साहित्य की दुनिया में कुछ नाम वक़्त से आगे चलते हैं — वे न केवल अपने दौर की आवाज़ बनते हैं, बल्कि आने वाली नस्लों की सोच को भी दिशा देते हैं। ऐसे ही एक मशहूर शायर हैं जव्वाद शैख़, जिनकी कलम ने दर्द को भी सलीक़ा सिखाया, ख़ामोशी को भी ज़ुबाँ दी।
उनका कहा हुआ हर शे'र सिर्फ़ शे'र नहीं, बल्कि ज़िंदगी की किसी न किसी परछाई का बयान होता है। उनकी शायरी पढ़ते हुए लगता है जैसे लफ़्ज़ों में कोई रूह उतर आई हो — एक रूह जो हर दिल को छूती है, हर ज़ख़्म को समझती है। तो आइए इस पोस्ट "Jawad Sheikh Shayari Collection" में हम उनकी कुछ ग़ज़लें और अश'आर पढ़ते हैं।
जव्वाद शैख़ की ग़ज़लें
1
कोई इतना प्यारा कैसे हो सकता है
फिर सारे का सारा कैसे हो सकता है
तुझ से जब मिल कर भी उदासी कम नहीं होती
तेरे बग़ैर गुज़ारा कैसे हो सकता है
कैसे किसी की याद हमें ज़िंदा रखती है
एक ख़याल सहारा कैसे हो सकता है
यार हवा से कैसे आग भड़क उठती है
लफ़्ज़ कोई अँगारा कैसे हो सकता है
कौन ज़माने-भर की ठोकरें खा कर ख़ुश है
दर्द किसी को प्यारा कैसे हो सकता है
हम भी कैसे एक ही शख़्स के हो कर रह जाएँ
वो भी सिर्फ़ हमारा कैसे हो सकता है
कैसे हो सकता है जो कुछ भी मैं चाहूँ
बोल ना मेरे यारा कैसे हो सकता है
- जव्वाद शैख़2
अ'र्ज़-ए-अलम ब-तर्ज़-ए-तमाशा भी चाहिए
दुनिया को हाल ही नहीं हुलिया भी चाहिए
ऐ दिल किसी भी तरह मुझे दस्तियाब कर
जितना भी चाहिए उसे जैसा भी चाहिए
दुख ऐसा चाहिए कि मुसलसल रहे मुझे
और उस के साथ साथ अनोखा भी चाहिए
इक ज़ख़्म मुझ को चाहिए मेरे मिज़ाज का
या'नी हरा भी चाहिए गहरा भी चाहिए
इक ऐसा वस्फ़ चाहिए जो सिर्फ़ मुझ में हो
और उस में फिर मुझे यद-ए-तूला भी चाहिए
रब्ब-ए-सुख़न मुझे तिरी यकताई की क़सम
अब कोई सुन के बोलने वाला भी चाहिए
क्या है जो हो गया हूँ मैं थोड़ा बहुत ख़राब
थोड़ा बहुत ख़राब तो होना भी चाहिए
हँसने को सिर्फ़ होंट ही काफ़ी नहीं रहे
'जव्वाद-शैख़' अब तो कलेजा भी चाहिए
- जव्वाद शैख़3
टूटने पर कोई आए तो फिर ऐसा टूटे
कि जिसे देख के हर देखने वाला टूटे
तू उसे किस के भरोसे पे नहीं कात रही??
चर्ख़ को देखने वाली!! तिरा चर्ख़ा टूटे
अपने बिखरे हुए टुकड़ों को समेटे कब तक??
एक इंसान की ख़ातिर कोई कितना टूटे
कोई टुकड़ा तिरी आँखों में न चुभ जाए कहीं
दूर हो जा कि मिरे ख़्वाब का शीशा टूटे
मैं किसी और को सोचूँ तो मुझे होश आए
मैं किसी और को देखूँ तो ये नश्शा टूटे
रंज होता है तो ऐसा कि बताए न बने
जब किसी अपने के बाइ'स कोई अपना टूटे
पास बैठे हुए यारों को ख़बर तक न हुई
हम किसी बात पे इस दर्जा अनोखा टूटे
इतनी जल्दी तो सँभलने की तवक़्क़ो' न करो!!
वक़्त ही कितना हुआ है मिरा सपना टूटे
दाद की भीक न माँग!! ऐ मिरे अच्छे शाएर!!
