Umair Najmi Shayari Collection

उमैर नजमी नई पीढ़ी के उन शायरों में से हैं जिनकी शायरी दिल को छूने वाली और सोच को झकझोर देने वाली होती है। इनके शब्दों का रख-रखाव बे-मिस्ल है। इनकी कलम से निकले अशआर मोहब्बत, तन्हाई, और ज़िंदगी के गहरे पहलुओं को बेहद ख़ूबसूरती से बयान करते हैं।

Umair Najmi Shayari Collection में आपको उनकी वही बारीकियाँ, सूफ़ियाना सोच और जज़्बात की शिद्दत देखने को मिलेगी जो इन्हें भीड़ से अलग बनाती हैं। तो आइए, उमैर नजमी की कुछ ग़ज़लों से शुरुआत करते हैं।  

उमैर नजमी की ग़ज़लें 

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना है ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे बदन के मलबे से इस को ज़िंदा निकालना है नज़र में रखना कहीं कोई ग़म-शनास गाहक मुझे सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है ये तीस बरसों से कुछ बरस पीछे चल रही है मुझे घड़ी का ख़राब पुर्ज़ा निकालना है ख़याल है ख़ानदान को इत्तिलाअ' दे दूँ जो कट गया उस शजर का शजरा निकालना है मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है - उमैर नजमी 
2
बिछड़ गए तो ये दिल 'उम्र भर लगेगा नहीं लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं नहीं लगेगा उसे देख कर मगर ख़ुश है मैं ख़ुश नहीं हूँ मगर देख कर लगेगा नहीं हमारे दिल को अभी मुस्तक़िल पता न बना हमें पता है तिरा दिल उधर लगेगा नहीं जुनूँ का हज्म ज़ियादा तुम्हारा ज़र्फ़ है कम ज़रा सा गमला है इस में शजर लगेगा नहीं इक ऐसा ज़ख़्म-नुमा दिल क़रीब से गुज़रा दिल उस को देख के चीख़ा ठहर लगेगा नहीं जुनूँ से कुंद किया है सो उस के हुस्न का कील मिरे सिवा किसी दीवार पर लगेगा नहीं बहुत तवज्जोह त'अल्लुक़ बिगाड़ देती है ज़ियादा डरने लगेंगे तो डर लगेगा नहीं - उमैर नजमी 
3
एक तारीख़ मुक़र्रर पे तो हर माह मिले जैसे दफ़्तर में किसी शख़्स को तनख़्वाह मिले रंग उखड़ जाए तो ज़ाहिर हो प्लस्तर की नमी क़हक़हा खोद के देखो तो तुम्हें आह मिले जम्अ' थे रात मिरे घर तिरे ठुकराए हुए एक दरगाह पे सब रांदा-ए-दरगाह मिले मैं तो इक आम सिपाही था हिफ़ाज़त के लिए शाह-ज़ादी ये तिरा हक़ था तुझे शाह मिले एक उदासी के जज़ीरे पे हूँ अश्कों में घिरा मैं निकल जाऊँ अगर ख़ुश्क गुज़रगाह मिले इक मुलाक़ात के टलने की ख़बर ऐसे लगी जैसे मज़दूर को हड़ताल की अफ़्वाह मिले घर पहुँचने की न जल्दी न तमन्ना है कोई जिस ने मिलना हो मुझे आए सर-ए-राह मिले - उमैर नजमी 
4
मुझे पहले तो लगता था कि ज़ाती मसअला है मैं फिर समझा मोहब्बत काएनाती मसअला है परिंदे क़ैद हैं तुम चहचहाहट चाहते हो तुम्हें तो अच्छा-ख़ासा नफ़सियाती मसअला है हमें थोड़ा जुनूँ दरकार है थोड़ा सुकूँ भी हमारी नस्ल में इक जीनियाती मसअला है बड़ी मुश्किल है बनते सिलसिलों में ये तवक़्क़ुफ़ हमारे राब्तों की बे-सबाती मसअला है वो कहते हैं कि जो होगा वो आगे जा के होगा तो ये दुनिया भी कोई तजरबाती मसअला है हमारा वस्ल भी था इत्तिफ़ाक़ी मसअला था हमारा हिज्र भी है हादसाती मसअला है - उमैर नजमी 
5
