणा और आत्मविश्वास से भरा हुआ है। शायर कहता है कि अब वो किसी के रहबरी का मोहताज नहीं रहा। उसने अपनी सोच, अपना रास्ता ख़ुद ही चुन लिया है, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो। ये किसी ऐसे इंसान का बयान है जिसने गुरु या महबूब से दूर होकर अपनी मंज़िल ख़ुद तलाशनी शुरू कर दी है।
दोस्तो, उम्मीद करता हूँ कि आपको Faiz Ahmad Faiz Shayari Collection पसंद आया होगा। इस ब्लॉग पोस्ट में हमने वही अश'आर लिए हैं जो हमारी नज़र में फ़ैज़ साहब के सबसे ख़ूबसूरत अश'आर हैं। आप अपना पसंदीदा शे'र कॉमेंट बॉक्स के ज़रिए ज़रूर बताएँ। दोस्तो, हम इस ब्लॉग पर न केवल शायरों के कलाम लाते हैं बल्कि उन्हें explain करने की कोशिश भी करते हैं। जिस तरह इस पोस्ट में हमने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी साझा की है वैसे ही और भी शायरों की शायरी साझा की है। आप उन्हें भी पढ़ सकते हैं। अंत तक बने रहने के लिए आपका शुक्रिया।
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