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22 22 22 22 बह्र पर ग़ज़ल | बह्र-ए-मीर

22 22 22 22 बह्र पर ग़ज़ल | बह्र-ए-मीर

22 22 22 22 बह्र पर ग़ज़ल | बह्र-ए-मीर


रौशन हो के लौट आया है
उस पे बुज़ुर्गों का साया है


दहशत में जीने वालों को
जीने का फ़न कब आया है


ख़स्ता-हाली में भी दियों ने
तारीकी को धमकाया है


धूल में खेले आईने को
आब-ए-चश्म से चमकाया है


रब ने हमारे दिल को आख़िर
जिस्म में ही क्यों दफ़नाया है


देख के क़ुदरत में तारीकी
एक सितारा घबराया है


तेरी आँखों में मेरे अश्क
इनको किसने भटकाया है


दिल एक ऐसा बाग़ है जिसको
रंज-ओ-ग़म ने महकाया है
 
 - Achyutam Yadav 'Abtar'


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