जा तुझे मेरी दुआ है तिरा कासा टूटे
वर्ना कब तक लिए फिरता रहूँ उस को 'जव्वाद'
कोई सूरत हो कि उम्मीद से रिश्ता टूटे
- जव्वाद शैख़ 4
आप जैसों के लिए इस में रखा कुछ भी नहीं
लेकिन ऐसा तो न कहिए कि वफ़ा कुछ भी नहीं
आप कहिए तो निभाते चले जाएँगे मगर
इस तअ'ल्लुक़ में अज़िय्यत के सिवा कुछ भी नहीं
मैं किसी तरह भी समझौता नहीं कर सकता
या तो सब कुछ ही मुझे चाहिए या कुछ भी नहीं
कैसे जाना है कहाँ जाना है क्यूँ जाना है
हम कि चलते चले जाते हैं पता कुछ भी नहीं
हाए इस शहर की रौनक़ के मैं सदक़े जाऊँ
ऐसी भरपूर है जैसे कि हुआ कुछ भी नहीं
फिर कोई ताज़ा सुख़न दिल में जगह करता है
जब भी लगता है कि लिखने को बचा कुछ भी नहीं
अब मैं क्या अपनी मोहब्बत का भरम भी न रखूँ
मान लेता हूँ कि उस शख़्स में था कुछ भी नहीं
मैं ने दुनिया से अलग रह के भी देखा 'जव्वाद'
ऐसी मुँह-ज़ोर उदासी की दवा कुछ भी नहीं
- जव्वाद शैख़5
एक तस्वीर कि अव्वल नहीं देखी जाती
देख भी लूँ तो मुसलसल नहीं देखी जाती
देखी जाती है मोहब्बत में हर इक जुम्बिश-ए-दिल
सिर्फ़ साँसों की रिहर्सल नहीं देखी जाती
इक तो वैसे बड़ी तारीक है ख़्वाहिश-नगरी
फिर तवील इतनी कि पैदल नहीं देखी जाती
ऐसा कुछ है भी नहीं जिस से तुझे बहलाऊँ
ये उदासी भी मुसलसल नहीं देखी जाती
सामने इक वही सूरत नहीं रहती अक्सर
जो कभी आँख से ओझल नहीं देखी जाती
मैं ने इक उम्र से बटवे में सँभाली हुई है
वही तस्वीर जो इक पल नहीं देखी जाती
अब मिरा ध्यान कहीं और चला जाता है
अब कोई फ़िल्म मुकम्मल नहीं देखी जाती
इक मक़ाम ऐसा भी आता है सफ़र में 'जव्वाद'
सामने हो भी तो दलदल नहीं देखी जाती
- जव्वाद शैख़ 6
मैं चाहता हूँ कि दिल में तिरा ख़याल न हो
अजब नहीं कि मिरी ज़िंदगी वबाल न हो
मैं चाहता हूँ तू यक-दम ही छोड़ जाए मुझे
ये हर घड़ी तिरे जाने का एहतिमाल न हो
मैं चाहता हूँ मोहब्बत पे अब की बार आए
ज़वाल ऐसा कि जिस को कभी ज़वाल न हो
मैं चाहता हूँ मोहब्बत सिरे से मिट जाए
मैं चाहता हूँ उसे सोचना मुहाल न हो
मैं चाहता हूँ मोहब्बत मुझे फ़ना कर दे
फ़ना भी ऐसा कि जिस की कोई मिसाल न हो
मैं चाहता हूँ मोहब्बत मिरा वो हाल करे
कि ख़्वाब में भी दोबारा कभी मजाल न हो
मैं चाहता हूँ कि इतना ही रब्त रह जाए
वो याद आए मगर भूलना मुहाल न हो
मैं चाहता हूँ मिरी आँखें नोच ली जाएँ
तिरा ख़याल किसी तौर पाएमाल न हो
मैं चाहता हूँ कि मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हो जाऊँ
और इस तरह कि कभी ख़ौफ़-ए-इंदिमाल न हो
मिरी मिसाल हो सब की निगाह में 'जव्वाद'
मैं चाहता हूँ किसी और का ये हाल न हो
- जव्वाद शैख़7
ये वहम जाने मेरे दिल से क्यूँ निकल नहीं रहा
कि उस का भी मिरी तरह से जी सँभल नहीं रहा
कोई वरक़ दिखा जो अश्क-ए-ख़ूँ से तर-ब-तर न हो
कोई ग़ज़ल दिखा जहाँ वो दाग़ जल नहीं रहा
मैं एक हिज्र-ए-बे-मुराद झेलता हूँ रात दिन
जो ऐसे सब्र की तरह है जिस का फल नहीं रहा
तो अब मिरे तमाम रंज मुस्तक़िल रहेंगे क्या?
