Ad Code

212 1212 1212 1212 बह्र पर ग़ज़ल

212 1212 1212 1212 बह्र पर ग़ज़ल

212 1212 1212 1212 बह्र पर ग़ज़ल 


मिट गई ख़लिश न जाने कब मुझे नहीं पता
काँटों की लगी है क्यों तलब मुझे नहीं पता


मेरा हर झरोखा चुन दिया गया अगर तो फिर
मुझको कौन बेचता है शब मुझे नहीं पता


ख़ुश बहुत है मेरा हमसफ़र हर एक मोड़ पर
ऐसा मुझसे क्या हुआ ग़ज़ब मुझे नहीं पता


पाँव बेड़ियों में ज़्यादा तेज़ चलने लग गए
कुछ न कुछ ज़रूर है सबब मुझे नहीं पता


आँखें नाक कान गाल तो हसीन थे बहुत
क्या थे इतने ही हसीन लब मुझे नहीं पता


आसमाँ भी पार कर लिया अब उनकी साँसों ने
उनकी यादें थक के बैठीं कब मुझे नहीं पता

  - Achyutam Yadav 'Abtar'


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