1222 1222 1222 बह्र पर ग़ज़ल
वो क्यूँ लोगों के दिल पत्थर बनाता है
ख़ुदा जब ख़ाक से पैकर बनाता है
मैं उसके आँसुओं में डूब जाता हूँ
बहाने सारे वो रो कर बनाता है
तिरा चेहरा कि मानो हो कोई मज़दूर
उतरते ही दिलों में घर बनाता है
क़फ़स का डर दिखाने के लिए नक़्क़ाश
क़फ़स चिड़िया के ही भीतर बनाता है
हर इक ठोकर का, हर इक मोड़ का है इल्म
मुझे ख़ुद रास्ता रहबर बनाता है
- अच्युतम यादव 'अबतर'
पैकर : तन, शरीर
नक़्क़ाश : चित्रकार
इल्म : जानकारी
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नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है।
वो क्यूँ लोगों / के दिल पत्थर / बनाता है
1222 / 1222 / 1222
ख़ुदा जब ख़ा / क से पैकर / बनाता है
1222 / 1222 / 1222
मैं उसके आँ / सुओं में डू / ब जाता हूँ
1222 / 1222 / 1222
बहाने सा / रे वो रो कर / बनाता है
1222 / 1222 / 1222
तिरा चेहरा / कि मानो हो / कोई मज़दूर
1222 / 1222 / 1222 (+1)
उतरते ही / दिलों में घर / बनाता है
1222 / 1222 / 1222
क़फ़स का डर / दिखाने के / लिए नक़्क़ाश
1222 / 1222 / 1222 (+1)
क़फ़स चिड़िया / के ही भीतर / बनाता है
1222 / 1222 / 1222
हर इक ठोकर / का, हर इक मो / ड़ का है इल्म
1222 / 1222 / 1222 (+1)
(अलिफ़ वस्ल --> हर + इक = हरिक 12)
मुझे ख़ुद रा / स्ता रहबर / बनाता है
1222 / 1222 / 1222
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