दाएँ बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका इस लिए ख़ोल से शमशीर नहीं खींच सका शोर इतना था कि आवाज़ भी डब्बे में रही भीड़ इतनी थी कि ज़ंजीर नहीं खींच सका हर नज़र से नजर-अंदाज़-शुदा मंज़र हूँ वो मदारी हूँ जो रहगीर नहीं खींच सका मैं ने मेहनत से हथेली पे लकीरें खींचीं वो जिन्हें कातिब-ए-तक़दीर नहीं खींच सका मैं ने तस्वीर-कशी कर के जवाँ की औलाद उन के बचपन की तसावीर नहीं खींच सका मुझ पे इक हिज्र मुसल्लत है हमेशा के लिए ऐसा जिन है कि कोई पीर नहीं खींच सका तुम पे क्या ख़ाक असर होगा मिरे शे'रों का तुम को तो मीर-तक़ी-'मीर' नहीं खींच सका  - उमैर नजमी  
6
खेल दोनों का चले तीन का दाना न पड़े सीढ़ियाँ आती रहें साँप का ख़ाना न पड़े देख मे'मार परिंदे भी रहें घर भी बने नक़्शा ऐसा हो कोई पेड़ गिराना न पड़े मेरे होंटों पे किसी लम्स की ख़्वाहिश है शदीद ऐसा कुछ कर मुझे सिगरेट को जलाना न पड़े इस तअल्लुक़ से निकलने का कोई रास्ता दे इस पहाड़ी पे भी बारूद लगाना न पड़े नम की तर्सील से आँखों की हरारत कम हो सर्द-ख़ानों में कोई ख़्वाब पुराना न पड़े रब्त की ख़ैर है बस तेरी अना बच जाए इस तरह जा कि तुझे लौट के आना न पड़े हिज्र ऐसा हो कि चेहरे पे नज़र आ जाए ज़ख़्म ऐसा हो कि दिख जाए दिखाना न पड़े - उमैर नजमी 
7
इक दिन ज़बाँ सुकूत की पूरी बनाऊँगा मैं गुफ़्तुगू को ग़ैर-ज़रूरी बनाऊँगा तस्वीर में बनाऊँगा दोनों के हाथ और दोनों में एक हाथ की दूरी बनाऊँगा मुद्दत समेत जुमला ज़वाबित हों तय-शुदा या'नी तअ'ल्लुक़ात उबूरी बनाऊँगा तुझ को ख़बर न होगी कि मैं आस-पास हूँ इस बार हाज़िरी को हुज़ूरी बनाऊँगा रंगों पे इख़्तियार अगर मिल सका कभी तेरी सियाह पुतलियाँ भूरी बनाऊँगा जारी है अपनी ज़ात पे तहक़ीक़ आज-कल मैं भी ख़ला पे एक थ्योरी बनाऊँगा मैं चाह कर वो शक्ल मुकम्मल न कर सका उस को भी लग रहा था अधूरी बनाऊँगा  - उमैर नजमी  
8
हर इक हज़ार में बस पाँच सात हैं हम लोग निसाब-ए-इश्क़ पे वाजिब ज़कात हैं हम लोग दबाओ में भी जमाअत कभी नहीं बदली शुरूअ' दिन से मोहब्बत के साथ हैं हम लोग जो सीखनी हो ज़बान-ए-सुकूत बिस्मिल्लाह ख़मोशियों की मुकम्मल लुग़ात हैं हम लोग कहानियों के वो किरदार जो लिखे न गए ख़बर से हज़्फ़-शुदा वाक़िआ'त हैं हम लोग ये इंतिज़ार हमें देख कर बनाया गया ज़ुहूर-ए-हिज्र से पहले की बात हैं हम लोग किसी को रास्ता दे दें किसी को पानी न दें कहीं पे नील कहीं पर फ़ुरात हैं हम लोग हमें जला के कोई शब गुज़ार सकता है सड़क पे बिखरे हुए काग़ज़ात हैं हम लोग  - उमैर नजमी  
9
मैं बरश छोड़ चुका आख़िरी तस्वीर के बा'द मुझ से कुछ बन नहीं पाया तिरी तस्वीर के बा'द मुश्तरक दोस्त भी छूटे हैं तुझे छोड़ने पर या'नी दीवार हटानी पड़ी तस्वीर के बा'द यार तस्वीर में तन्हा हूँ मगर लोग मिले कई तस्वीर से पहले कई तस्वीर के बा'द दूसरा इश्क़ मयस्सर है मगर करता नहीं कौन देखेगा पुरानी नई तस्वीर के बा'द भेज देता हूँ मगर पहले बता दूँ तुझ को मुझ से मिलता नहीं कोई मिरी तस्वीर के बा'द ख़ुश्क दीवार में सीलन का सबब क्या होगा एक अदद ज़ंग लगी कील थी तस्वीर के बा'द - उमैर नजमी 
