कुछ अल्फ़ाज़ ऐसे होते हैं जो दिल से निकलते हैं और सीधे दिल तक पहुँचते हैं। ऐसी ही शायरी करने वाले शायर हैं अश्विनी मित्तल 'ऐश', जिनकी ग़ज़लों में जज़्बात, तजरबा और एक ख़ास क़िस्म की नर्मी महसूस होती है। इनका जन्म मानसा, पंजाब सन् 1992 में हुआ था। इनकी शायरी न केवल पढ़ने वाले को सोचने पर मजबूर करती है, बल्कि दिल के उस कोने को भी छू जाती हैं जहाँ अक्सर ख़ामोशियाँ बसी होती हैं। मिसाल के तौर पर उनके ये दो अश'आर देखें -
उबलते वक़्त पानी सोचता होगा ज़रूर
अगर बर्तन न होता तो बताता आग को
आपका प्यार चाहिए मुझको
और लगातार चाहिए मुझको
ग़ज़ल की रवायत को निभाते हुए, उन्होंने अपने अंदाज़ में एहसासात को अल्फ़ाज़ दिए हैं। यह शायरी संकलन भी उसी सफ़र का एक हिस्सा है, जिसे हम आपके साथ साझा कर रहे हैं। इस पोस्ट "Ashwini Mittal 'Aish' Shayari Collection" में हम उनकी चुनिंदा ग़ज़लें पढ़ेंगे।
अश्विनी मित्तल 'ऐश' की ग़ज़लें
1
साथ निकले थे ज़िंदगी और मैं
वो तो आगे निकल गई और मैं
रो रही है ये ज़िंदगी मुझ को
खुल के जीते हैं शायरी और मैं
वक़्त मानो रुका रुका सा है
चल रहे हैं मिरी घड़ी और मैं
मेरा ग़म जानते हैं बस दो लोग
आइने में वो आदमी और मैं
कभी लगता है ख़ुद-कुशी कर लूँ
कभी लगता है ख़ुद-कुशी और मैं
- अश्विनी मित्तल 'ऐश'
2
बस एक सिक्के से धरती ख़रीद सकता हूँ
मैं अपने ख़्वाब में कुछ भी ख़रीद सकता हूँ
मुझे तिरे लिए ख़ुशियाँ ख़रीदनी हैं दोस्त
सो क्या मैं तेरी उदासी ख़रीद सकता हूँ
कोई अज़ीज़ मिरा प्यासा मरने वाला है
मैं ख़ून बेच के पानी ख़रीद सकता हूँ
किसी की भूक मिटा कर भी भूक मिटती है
मैं रोटी बेच के रोटी ख़रीद सकता हूँ
मिरी समझ को समझना समझ से बाहर है
जो मैं ने बेचा है मैं ही ख़रीद सकता हूँ
- अश्विनी मित्तल 'ऐश'
3
काई बीनाई की हटाई गई
असलियत हू-ब-हू दिखाई गई
मुझ को मेरा लहू पिलाया गया
मुझ को मेरी ग़ज़ल सुनाई गई
जिस्म को जिस्म से मिलाया गया
आग भी आग से बुझाई गई
कुछ अमीरों की जी-हुज़ूरी में
एक मुफ़्लिस की चारपाई गई
एक लम्हे को ताप आया था
दस बरस की बनी-बनाई गई
- अश्विनी मित्तल 'ऐश'
4
लौट जाता है कोई बाहर से
चीख़ उठता है कोई अंदर से
सारे दरियाओं को डकार गया
यही उम्मीद थी समंदर से
ज़ेहन उड़ता है आसमानों में
जिस्म लिपटा हुआ है बिस्तर से
इश्क़ कर लूँ मैं आप से यानी
आइना दिल लगा ले पत्थर से
लेन-दार आ गए हैं अंदर तक
पैर बाहर गए थे चादर से
- अश्विनी मित्तल 'ऐश'
5
मेरे लोगों को मेरे ग़म से रिहाई देना
मेरे जाने की ख़बर देना बधाई देना
किसी शाइर के ख़यालों का दिखाई देना
या'नी तस्वीर से आवाज़ सुनाई देना
कैसा लगता है फ़ना होना किसी की ख़ातिर
और उस पर उसी बन्दे का दुहाई देना
शे'र पर दाद ज़रूरत से ज़ियादा मिलनी
खाने के बाद मिठाई पे मिठाई देना
हर बहन को मिले भाई की कलाई लेकिन
मेरे अल्लाह! तू भाई को भी भाई देना
ग़ैर-मुमकिन भी किसी हाल में मुमकिन होगा
जैसे बहरे को इशारों से सुनाई देना
- अश्विनी मित्तल 'ऐश'
6
किसी का कुछ नहीं लिया मैंने
अपना सब कुछ गँवा दिया मैंने
उसने थोड़ी सी रौशनी माँगी
तो घर अपना जला दिया मैंने
सच कहूँ तो कभी कभी मैं भी
सोचता हूँ ये क्या किया मैंने
इक ने पूछा कि रोते कैसे हो?
मुस्कुराकर दिखा दिया मैंने
जिन दीवारों ने रौशनी छीनी
उन पे सूरज बना दिया मैंने
- अश्विनी मित्तल 'ऐश'
7
काट ही लेता है जहान के साथ
जिसने काटी हो ख़ानदान के साथ
बद-सुलूकी हुई बयान के साथ
लफ़्ज़ लिपटे रहे ज़ुबान के साथ
सब नहीं करते कैफ़ियत से सुख़न
कुछ दुकानें भी हैं मकान के साथ
मेरा अपमान करने आए थे
उनको भेजा है पूरे मान के साथ
बात करते हैं मेरे बारे में
बात करते हैं बे-ज़ुबान के साथ
मुद्दतों बाद उसकी याद आई
ख़ामियाज़ा भरा लगान के साथ
पहले पहले बहुत थकान हुई
फिर मुहब्बत हुई थकान के साथ
जिस्म लाना तो रूह भी लाना
फूल भी लाना फूलदान के साथ
हर तबी'अत में होशमंद था मैं
जल्दी भी की तो इत्मिनान के साथ
अब मुझे रत्ती भर गुमान नहीं
जी रहा हूँ इसी गुमान के साथ
पाँव धोकर गली के कीचड़ से
हाथ पोंछे हैं पैर-दान के साथ
कोई बैठा हुआ है धरती पर
कोई लटका है आसमान के साथ
– अच्युतम यादव 'अबतर
8
एक वक़्त था जब मज़लूमों पर रस्ते खुल जाते थे
"खुल जा सिम सिम" कह देने से , दरवाज़े खुल जाते हैं
उनकी ख़ाना ख़राबी का मे'यार तो सोचो क्या होगा
जिनके क़दमों की आहट से, मयख़ाने खुल जाते थे
हर औरत फरियाद लगाती चिल्लाती रह जाती थी
इक रक़्क़ासा नाचती थी और सब बटुए खुल जाते थे
- अश्विनी मित्तल 'ऐश'
तो ये थीं अश्विनी मित्तल 'ऐश' की चुनिंदा ग़ज़लें। मुझे यक़ीन है कि अश्विनी मित्तल 'ऐश' की शायरी आपके दिल में घर करने में कामयाब रही होगी। आप मुझे कॉमेंट बॉक्स के ज़रिए ज़रूर बताएँ कि कौन सी ग़ज़ल या कौन सा शे'र आपको सबसे ज़ियादा पसंद आया।
Ashwini Mittal's Instagram Profile : https://www.instagram.com/ashwanimittal66
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