मैं इस पोस्ट के ज़रिए आपको विस्तार से समझाऊँगा कि ग़ज़ल कैसे लिखें। यहाँ मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मैंने ग़ज़ल के सभी बुनियादी नियम और छूट को अलग-अलग posts में cover किया है। आप निश्चिन्त रहें क्योंकि मैं नीचे जब समझाऊँगा तो उन पोस्ट्स के लिंक भी दे दूँगा। आप उन पोस्ट्स को ज़रूर पढ़ें अगर आपको वाक़ई में ग़ज़ल लिखना सीखना है। तो चलिए अब हम उन बुनियादी बातों की तरफ़ बढ़ते हैं।
नोट : मैंने इस पोस्ट में और कुछ अन्य पोस्ट्स में ग़ज़ल 'लिखना' लिखा है जब कि ग़ज़ल 'लिखी' नहीं 'कही' जाती है। मैंने ऐसा सिर्फ़ समझाने के लिए किया है। जैसे "मैंने एक ग़ज़ल लिखी है" सही नहीं है। सही तरीक़ा है "मैंने एक ग़ज़ल कही है।" क्योंकि मुझे ग़ज़ल कैसे लिखें ये समझाना था तो मुझे ऐसा करना पड़ा।
क़ाफ़िया और रदीफ़ तय करें
सबसे पहला काम है क़ाफ़िया और रदीफ़ का चयन करना क्योंकि इन दोनों के चयन करने से ही तय होता है कि आगे के क़ाफ़िए क्या होंगे और वो क़ाफ़िए रदीफ़ से कनेक्ट हो भी रहे हैं या नहीं। क़ाफ़िया हमेशा ध्यान से चुनें क्योंकि अगर आपने कोई ऐसा शब्द ले लिया जिसके क़ाफ़िए मिलना मुश्किल हैं तो आपकी ग़ज़ल अधूरी ही रह जाएगी। ऐसे शब्द को ही क़ाफ़िया लें जिनके हम-क़ाफ़िया आसानी से मिल जाएँ। अपने शुरूआती दिनों में आसान रदीफ़ लें ताकि अपने ख़याल को लय में लाने में दिक़्क़त न हो। एक बार जब क़ाफ़िया और रदीफ़ तय हो जाएँ तब उन्हीं के मुताबिक़ बह्र चुनें। अगला point बह्र ही है।
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सही बह्र चुनें
जब हम कोई शे'र एक निश्चित बह्र पर कहते हैं तो इसका मतलब होता है कि वह शे'र एक निश्चित धुन या रवानी पर कहा गया है। वैसे तो जो भी मान्य बह्र हैं वो सही ही हैं लेकिन आपको अपने क़ाफ़िए और रदीफ़ के वज़्न के तहत ही बह्र चुननी है। यह पूरी तरह से आप पर है कि आप पहले क़ाफ़िया और रदीफ़ तय करके बह्र चुनते हैं या पहले बह्र चुन के फिर क़ाफ़िया और रदीफ़ चुनते हैं। हमेशा ध्यान रखें कि शुरूआती दिनों में कोई complex बह्र लेने से बचें। आप आसान बह्र से ही ग़ज़ल लिखना शुरू करें। अगर आपको शब्दों के वज़्न पता करना नहीं आता तो मैंने मात्रा गणना के नियम समझाए हैं। आप लिंक पर क्लिक करके ज़रूर पढ़ लें।
मतला लिखें
ग़ज़ल का पहला शे'र जिस में दोनों मिसरों (पंक्तियाँ) में हम-क़ाफ़िए और रदीफ़ आते हैं उसे मतला कहते हैं। मतला ग़ज़ल की जान होता है। हमेशा कोशिश करें कि अपनी सोच का दायरा और ज़ियादा बढ़ाकर एक ख़ूबसूरत और नायाब मतला लिखें। वक़्त देना पड़े तो दें लेकिन कभी भी मतला कमज़ोर न हो इसका ख़ास ख़याल रखें। अच्छी से अच्छी ग़ज़लें पढ़ें और ध्यान से उनके मतलों को analyse करें। ख़ुद से परखें और अपने आपको निखारते रहें।
कुछ शे'र और लिखें
- अच्युतम यादव 'अबतर'
बेहतर शे'र लिखने के लिए अच्छी ग़ज़लें पढ़ते रहें। आप ऐसा भी कर सकते हैं कि अगर कोई ग़ज़ल आपको अच्छी लगी तो उसकी बह्र और उसके ही क़ाफ़िया और रदीफ़ पर अपनी एक ग़ज़ल लिखें। इसे "किसी की ज़मीन पर ग़ज़ल" कहते हैं। यह शायरी का एक प्रसिद्ध हिस्सा है।
तरतीब दुरुस्त रखें
नए शायरों के लिए सबसे मुश्किल काम होता है सही तरतीब में शे'र लिखना। तरतीब का मतलब है शब्दों का रख-रखाव। आप खुद ही सोचें कि अगर शब्द इधर-उधर रख दिए जाएँ तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा। इसलिए सिर्फ़ बह्र में लिखना ही काफ़ी नहीं, बह्र के साथ-साथ तरतीब भी सही हो ताकि शे'र की ख़ूबसूरती पर कोई बुरा प्रभाव न पढ़े। उदाहरण के तौर पर 'नहीं वहाँ जाते हैं' की जगह 'वहाँ नहीं जाते हैं' लिखना ही सही है वरना क्या बात की जा रही है वो स्पष्ट नहीं होगा।
सुधार
अब तक आपने एक ग़ज़ल लिख ली है। अब आपको उस में सुधार की गुंजाइश देखनी है। हालाँकि ऐसा तभी होगा जब आप अपनी लिखी हुई ग़ज़ल को कुछ दिनों के लिए छोड़ दें। तब तक आप दूसरी ग़ज़ल पे काम कर सकते हैं। लगभग एक हफ़्ते या दस दिन बाद अपनी पहली ग़ज़ल को दुबारा परखें। इस वक़्त पर आपको कोई न कोई सुधार करने की जगह ज़रूर दिखेगी। अब आपको सभी आवश्यक सुधार करने हैं और जब ऐसा हो जाए तब आपकी एक ग़ज़ल पूरी हो चुकी होगी। हालाँकि, अगर आप चाहें तो एक बार और कुछ दिनों के लिए छोड़कर वापस ग़ज़ल को परख सकते हैं लेकिन मेरा ऐसा मनना है कि एक बार तो कम से कम छोड़कर दुबारा पढ़ना ही है।
दोस्तो, यह पोस्ट मैंने आप से detail में ग़ज़ल की बुनियादी बातें साझा करने के लिए लिखी है। मैंने "ग़ज़ल कैसे लिखें" tag से कुछ पोस्ट्स इस ब्लॉग पर प्रकाशित की हैं जिनमें मैंने शायरी के नियम detail में समझाए हैं। उन में से कुछ के links मैंने ऊपर दिए भी हैं लेकिन अगर आपको बाक़ी के भी पोस्ट्स पढ़ने हैं तो आप "ग़ज़ल कैसे लिखें" tag पर क्लिक करके वो सभी पोस्ट्स भी पढ़ सकते हैं।
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ग़ज़ल का एक उदाहरण :
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