नाराज़ (बुक रिव्यू)

जब भी नए दौर के बुलंद शायरों के नाम लिए जाते हैं तो उनमें से एक नाम जो ज़ेहन में आता है वो है राहत इंदौरी साहब का। राहत साहब का बे-बाक़ अंदाज़ में शे'र पढ़ना उन्हें भीड़ में एक अलग पहचान देता है। उन्होंने अपनी पूरी उम्र शायरी पे ख़र्च कर दी इसलिए यह हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम इस अदब को ज़ियादा से ज़ियादा लोगों तक पहुँचाएँ।

'नाराज़' किताब के ज़रिए मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने यही करने की कोशिश की है। यह किताब एक ग़ज़ल संग्रह है और इसमें राहत साहब की कुल 90 ग़ज़लें हैं। आज मैं इसी किताब का रिव्यू करने वाला हूँ। अगर आप इस किताब को ख़रीदने वाले हैं तो यह पोस्ट आपके लिए ही है।

नाराज़ (बुक रिव्यू )

अगर आप राहत इंदौरी साहब को पहली बार पढ़ने जा रहे हैं तो आप पाएँगे कि उनकी शायरी बहुत सरल भाषा में होती है। उनकी शायरी न केवल शायरी के जानकार बल्कि सड़कों पर आवारा फिरते लोगों के ज़बान पर भी रहती है। 'नाराज़' ग़ज़ल संग्रह इसी बात का एक उदाहरण है। इस किताब में मौजूद सभी ग़ज़लें बेहद आम बोल-चाल की भाषा में हैं। अगर कहीं कोई मुश्किल लफ़्ज़ है भी तो उसका अर्थ उसी पन्ने पर दिया गया है।  

यह किताब बहुत ज़ियादा पन्नों की भी नहीं है इसलिए आप इसे बहुत जल्द ही पढ़ कर ख़त्म कर सकते हैं। ये लगभग 130 पन्ने की ही है तो अगर आप मोटी किताबों से बचते हैं तब ये ज़रूर पढ़ सकते हैं।

कुछ ग़ज़लें छोटी हैं (यानी कम अश'आर की) तो कुछ ग़ज़लें लंबी भी हैं। इसी तरह कुछ ग़ज़लें छोटी बह्र पर कही गई हैं तो कुछ लंबी बह्र पर। 

मुझे राहत साहब की शायरी तो पसंद है ही लेकिन जो उनका एक अनोखा लहजा है शे'र पढ़ने का, वो मुझे बहुत आकर्षित करता है। मैं जब ये किताब पढ़ रहा था तब मेरे मन में बस राहत साहब का अंदाज़ ही चल रहा था। मैं अक्सर सोचने लगता था कि अगर राहत साहब ये शे'र किसी मुशायरे में पढ़ रहे होते तो कैसे पढ़ते। 


मेरी पसंद के मुताबिक़ इस किताब से चंद अश'आर देखें -

वही वीरानियाँ हैं शहर-ए-दिल में
यहाँ पहले भी आना हो चुका है 

इस शे'र में शायर यह कह रहा है कि उसका दिल पहले भी वीरान था और अब भी वीरान है। शायर कह रहा है कि इस वीरानी को वो पहले भी महसूस कर चुका है और अब भी कर रहा है।  

बहुत कठिन है मसाफ़त नई ज़मीनों की
क़दम-क़दम पे नए आसमान मिलते हैं 

इस शे'र में शायर का कहना है कि उसका सफ़र बहुत कठिन है क्योंकि क़दम-क़दम पर 'नए आसमान' यानी नई चुनौतियाँ उसका इंतज़ार कर रही हैं।

मुझसे मिलने ही नहीं देता मुझे 
क्या पता ये मेरे अंदर कौन है

यह एक philosophical शे'र  है जिसमें शायर ख़ुद मान रहा है कि कोई बात तो है जिसकी वजह से वह introspection नहीं कर पा रहा है। अब यह वजह कुछ भी हो सकती है जो उसकी रोज़ाना की ज़िंदगी से जुड़ी हो। 

ज़िंदगी एक अधूरी तस्वीर
मौत आए तो मुकम्मल हो जाए

यह भी एक कमाल का philosophical शे'र है जहाँ शायर कह रहा है कि 'जीना' सिर्फ़ एक पहलू है जीवन का और जीवन पूरा तभी होता है जब वह अपने 'अंजाम' पर यानी मौत पर आए।

तो दोस्तो, उम्मीद करता हूँ कि इस बुक रिव्यू से आपको ज़रूर कुछ मदद मिली होगी ये तय करने में कि राहत इंदौरी साहब की किताब 'नाराज़' आपको ख़रीदनी है या नहीं। अगर आप मुझसे पूछें तो मैं यही कहूँगा कि अगर आपने ज़ियादा शायरी नहीं पढ़ी या सुनी है तब आप यह किताब ज़रूर पढ़ें। यक़ीन मानिए, आपको शायरी की दुनिया से मोहब्बत हो जाएगी इस किताब को पढ़कर। तो आज के लिए इतना काफ़ी है, मिलते हैं अगले blog post में। अंत तक बने रहने के लिए आपका शुक्रिया।