तो क्या तुम्हारी ख़ामुशी का कोई हल नहीं रहा?
कड़ी मसाफ़तों ने किस के पाँव शल नहीं किए?
कोई दिखाओ जो बिछड़ के हाथ मल नहीं रहा
- जव्वाद शैख़8
मौला किसी को ऐसा मुक़द्दर न दीजियो
दिलबर नहीं तो फिर कोई दीगर न दीजियो
अपने सवाल सहल न लगने लगें उसे
आते भी हों जवाब तो फ़र-फ़र न दीजियो
चादर वो दीजियो उसे जिस पर शिकन न आए
जिस पर शिकन न आए वो बिस्तर न दीजियो
आए न कार-ए-शुक्र-गुज़ारी पे कोई हर्फ़
जब दीजियो तो ज़र्फ़ से बढ़ कर न दीजियो
बिखराओ कुछ नहीं भी सिमटते मिरे अज़ीज़
अपने किसी ख़याल को पैकर न दीजियो
तफ़रीक़ रहने दीजियो तारीफ़-ओ-तंज़ में
अब के शराब ज़हर मिला कर न दीजियो
या दिल से तर्क कीजियो दस्तार का ख़याल
या उस मुआ'मले में कभी सर न दीजियो
कहियो कि तू ने ख़ूब बनाई है काएनात
लेकिन उसे लिखाई के नंबर न दीजियो
मेआ'र से सिवा यहाँ रफ़्तार चाहिए
'जव्वाद' उस को आख़िरी ओवर न दीजियो
- जव्वाद शैख़9
इधर ये हाल कि छूने का इख़्तियार नहीं
उधर वो हुस्न कि आँखों पे ए'तिबार नहीं
मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ
मुझे किसी पे भी अब कोई ए'तिबार नहीं
तुम अपनी हालत-ए-ग़ुर्बत का ग़म मनाते हो
ख़ुदा का शुक्र करो मुझ से बे-दयार नहीं
मैं सोचता हूँ कि वो भी दुखी न हो जाए
ये दास्तान कोई ऐसी ख़ुश-गवार नहीं
तो क्या यक़ीन दिलाने से मान जाओगे?
यक़ीं दिलाऊँ कि ये हिज्र दिल पे बार नहीं
क़दम क़दम पे नई ठोकरें हैं राहों में
दयार-ए-इश्क़ में कोई भी कामगार नहीं
यही सुकून मिरी बे-कली न बन जाए
कि ज़िंदगी में कोई वजह-ए-इन्तिज़ार नहीं
ख़ुदा के बारे में इक दिन ज़रूर सोचेंगे
अभी तो ख़ुद से तअल्लुक़ भी उस्तुवार नहीं
गिला तो मुझ से वो करता है इस तरह 'जव्वाद'
कि जैसे मैं तो जुदाई में सोगवार नहीं
- जव्वाद शैख़10
मिरे हवास पे हावी रही कोई कोई बात
कि ज़िंदगी से सिवा ख़ास थी कोई कोई बात
ये और बात कि महसूस तक न होने दूँ
जकड़ सी लेती है दिल को तिरी कोई कोई बात
कोई भी तुझ सा मुझे हू-ब-हू कहीं न मला
किसी किसी में अगरचे मिली कोई कोई बात
ख़ुशी हुइ कि मुलाक़ात राएगाँ न गई
उसे भी मेरी तरह याद थी कोई कोई बात
बदन में ज़हर कै मानिंद फैल जाती है
दिलों में ख़ौफ़ से सहमी हुइ कोई कोई बात
कभी समझ नहीं पाए कि उस में क्या है मगर
चली तो ऐसे कि बस चल पड़ी कोई कोई बात
वज़ाहतों में उलझ कर यही खिला 'जव्वाद'
ज़रूरी है कि रहे अन-कही कोई कोई बात
- जव्वाद शैख़11
इश्क़ ने जब भी किसी दिल पे हुकूमत की है
तो उसे दर्द की मेराज इनायत की है
अपनी ताईद पे ख़ुद अक़्ल भी हैरान हुई
दिल ने ऐसे मिरे ख़्वाबों की हिमायत की है
शहर-ए-एहसास तिरी याद से रौशन कर के
मैं ने हर घर में तिरे ज़िक्र की जुरअत की है
मुझ को लगता है कि इंसान अधूरा है अभी
तू ने दुनिया में उसे भेज के उजलत की है
शहर के तीरा-तरीं घर से वो ख़ुर्शीद मिला