10
मैं ने जो राह ली दुश्वार ज़ियादा निकली मेरे अंदाज़े से हर बार ज़ियादा निकली कोई रौज़न न झरोका न कोई दरवाज़ा मेरी ता'मीर में दीवार ज़ियादा निकली ये मिरी मौत के अस्बाब में लिक्खा हुआ है ख़ून में इश्क़ की मिक़दार ज़ियादा निकली कितनी जल्दी दिया घर वालों को फल और साया मुझ से तो पेड़ की रफ़्तार ज़ियादा निकली - उमैर नजमी 
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मिरी भँवों के ऐन दरमियान बन गया जबीं पे इंतिज़ार का निशान बन गया सुना हुआ था हिज्र मुस्तक़िल तनाव है वही हुआ मिरा बदन कमान बन गया मुहीब चुप में आहटों का वाहिमा हवा मैं सर से पाँव तक तमाम कान बन गया हवा से रौशनी से राब्ता नहीं रहा जिधर थीं खिड़कियाँ उधर मकान बन गया शुरूअ' दिन से घर मैं सुन रहा था इस लिए सुकूत मेरी मादरी ज़बान बन गया और एक दिन खिंची हुई लकीर मिट गई गुमाँ यक़ीं बना यक़ीं गुमान बन गया कई ख़फ़ीफ़ ग़म मिले मलाल बन गए ज़रा ज़रा सी कतरनों से थान बन गया मिरे बड़ों ने आदतन चुना था एक दश्त वो बस गया 'रहीम' यार-ख़ान बन गया - उमैर नजमी 
12
लगता है कर के लम्बा सफ़र आ रहा हूँ मैं हालाँकि घर से सीधा इधर आ रहा हूँ मैं बस इंतिज़ार था कि तुझे छोड़ दे वो शख़्स अब उस का इंतिज़ार न कर आ रहा हूँ मैं ये फ़ाएदा है देख मुझ अंधे से रब्त का तारीक रास्ता है मगर आ रहा हूँ मैं करने लगे हैं जो नज़र-अंदाज़ उन की ख़ैर इतना तो तय हुआ कि नज़र आ रहा हूँ मैं मुझ तक रसाई सहल नहीं है इधर न आ तू ख़ुद कहाँ खड़ा है ठहर आ रहा हूँ मैं हर रोज़ क्यों पिघल के टपकता हूँ आँख से कैसी तपिश के ज़ेर-ए-असर आ रहा हूँ मैं कुछ भी यहाँ नया नहीं लगता मुझे 'उमैर' शायद ज़मीं पे बार-ए-दिगर आ रहा हूँ मैं  - उमैर नजमी  
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कुछ सफ़ीने हैं जो ग़र्क़ाब इकट्ठे होंगे आँख में ख़्वाब तह-ए-आब इकट्ठे होंगे जिन के दिल जोड़ते ये उम्र बिता दी मैं ने जब मरूँगा तो ये अहबाब इकट्ठे होंगे मुंतशिर कर के ज़मानों को खंगाला जाए तब कहीं जा के मिरे ख़्वाब इकट्ठे होंगे एक ही इश्क़ में दोनों का जुनूँ ज़म होगा प्यास यकसाँ है तो सैराब इकट्ठे होंगे मुझ को रफ़्तार चमक तुझ को घटानी होगी वर्ना कैसे ज़र-ओ-सीमाब इकट्ठे होंगे उस की तह से कभी दरयाफ़्त किया जाऊँगा मैं जिस समुंदर में ये सैलाब इकट्ठे होंगे - उमैर नजमी 
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इस से पहले कि राएगाँ हो जाऊँ लिख रहा हूँ कि कुछ बयाँ हो जाऊँ उस का हो कर हूँ हद में वर्ना तो मैं क्या पता है कहाँ-कहाँ हो जाऊँ तू कहे तो जहाँ हूँ मैं न रहूँ फिर जहाँ हुक्म दे वहाँ हो जाऊँ छोड़ दे दोस्त छेड़ मत मुझ को ज़ख़्म हूँ ये न हो निशाँ हो जाऊँ देखता हूँ दिल-ओ-दिमाग़ की जंग सोचता हूँ कि दरमियाँ हो जाऊँ तेरा होना मिरे यक़ीन से है और अगर मैं ही बद-गुमाँ हो जाऊँ इक सिरे पर जुनूँ सुलगता रहे इक तरफ़ मैं धुआँ-धुआँ हो जाऊँ - उमैर नजमी 
