Ziya Mazkoor Shayari Collection

ज़िया मज़कूर नए दौर की एक बुलंद आवाज़ हैं, और यह पोस्ट — Zia Mazkoor Shayari Collection — इसी बात का प्रमाण है। वे ज़ियादातर अपनी शायरी में आम बोलचाल की ज़बान का इस्तेमाल करते हैं, जिससे उनका सुख़न एक बड़े तबक़े तक सहजता से पहुँचता है। उनकी शायरी में एक ऐसी कशिश है जिसे अल्फ़ाज़ में बाँध पाना आसान नहीं। तो आइए, आज हम ज़िया मज़कूर की शायरी से रू-ब-रू होते हैं — शुरुआत करते हैं उनकी ग़ज़लों से।

ज़िया मज़कूर की ग़ज़लें


1
बोल पड़ते हैं हम जो आगे से प्यार बढ़ता है इस रवय्ये से मैं वही हूँ यक़ीं करो मेरा मैं जो लगता नहीं हूँ चेहरे से हम को नीचे उतार लेंगे लोग इश्क़ लटका रहेगा पंखे से सारा कुछ लग रहा है बे-तरतीब एक शय आगे पीछे होने से वैसे भी कौन सी ज़मीनें थीं मैं बहुत ख़ुश हूँ आक़-नामे से ये मोहब्बत वो घाट है जिस पर दाग़ लगते हैं कपड़े धोने से ⸺ Ziya Mazkoor
2
तुम ने भी उन से ही मिलना होता है जिन लोगों से मेरा झगड़ा होता है उस के गाँव की एक निशानी ये भी है हर नलके का पानी मीठा होता है मैं उस शख़्स से थोड़ा आगे चलता हूँ जिस का मैं ने पीछा करना होता है तुम मेरी दुनिया में बिल्कुल ऐसे हो ताश में जैसे हुकुम का इक्का होता है कितने सूखे पेड़ बचा सकते हैं हम हर जंगल में लक्कड़हारा होता है ⸺ Ziya Mazkoor
3
वक़्त ही कम था फ़ैसले के लिए वर्ना मैं आता मशवरे के लिए तुम को अच्छे लगे तो तुम रख लो फूल तोड़े थे बेचने के लिए घंटों ख़ामोश रहना पड़ता है आप के साथ बोलने के लिए सैकड़ों कुंडियाँ लगा रहा हूँ चंद बटनों को खोलने के लिए एक दीवार बाग़ से पहले इक दुपट्टा खुले गले के लिए तर्क अपनी फ़लाह कर दी है और क्या हो मुआ'शरे के लिए लोग आयात पढ़ के सोते हैं आप के ख़्वाब देखने के लिए अब मैं रस्ते में लेट जाऊँ क्या जाने वालों को रोकने के लिए ⸺ Ziya Mazkoor
4
मेरे कमरे में इक ऐसी खिड़की है जो इन आँखों के खुलने पर खुलती है ऐसे तेवर दुश्मन ही के होते हैं पता करो ये लड़की किस की बेटी है रात को इस जंगल में रुकना ठीक नहीं इस से आगे तुम लोगों की मर्ज़ी है मैं इस शहर का चाँद हूँ और ये जानता हूँ कौन सी लड़की किस खिड़की में बैठी है जब तू शाम को घर जाए तो पढ़ लेना तेरे बिस्तर पर इक चिट्ठी छोड़ी है उस की ख़ातिर घर से बाहर ठहरा हूँ वर्ना इल्म है चाबी गेट पे रक्खी है ⸺ Ziya Mazkoor
5
फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे ज़िंदगी देख चुके तुझ को बड़े पर्दे पर आज के बअ'द कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे मसअला ये है मैं दुश्मन के क़रीं पहुँचूँगा और कबूतर मिरी तलवार पे आ बैठेंगे हम को इक बार किनारों से निकल जाने दो फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे तू वो दरिया है अगर जल्दी नहीं की तू ने ख़ुद समुंदर तुझे मिलने के लिए आएँगे सेग़ा-ए-राज़ में रक्खेंगे नहीं इश्क़ तिरा हम तिरे नाम से ख़ुशबू की दुकाँ खोलेंगे ⸺ Ziya Mazkoor
6
इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं कि हम छड़ी का सहारा ले कर खड़े हुए हैं यहाँ से जाने की जल्दी किस को है तुम बताओ कि सूटकेसों में कपड़े किस ने रखे हुए हैं करा तो लूँगा इलाक़ा ख़ाली मैं लड़-झगड़ कर मगर जो उस ने दिलों पे क़ब्ज़े किए हुए हैं वो ख़ुद परिंदों का दाना लेने गया हुआ है और उस के बेटे शिकार करने गए हुए हैं तुम्हारे दिल में खुली दुकानों से लग रहा है ये घर यहाँ पर बहुत पुराने बने हुए हैं मैं कैसे बावर कराऊँ जा कर ये रौशनी को कि इन चराग़ों पे मेरे पैसे लगे हुए हैं तुम्हारी दुनिया में कितना मुश्किल है बच के चलना क़दम क़दम पर तो आस्ताने बने हुए हैं तुम इन को चाहो तो छोड़ सकते हो रास्ते में ये लोग वैसे भी ज़िंदगी से कटे हुए हैं ⸺ Ziya Mazkoor
7
ऐसे उस हाथ से गिरे हम लोग टूटते टूटते बचे हम लोग अपना क़िस्सा सुना रहा है कोई और दीवार के बने हम लोग वस्ल के भेद खोलती मिट्टी चादरें झाड़ते हुए हम लोग उस कबूतर ने अपनी मर्ज़ी की सीटियाँ मारते रहे हम लोग पूछने पर कोई नहीं बोला कैसे दरवाज़ा खोलते हम लोग हाफ़िज़े के लिए दवा खाई और भी भूलने लगे हम लोग ऐन मुमकिन था लौट आता वो उस के पीछे नहीं गए हम लोग ⸺ Ziya Mazkoor