जिस की तनवीर में तासीर क़यामत की है
सोचता हूँ कि मैं ऐसे में किधर को जाऊँ
तेरा मिलना भी कठिन, याद भी शिद्दत की है
इस तरह औंधे पड़े हैं ये शिकस्ता जज़्बे
जैसे इक वहम ने इन सब की इमामत की है
ये जो बिखरी हुई लाशें हैं वरक़ पर 'जव्वाद'
ये मिरे ज़ब्त से लफ़्ज़ों ने बग़ावत की है
- जव्वाद शैख़ 12
सब को बचाओ ख़ुद भी बचो फ़ासला रखो
अब और कुछ करो न करो फ़ासला रखो
ख़तरा तो मुफ़्त में भी नहीं लेना चाहिए
घर से निकल के मोल न लो फ़ासला रखो
फ़िलहाल इस से बचने का है एक रास्ता
वो ये कि इस से बच के रहो फ़ासला रखो
दुश्मन है और तरह का जंग और तरह की
आगे बढ़ो न पीछे हटो फ़ासला रखो
हल भी तलाश कर लिया जाएगा अन-क़रीब
तुम इस वबा को बढ़ने न दो फ़ासला रखो
रखने की बस ये तीन ही चीज़ें हैं इन दिनों
हिम्मत रखो यक़ीन रखो फ़ासला रखो
करते हो जिस तरह बुरे लोगों से इज्तिनाब
अच्छों से भी गुरेज़ करो फ़ासला रखो
- जव्वाद शैख़ 13
न सही ऐश, गुज़ारा ही सही
यानी गर तू नहीं दुनिया ही सही
छोड़िए कुछ तो मिरा भी मुझ में
ख़ून का आख़िरी क़तरा ही सही
ग़ौर तो कीजे मिरी बातों पर
उम्र में आप से छोटा ही सही
रंज हम ने भी जुदा पाए हैं
आप यकता हैं तो यकता ही सही
मैं बुरा हूँ तो हूँ अब क्या कीजे
कोई अच्छा है तो अच्छा ही सही
किस को सीने से लगाऊँ तिरे ब'अद
जाते जाते कोई धोका ही सही
कर कुछ ऐसा कि तुझे याद रखूँ
भूल जाने का तक़ाज़ा ही सही
तुम पे कब रोक थी चलते जाते
मेरी सोचों पे तो पहरा ही सही
वो किसी तौर न होगा मेरा
चलो ऐसा है तो ऐसा ही सही
सुर्ख़ करने लगी हर शय 'जव्वाद'
याद का रंग सुनहरा ही सही
- जव्वाद शैख़ 14
हज़ार सहरा थे रस्ते में यार क्या करता
जो चल पड़ा था तो फ़िक्र-ए-ग़ुबार क्या करता
कभी जो ठीक से ख़ुद को समझ नहीं पाया
वो दूसरों पे भला ए'तिबार क्या करता
चलो ये माना कि इज़हार भी ज़रूरी है
सो एक बार किया, बार बार क्या करता
इसी लिए तो दर-ए-आइना भी वा न किया
जो सो रहे हैं उन्हें होशियार क्या करता
वो अपने ख़्वाब की तफ़्सीर ख़ुद न कर पाया
जहान भर पे उसे आश्कार क्या करता
अगर वो करने पे आता तो कुछ भी कर जाता
ये सोच मत कि अकेला शरार क्या करता
सिवाए ये कि वो अपने भी ज़ख़्म ताज़ा करे
मिरे ग़मों पे मिरा ग़म-गुसार क्या करता
बस एक फूल की ख़ातिर बहार माँगी थी
रुतों से वर्ना मैं क़ौल-ओ-क़रार क्या करता
मिरा लहू ही कहानी का रंग था 'जव्वाद'
कहानी-कार उसे रंग-दार क्या करता
- जव्वाद शैख़15
जो भी जीने के सिलसिले किए थे
हम ने बस आप के लिए किए थे
तब कहीं जा के अपनी मर्ज़ी की
पहले अपनों से मशवरे किए थे
कभी उस की निगह मयस्सर थी
कैसे कैसे मुशाहिदे किए थे
अक़्ल कुछ और कर के बैठ रही
इश्क़ ने और फ़ैसले किए थे
बात हम ने सुनी हुई सुनी थी
काम उस ने किए हुए किए थे
उसे भी एक ख़त लिखा गया था
अपने आगे भी आइने किए थे
यहाँ कुछ भी नहीं है मेरे लिए
