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12122 12122 12122 12122 बह्र पर ग़ज़ल और तक़्तीअ

12122 12122 12122 12122 बह्र पर ग़ज़ल

12122 12122 12122 12122 बह्र पर ग़ज़ल


न जाने कितने सवाब होते न जाने कितने ज़लाल होते 
अगर मैं सोहबत में तेरी आता तो मुझसे लाखों सवाल होते

ये तो है कुदरत का ही करिश्मा जो शब की काया है काली वरना
हैं मेरे ख़्वाबों में दर्द इतने कि शब के भी ख़ून लाल होते

मैं यूँ ही महफ़िल में बैठे बैठे ये सोचता हूँ कि काश इसमें
तिरी हर इक दाद होती उम्दा मिरे सुख़न बे-मिसाल होते

हैं ज़ीस्त के और मरहले भी जो दे रहे हैं सदा मुझे रोज़
तुम्हें भुलाने को काश जानाँ कुछ एक दो और साल होते

किसी ने कालिख बता दिया है नहीं है अब आबरू हमारी
परखने वाला सही परखता तो हम भी ‘अबतर’ गुलाल होते

 - अच्युतम यादव 'अबतर'

सवाब : पुण्य
ज़लाल : पाप
मरहला : पड़ाव, मंज़िल


ग़ज़ल की तक़्तीअ

नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है। 

न जाने कितने / सवाब होते / न जाने कितने / ज़लाल होते
12122 / 12122 / 12122 / 12122

अगर मैं सोहबत / में तेरी आता / तो मुझसे लाखों / सवाल होते
12122 / 12122 / 12122 / 12122



ये तो  है  कुदरत / का ही करिश्मा / जो शब की काया / है काली वरना
12122 / 12122 / 12122 / 12122

हैं  मेरे ख़्वाबों / में दर्द इतने / कि शब के भी ख़ू / न लाल होते
12122 / 12122 / 12122 / 12122



मैं यूँ ही महफ़िल / में बैठे बैठे / ये सोचता हूँ / कि काश इसमें
12122 / 12122 / 12122 / 12122

तिरी हर इक दा / द होती उम्दा / मिरे सुख़न बे- / मिसाल होते
12122 / 12122 / 12122 / 12122
(अलिफ़ वस्ल --> हर + इक = हरिक 12)


हैं  ज़ीस्त के औ / र मरहले भी / जो दे रहे हैं / सदा मुझे रोज़
12122 / 12122 / 12122 / 12122 (+1)

तुम्हें भुलाने / को काश जानाँ / कुछ एक दो औ / र साल होते
12122 / 12122 / 12122 / 12122
(अलिफ़ वस्ल --> कुछ + एक = कुछेक 121)



किसी ने कालिख / बता दिया है / नहीं  है  अब आ / बरू हमारी
12122 / 12122 / 12122 / 12122

परखने वाला / सही परखता / तो हम भी ‘अबतर’ / गुलाल होते
12122 / 12122 / 12122 / 12122


कुछ ज़रूरी बातें :

यह एक बहुत लंबी बह्र है इसलिए अगर आप शायरी करने की शुरुआत कर रहे हैं तो अभी के लिए इस बह्र पर ग़ज़ल न कहें। आप 32 प्रचलित बहरों में किसी आसान बह्र से शुरुआत कीजिए।  


अगर आप इस बह्र पर ग़ज़ल कह रहे हैं तो इसे शिकस्ता बह्र मान कर ही ग़ज़ल कहिए ताकि रवानी की दिक़्क़त न आए। लंबी बह्र होने की वजह से बीच में एक pause आए तो रवानी बनी रहती है।  

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