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2122 2122 2122 212 बह्र पर ग़ज़ल और तक़्तीअ

2122 2122 2122 212 बह्र पर ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 बह्र पर ग़ज़ल 


गर यही होगा रवैया तो गए तुम काम से
तुमको तो मेहनत भी करनी है वो भी आराम से

बे-सर-ओ-पा होगा जलसा इब्तिदाई का वहाँ
जाना जाता है जहाँ हर आदमी अंजाम से

जानता हूँ आख़िरश जीतोगे तो तुम ही मगर
दूर रखना है तुम्हें कुछ देर इस इनआम से

तुम ही हो बाद-ए-सबा तुम ही बहारों का निशाँ
कितने गुल डरते हैं मेरी जाँ तुम्हारे नाम से

उन उजालों से तुम्हें क्या ख़ाक हिम्मत आएगी
ख़ौफ़ खाते हैं जो ख़ुद ही आने वाली शाम से

 - अच्युतम यादव 'अबतर'

बे-सर-ओ-पा : absurd 
बाद-ए-सबा : morning breeze


ग़ज़ल की तक़्तीअ

नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है। 

 
गर यही हो / गा रवैया / तो गए तुम / काम से
2122 / 2122 / 2122 / 212

तुमको तो मेह / नत भी करनी / है वो भी आ / राम से
2122 / 2122 / 2122 / 212



बे-सर-ओ-पा / होगा जलसा / इब्तिदाई / का वहाँ
2122 / 2122 / 2122 / 212

जाना जाता / है जहाँ हर / आदमी अं / जाम से
2122 / 2122 / 2122 / 212



जानता हूँ / आख़िरश जी / तोगे तो तुम / ही मगर
2122 / 2122 / 2122 / 212

दूर रखना / है तुम्हें कुछ / देर इस इन / आम से
2122 / 2122 / 2122 / 212



तुम ही हो बा / द-ए-सबा तुम / ही बहारों / का निशाँ
2122 / 2122 / 2122 / 212

कितने गुल डर / ते  हैं  मेरी / जाँ तुम्हारे / नाम से
2122 / 2122 / 2122 / 212



उन उजालों / से तुम्हें क्या / ख़ाक हिम्मत / आगी
2122 / 2122 / 2122 / 212

ख़ौफ़ खाते / हैं जो ख़ुद ही / आने वाली / शाम से
2122 / 2122 / 2122 / 212

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