तू ने क्या क्या मुबालग़े किए थे
अव्वल आने का शौक़ था लेकिन
काम सारे ही दूसरे किए थे
बड़ी मुश्किल थी वो घड़ी 'जव्वाद'
हम ने कब ऐसे फ़ैसले किए थे
- जव्वाद शैख़Jawad Sheikh Shayari Collection में जव्वाद साहब की बेहतरीन ग़ज़लें पढ़ने के बाद चलिए अब हम उनके चुनिंदा अश'आर भी पढ़ते हैं।
जव्वाद शैख़ के अश'आर
मसअला ऐसे कोई हल तो न होगा शायद
शेर कहना ही मिरे ग़म की तलाफ़ी है मुझे
- जव्वाद शैख़
मैं इस लिए भी बहुत मुख़्तलिफ़ हूँ लोगों से
वो सोचते हैं कि ऐसा हुआ तो क्या होगा
- जव्वाद शैख़
अपने सामान को बाँधे हुए इस सोच में हूँ
जो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ जाते हैं
- जव्वाद शैख़
हम भी कैसे एक ही शख़्स के हो कर रह जाएँ
वो भी सिर्फ़ हमारा कैसे हो सकता है
- जव्वाद शैख़
मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ
मुझे किसी पे भी अब कोई ए'तिबार नहीं
- जव्वाद शैख़
लग रहा है ये नर्म लहजे से
फिर तुझे कोई मसअला हुआ है
- जव्वाद शैख़
अपनी ताईद पे ख़ुद अक़्ल भी हैरान हुई
दिल ने ऐसे मिरे ख़्वाबों की हिमायत की है
- जव्वाद शैख़
कर कुछ ऐसा कि तुझे याद रखूँ
भूल जाने का तक़ाज़ा ही सही
- जव्वाद शैख़
नहीं ऐसा भी कि यकसर नहीं रहने वाला
दिल में ये शोर बराबर नहीं रहने वाला
- जव्वाद शैख़
अब तिरे रास्ते से बच निकलूँ
इक यही रास्ता बचा हुआ है
- जव्वाद शैख़
अब हमें देख के लगता तो नहीं है लेकिन
हम कभी उस के पसंदीदा हुआ करते थे
- जव्वाद शैख़
किसी की बात बहुत सुनने वाली होती है
हमारी ख़ामुशी होती है देखने वाली
- जव्वाद शैख़
मिरा ख़ज़ाना ज़माने के हाथ जा न लगे
तुझे किसी की किसी को तिरी हवा न लगे
मैं एक जिस्म को चखना तो चाहता हूँ मगर
कुछ इस तरह कि मिरे मुँह को ज़ाइक़ा न लगे
- जव्वाद शैख़
कहानी-कार ने किरदार ही ऐसा दिया है
अदाकारी नहीं लगती अदाकारी हमारी
- जव्वाद शैख़
इक मोहब्बत के हवाले से मुझे जानते हैं
वो सभी लोग जो अच्छे से मुझे जानते हैं
सच तो ये है कि मुझे लोग नहीं जान सके
ख़ास कर जो बड़े दा'वे से मुझे जानते हैं
- जव्वाद शैख़
मुस्कुराने से कोई ख़ास 'इलाक़ा न सही
बहस से जान छुड़ाने के लिए होता है
- जव्वाद शैख़
हाथ में क्या नहीं कि तुम से कहें
हम को ज़ेबा नहीं कि तुम से कहें
दिल किसी वजह से दुखी है मगर
कुछ भी ऐसा नहीं कि तुम से कहें
- जव्वाद शैख़
'इश्क़ को सहल तो हम भी नहीं कहते लेकिन
हो ही जाता अगर इस काम के पीछे पड़ते
- जव्वाद शैख़
अगर आपको शायरी में सच्चाई और संवेदनशीलता पसंद है, तो Jawad Sheikh Shayari Collection आपको ज़रूर पसंद आया होगा। कॉमेंट बॉक्स में अपनी पसंदीदा ग़ज़ल या शे'र ज़रूर बताएँ। दोस्तो, इसी तरह शायरी पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग पर आते रहें।
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