8
किस तरह ईमान लाऊँ ख़्वाब की ताबीर पर छिपकली चढ़ते हुए देखी है उस तस्वीर पर उसने ऐसी कोठरी में क़ैद रक्खा था हमें रौशनी आँखों पे पड़ती थी या फिर ज़ंजीर पर माएँ बेटों से ख़फ़ा हैं और बेटे माओं से इश्क़ ग़ालिब आ गया है दूध की तासीर पर मैं उन्हीं आबादियों में जी रहा होता कहीं तुम अगर हँसते नहीं उस दिन मेरी तक़दीर पर  ⸺ Ziya Mazkoor 
9
इक ज़रा सा टूट कर मिस्मार हो जाता है क्या आईने का आईना बेकार हो जाता है क्या आज कल मायूस वापस आ रहे हैं क़ाफ़िले आज कल उस दर से भी इनकार हो जाता है क्या हाथ पाँव मारने से हो नहीं सकता अगर डूब जाने से समंदर पार हो जाता है क्या आलम-ए-तन्हाई में भी उसका ऐसा ख़ौफ़ है ज़ेहन में होता है क्या इज़हार हो जाता है क्या हाय उसका इस क़दर मासूमियत से पूछना लड़कियों को लड़कियों से प्यार हो जाता है क्या  ⸺ Ziya Mazkoor 
10
ये और बात कि पानी है इसमें रम नहीं है तिरा गिलास भी तेरे लबों से कम नहीं है उधार माँग के शर्मिंन्दा कर दिया उसने वगरना ये कोई इतनी बड़ी रक़म नहीं है तुम इसके सामने कैसे भी बैठ सकती हो ये मेरा दोस्त है और इतना मुहतरम नहीं है अजीब तर्ज़ के दुश्मन का सामना है मुझे कमाँ में तीर नहीं हाथ में क़लम नहीं है किसी के जाने से दिल टूट क्यों नहीं जाता ये कैसा घर है जिसे हिजरतों का ग़म नहीं है  ⸺ Ziya Mazkoor 
11
बे-सबब उस के नाम की मैं ने काट तो ली थी ज़िंदगी मैं ने वो मुझे ख़्वाब में नज़र आया और तस्वीर खींच ली मैं ने आप का काम हो गया आक़ा लाश दरिया में फेंक दी मैं ने खेल तू इस लिए भी हारेगा चाल चलनी है आख़िरी मैं ने एक वो बे-हिजाब और उस पर डाल रक्खी थी रौशनी मैं ने
⸺ Ziya Mazkoor
12
तुम ने भी उन से ही मिलना होता है जिन लोगों से मेरा झगड़ा होता है उस के गाँव की एक निशानी ये भी है हर नलके का पानी मीठा होता है मैं उस शख़्स से थोड़ा आगे चलता हूँ जिस का मैं ने पीछा करना होता है बस हल्की सी ठोकर मारनी पड़ती है हर पत्थर के अंदर चश्मा होता है तुम मेरी दुनिया में बिल्कुल ऐसे हो ताश में जैसे हुकुम का इक्का होता है कितने सूखे पेड़ बचा सकते हैं हम हर जंगल में लक्कड़हारा होता है  ⸺ Ziya Mazkoor 
13
अब बस उसके दिल के अंदर दाखिल होना बाकी है छह दरवाजे़ छोड़ चुका हूं एक दरवाज़ा बाकी है दौलत शोहरत बीवी बच्चे अच्छा घर और अच्छे दोस्त कुछ तो है जो इनके बाद भी हासिल करना बाक़ी है मैं बरसों से खोल रहा हूं एक औरत की साड़ी को आधी दुनिया घूम चुका हूं आधी दुनिया बाकी है कभी-कभी तो दिल करता है चलती रेल से कूद पड़ूॅं फिर कहता हूॅं पागल अब तो थोड़ा रस्ता बाक़ी है उसकी खातिर बाजारों में भीड़ भी है और रोनक भी मैं गुम होने वाला हूं बस हाथ छुड़ाना बाकी है  ⸺ Ziya Mazkoor 
14
ये मजमा तुमको सुनना चाहता है वगरना शोर किस का मसअला है मुझे अब और कितना रोना होगा तिरा कितना बक़ाया रह गया है ख़ुशी महसूस करने वाली शय थी परिन्दों को उड़ा कर क्या मिला है दरीचे बन्द होते जा रहे हैं तमाशा ठंडा पड़ता जा रहा है तुम्हीं मज़मून बाँधो शायरी में अपुन लहजा बनाना माँगता है ये कासे जल्द भरने लग गए हैं भिखारी बद्‌दुआ देने लगा है तुम्हारी एक दिन की सोच है और हमारा उम्र भर का तजरबा है  ⸺ Ziya Mazkoor 
15
इससे आपका दुख भी हो जाएगा अच्छा खासा कम मुझ पर गुज़रे लम्हों में से कर दो बस एक लम्हा कम बड़े-बड़े शहरों में कोई कैसे किसी से प्यार करे जितने आमने सामने घर हैं उतना आना जाना कम उसके पिस्टल से एक गोली कम होने का मतलब है अपने शहर में उड़ने वाले गोल से एक परिंदा कम कल तो वो और उसकी कश्ती बस जलने ही वाले थे दरिया उस पर काफ़ी गरम था लेकिन आग से थोड़ा कम सदके जाऊँ उन चीजों पर जिनको उसके हाथ लगे अजब मैकेनिक था वो जिसने तोड़ा ज़्यादा जोड़ा कम  ⸺ Ziya Mazkoor 
ग़ज़ल के बाद पेश हैं ज़िया मज़कूर के कुछ बेहद ख़ास और दिल को छू लेने वाले अश'आर , जो उनके शायरी कलेक्शन (Ziya Mazkoor Shayari Collection) का अहम हिस्सा हैं।

