इश्क़ - एक ऐसा एहसास है जिसे हर कोई कभी न कभी महसूस करता है। यह कभी ख़ुशबू बनकर साँसों में बसती है, तो कभी आह बनकर अश्कों में बहती है। इस पोस्ट "Ghazal on Love in Hindi" में हम एक ऐसी ही ग़ज़ल देखने वाले हैं जो इश्क़ को अलग अलग ज़ाविए से दिखाती है। इसमें कभी मिलन की बहार है तो कभी विरह की ख़िज़ाँ।
वैसे भी ग़ज़ल का शाब्दिक अर्थ होता है महबूब से बातें करना। इश्क़ एक ऐसा मौज़ू' है जिसे शायरी में हमेशा से ही एक अलग स्थान दिया जाता रहा है। अगर आप ग़ज़लों का इतिहास पढ़ें तो उनमें प्यार-मोहब्बत के इर्द-गिर्द तमाम अश'आर देखने को मिलते हैं। लेकिन जदीद ग़ज़लों में भी नए ज़ाविए से इसका ज़िक्र होता रहता है। तो चलिए अब बढ़ते हैं उस मुसलसल ग़ज़ल की तरफ़ जो मैंने कुछ दिन पहले ही कही है मोहब्बत के विषय पर।
Ghazal on Love in Hindi
बशर दिन-रात इतना जो भटकता है मोहब्बत में
परिंदों की तरह दिल भी चहकता है मोहब्बत में
हज़ारों कोशिशें कर लो मगर दिल में रहेंगे दाग़
ये हीरा केवल और केवल चमकता है मोहब्बत में
हिसाब इसका बराबर रखती है नफ़रत हथेली पर
कि रस्ता कौन किसका कितना तकता है मोहब्बत में
चलो फिर दोड़तें हैं हम मोहब्बत की ये मुश्किल दौड़
ज़रा देखें कि पहले कौन थकता है मोहब्बत में
अँधेरा इतना भी होता नहीं तन्हाई का ‘अबतर’
उजाला हर तरफ़ जितना भटकता है मोहब्बत में
– अच्युतम यादव 'अबतर'
मुझे उम्मीद है कि आपको ये "Ghazal on Love in Hindi" पसंद आई होगी। अगर ऐसा है तो आप इसे शायरी से जुड़े हुए लोगों से भी ज़रूर साझा करें। आप इस ब्लॉग पर मेरी अन्य ग़ज़लें भी पढ़ सकते हैं और यक़ीन मानिए वो भी आपको निराश नहीं करेंगी।
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