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221 1221 1221 122 बह्र पर ग़ज़ल और तक़्तीअ

"221 1221 1221 122" बह्र पर ग़ज़ल


221 1221 1221 122 बह्र पर ग़ज़ल

रह रह के मुझे इतना सताती है उदासी
आँसू मिरी आँखों से चुराती है उदासी

तुम सोचते तो होगे कि किसके लिए आख़िर
क़ालीन इन अश्कों की बिछाती है उदासी

जब धूप मसर्रत की मुझे लगती है छूने
साए में मुझे अपने छुपाती है उदासी

हर वक़्त मुझे रायगाँ साबित किया इसने
और देखो तो सर भी न झुकाती है उदासी

हर मोड़ पे लगता है क़ज़ा पास है अपने
इक ऐसा अजूबा भी दिखाती है उदासी

कहता हूँ उदासी कोई महताब नहीं है
सूरज की तरह सब को जलाती है उदासी

तक़दीर वरक़ माँगती है और फिर उसपे
ख़ुशियों से कहीं पहले बनाती है उदासी

- अच्युतम यादव 'अबतर'

मसर्रत : ख़ुशी
रायगाँ : बेकार
क़ज़ा : मौत
वरक़ : पन्ना, page 


ग़ज़ल की तक़्तीअ 

नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है।

रह रह के / मुझे इतना / सताती  है / उदासी
221 / 1221 / 1221 / 122

आँसू मि / री आँखों से / चुराती  है / उदासी
221 / 1221 / 1221 / 122


तुम सोच / ते तो होगे / कि किसके लि /आख़िर
221 / 1221 / 1221 / 122

क़ालीन / इन अश्कों की / बिछाती  है / उदासी
221 / 1221 / 1221 / 122
(अलिफ़ वस्ल - इन + अश्कों = 122)


जब धूप / मसर्रत की / मुझे लगती / है  छूने
221 / 1221 / 1221 / 122

साए में / मुझे अपने / छुपाती  है / उदासी
221 / 1221 / 1221 / 122


हर वक़्त / मुझे राय / गाँ साबित कि / या इसने
221 / 1221 / 1221 / 122

और देखो / तो सर भी न / झुकाती  है / उदासी
221 / 1221 / 1221 / 122
('और' को 21 या सिर्फ़ 2 भी ले सकते हैं।)


हर मोड़ / पे लगता  है / क़ज़ा पास / है अपने
221 / 1221 / 1221 / 122

इक ऐसा / अजूबा भी / दिखाती  है / उदासी
221 / 1221 / 1221 / 122

कहता  हूँ / उदासी को / ई महताब / नहीं है
221 / 1221 / 1221 / 122
('कोई' को 22, 21, 12, या 11 भी ले सकते हैं।)

सूरज की / तरह सब को / जलाती  है / उदासी
221 / 1221 / 1221 / 122

तक़दीर / वरक़ माँग / ती है और / फिर उसपे
221 / 1221 / 1221 / 122
(अलिफ़ वस्ल - फिर + उसपे = 122)

ख़ुशियों से / कहीं पहले / बनाती  है / उदासी 
221 / 1221 / 1221 / 122

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