ज़िया मज़कूर के अश'आर 

 
इस वक़्त मुझे जितनी ज़रूरत है तुम्हारी लड़ते भी रहोगे तो मोहब्बत है तुम्हारी ⸺ Ziya Mazkoor 
ये उसकी मोहब्बत है कि रुकता है तेरे पास वरना तेरी दौलत के सिवा क्या है तेरे पास  ⸺ Ziya Mazkoor 
हवा चली तो उसकी शॉल मेरी छत पे आ गिरी ये उस बदन के साथ मेरा पहला राब्ता हुआ  ⸺ Ziya Mazkoor 
आपका काम हो गया साहब लाश दरिया में फेंक दी मैंने  ⸺ Ziya Mazkoor 
एक नज़र देखते तो जाओ मुझे कब कहा है गले लगाओ मुझे तुमको नुस्खा भी लिख के दे दूंगा ज़ख्म तो ठीक से दिखाओ मुझे  ⸺ Ziya Mazkoor 
हम को नीचे उतार लेंगे लोग इश्क़ लटका रहेगा पंखे से  ⸺ Ziya Mazkoor 
वक़्त ही कम था फ़ैसले के लिए वर्ना मैं आता मशवरे के लिए  ⸺ Ziya Mazkoor 
ख़ुदा के हाथ से लिक्खा मुक़द्दर अपनी जगह हम उसके बन्दे हैं मेहनत तो कर ही सकते हैं  ⸺ Ziya Mazkoor 
उम्मीद है कि आपको ज़िया मज़कूर शायरी कलेक्शन पसंद आया होगा। उनकी शायरी हर एहसास को अल्फ़ाज़ देती है और दिल को छू जाती है। ऐसे ही और बेहतरीन शायरों की शायरी पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग पर ज़रूर आएँ।