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मैं बढ़ाता हूँ रौशनी देखें ग़ौर से घर की तीरगी देखें वक़्त अब ठीक चल रहा है मिरा आप ये क़ीमती घड़ी देखें कितने लोगों की 'अर्ज़ियाँ होंगी उस की रद्दी की टोकरी देखें मेरी हैरत पे जिन को हैरत है उस की तस्वीर लाज़मी देखें अब लगाते हैं दूर की 'ऐनक आँखें देखी हैं ख़्वाब भी देखें मुझ से पत्थर को मुँह चिढ़ाता है आइने की बहादुरी देखें मुझ को मत रोकें देखने से उसे देख सकते हैं आप भी देखें - उमैर नजमी 
16
मैं छुपने के लिए हर दिन जगह बदलने लगा मगर वो तीर चलाया था जो अजल ने लगा कोई स्टेज पर आया तो उठ खड़े हुए सब मैं पस्ता-क़द था ज़रा दूर था उछलने लगा ट्रेन चलने लगी और इज़्तिराब में मैं बजाए हाथ हिलाने के हाथ मलने लगा हवा ने दीप बुझाया न था उलट दिया था ज़रा सी देर में सारा मकान जलने लगा तू ज़िंदगी से निकल जाए 'ऐन मुमकिन है मगर तू मेरे असर से नहीं निकलने लगा ज़रा निगाह जमाई और एक बर्फ़ सा जिस्म पसीना बन के जबीं से ज़रा पिघलने लगा ये गुल-फ़रोश रफ़ूगर सुनार फ़ारिग़ थे किसी के आने से इन सब का काम चलने लगा  - उमैर नजमी  
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तुम इस ख़राबे में चार छे दिन टहल गई हो सो ऐन-मुमकिन है दिल की हालत बदल गई हो तमाम दिन इस दुआ में कटता है कुछ दिनों से मैं जाऊँ कमरे में तो उदासी निकल गई हो किसी के आने पे ऐसे हलचल हुई है मुझ में ख़मोश जंगल में जैसे बंदूक़ चल गई हो ये न हो गर मैं हिलूँ तो गिरने लगे बुरादा दुखों की दीमक बदन की लकड़ी निगल गई हो ये छोटे छोटे कई हवादिस जो हो रहे हैं किसी के सर से बड़ी मुसीबत न टल गई हो हमारा मलबा हमारे क़दमों में आ गिरा है प्लेट में जैसे मोम-बत्ती पिघल गई हो - उमैर नजमी 
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नहीं है वज्ह ज़रूरी कि जब हो तब मर जाएँ उदास लोग हैं मुमकिन है बे-सबब मर जाएँ हमारी नींद का दौरानिया है रोज़-अफ़्ज़ूँ कोई ब'ईद नहीं है कि एक शब मर जाएँ ये मरने वालों को रोने का सिलसिला न रहे कुछ ऐसा हो कि ब-यक-वक़्त सब के सब मर जाएँ ये अहल-ए-हिज्र शिफ़ायाब तो नहीं होंगे कोई दवा हो कि जिस से ये जाँ-ब-लब मर जाएँ हमारी नब्ज़ समझ ले हमारे हाथ में है तू सिर्फ़ हुक्म दे बस दिन बता कि कब मर जाएँ ये मोतिया तो नहीं है सफ़ेद लाशें हैं उभर के सत्ह पे आते हैं ख़्वाब जब मर जाएँ न कोई रोकने वाला न दरिया दूर मगर सुना है प्यास से मरना है मुस्तहब मर जाएँ यक़ीन कर कि कई बार एक दिन में 'उमैर' हम अपने-आप से कहते हैं यार अब मर जाएँ - उमैर नजमी 
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तिश्नगी जिस्म की मिट्टी में गड़ी मिलती है ऐसा लगता है कि प्यासों से लड़ी मिलती है आँखें तारीक नसीब उन से ज़ियादा तारीक हम अगर हाथ भी माँगें तो छड़ी मिलती है इस बिना पर मैं समझता हूँ कि ये जुड़वाँ हैं 'इश्क़ की शक्ल अज़िय्यत से बड़ी मिलती है अहल-ए-ख़ाना मुझे अब वक़्त नहीं दे पाते वैसे हर साल जनम-दिन पे घड़ी मिलती है ज़िंदगी ख़स्ता-ओ-पामाल मिली थी मुझ को जैसे रस्ते पे कोई चीज़ पड़ी मिलती है साँस चढ़ जाती है आग़ाज़-ए-सफ़र में अपनी मेरे जैसों को कहाँ रेल खड़ी मिलती है अब्र देखूँ तो बरस पड़ती हैं आँखें 'नजमी' थल का बासी हूँ मुक़द्दर से झड़ी मिलती है  - उमैर नजमी  
