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22 22 22 22 बह्र पर ग़ज़ल और तक़्तीअ | बह्र-ए-मीर

22 22 22 22 बह्र पर ग़ज़ल | बह्र-ए-मीर

22 22 22 22 बह्र पर ग़ज़ल | बह्र-ए-मीर


रौशन हो के लौट आया है
उस पे बुज़ुर्गों का साया है

दहशत में जीने वालों को
जीने का फ़न कब आया है

ख़स्ता-हाली में भी दियों ने
तारीकी को धमकाया है

धूल में खेले आईने को
आब-ए-चश्म से चमकाया है

रब ने हमारे दिल को आख़िर
जिस्म में ही क्यों दफ़नाया है

देख के क़ुदरत में तारीकी
एक सितारा घबराया है

तेरी आँखों में मेरे अश्क
इनको किसने भटकाया है

दिल एक ऐसा बाग़ है जिसको
रंज-ओ-ग़म ने महकाया है
 
 - अच्युतम यादव 'अबतर'

तारीकी : अँधेरा
आब-ए-चश्म : आँसू 

ग़ज़ल की तक़्तीअ

नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है, वहाँ underline करके दर्शाया गया है।

रौशन / हो के / लौट आ / या है
22 / 22 / 22 / 22
(अलिफ़ वस्ल --> लौट + आया = लौटाया 222)

उस पे बु / ज़ुर्गों / का सा / या है
211 / 22 / 22 / 22


दहशत / में जी / ने वा / लों को
22 / 22 / 22 / 22

जीने / का फ़न / कब आ / या है
22 / 22 / 22 / 22



ख़स्ता- / हाली / में भी दि / यों ने
22 / 22 / 211 / 22

तारी / की को / धमका / या है
22 / 22 / 22 / 22



धूल में / खेले / आई /ने को
211 / 22 / 22 / 22

आब-ए- / चश्म से / चमका / या है
22 / 211 / 22 / 22



रब ने ह / मारे / दिल को / आख़िर
211 / 22 / 22 / 22

जिस्म में / ही क्यों / दफ़ना / या है
211 / 22 / 22 / 22



देख के / क़ुदरत / में ता / रीकी
211 / 22 / 22 / 22

एक सि / तारा / घबरा / या है
211 / 22 / 22 / 22



तेरी / आँखों / में मे / रे अश्क
22 / 22 / 22 / 22 (+1)

इनको / किसने / भटका / या है
22 / 22 / 22 / 22



दिल ए / क ऐसा / बाग़  है  / जिसको
22 / 22 / 211 / 22
(अलिफ़ वस्ल --> एक + ऐसा = एकैसा 222)

रंज-ओ- / ग़म ने / महका / या है
22 / 22 / 22 / 22


कुछ ज़रूरी बातें :

मीर बह्र में किसी भी रुक्न (22) को 211 या 121 लेने की छूट होती है लेकिन शेर की लय नहीं टूटनी चाहिए। आपने देखा कि मैंने कई जगह दीर्घ लफ़्ज़ की मात्रा गिरा कर 1 लिया है। हालाँकि छूट तो होती है फिर भी जितना कम मात्रा गिराई जाए उतना बेहतर होता है।

शुरुआत में हो सकता है कि आपको मीर बह्र पर ग़ज़ल कहने में दिक़्क़तें आएँ लेकिन एक बार अगर इस बह्र की लय आपने समझ ली तो फिर यह एक आसान बह्र बन जाती है।  

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