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नमकीन है कहीं तो कहीं बे-नमक नमी उतरी हुई है मुझ में बड़ी दूर तक नमी होता है हिज्र पाँच 'अनासिर पे मुश्तमिल उम्मीद इंतिज़ार उदासी कसक नमी फिर सोचा ‘अन-क़रीब तही-चश्म हो न जाऊँ पहले तो मैं लुटाता रहा बे-धड़क नमी मुझ में छुपे हुनर को किया ग़म ने यूँ 'अयाँ मिट्टी पे गिर के जैसे उड़ा दे महक नमी साकिन हैं चुप हैं ज़र्द हैं मैं और ये पहाड़ हम में बस एक चीज़ नहीं मुश्तरक नमी तख़्लीक़ के लिए ये फ़ज़ा साज़गार है हल्की फुहार ख़ामुशी ख़ाली सड़क नमी गिर्ये ने यूँ भरे हैं हमारी जलन में रंग जैसे किरन को छू के बना दे धनक नमी  - उमैर नजमी  
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मेरा हाथ पकड़ ले पागल जंगल है जितना भी रौशन हो जंगल जंगल है मैं हूँ तुम हो बेलें पेड़ परिंदे हैं कितने 'अर्से बा'द मुकम्मल जंगल है मुझ में कोई गोशा भी आबाद नहीं जंगल है सरकार मुसलसल जंगल है कैसे पार करें हम पैकर मिट्टी के बादल है जल थल है दलदल जंगल है मेरी 'उम्र सरासर वहशत है 'नजमी' लम्हा लम्हा सहरा पल पल जंगल है - उमैर नजमी 

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ग़ज़लों के इन हसीन रंगों के बाद अब पेश हैं उमैर नजमी के कुछ चुनिंदा अश'आर। बिना इन अश'आर के Umair Najmi Shayari Collection अधूरा ही रह जाएगा।  

उमैर नजमी के अश'आर

बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं  - उमैर नजमी  
निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है - उमैर नजमी 
तुम पे क्या ख़ाक असर होगा मिरे शे'रों का तुम को तो मीर-तक़ी-'मीर' नहीं खींच सका - उमैर नजमी 
ये सात उठ पड़ोसी कहाँ से आए मिरे तुम्हारे दिल में तो कोई न था सिवाए मिरे  - उमैर नजमी  
किसी गली में किराए पे घर लिया उस ने फिर उस गली में घरों के किराए बढ़ने लगे - उमैर नजमी 
हवा ने दीप बुझाया न था उलट दिया था ज़रा सी देर में सारा मकान जलने लगा - उमैर नजमी 
हमारा इक और दोस्त आज उस को देख आया हमारे हल्क़े में एक हैरान बढ़ गया है - उमैर नजमी 
कितनी जल्दी दिया घर वालों को फल और साया मुझ से तो पेड़ की रफ़्तार ज़ियादा निकली - उमैर नजमी 
मेरी हैरत पे जिन को हैरत है उस की तस्वीर लाज़मी देखें - उमैर नजमी 
इस बिना पर मैं समझता हूँ कि ये जुड़वाँ हैं 'इश्क़ की शक्ल अज़िय्यत से बड़ी मिलती है - उमैर नजमी 
तेरा होना मिरे यक़ीन से है और अगर मैं ही बद-गुमाँ हो जाऊँ - उमैर नजमी 
उस का घमंड तोड़ के देखा और आ गया बस देखना ही था पस-ए-दीवार कौन है  - उमैर नजमी  
Umair Najmi Shayari Collection वो माला है जिसमें ग़म, मोहब्बत, और हिज्र के अश'आर बड़ी ही ख़ूबसूरती से पिरोए गए हैं। मुझे कॉमेंट बॉक्स में अपना पसंदीदा शे'र और ग़ज़ल ज़रूर बताएँ। आप हमारे इस ब्लॉग पर और भी शायरों के शायरी कलेक्शन पढ़ सकते हैं।

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