2122 2122 2122 2122 बह्र पर ग़ज़ल
जिस्म पर हर ज़ख़्म का रुतबा तो मरहम तय करेगा
कितना हँसना है हमें ये बात भी ग़म तय करेगा
सिर्फ़ मेहनत हाथ में थी और अब क़िस्मत का है खेल
बीज हमने बो दिया बाक़ी तो मौसम तय करेगा
सिर्फ़ कहने को ही इंसाँ मानती है दुनिया वरना
ख़ाक भी था या नहीं ये वक़्त-ए-मातम तय करेगा
ठीक हूँ नज़दीक उसके या दुखी हूँ दूर होके
अब ये भी तफ़तीश करके मेरा हम-दम तय करेगा
तुम हो गंगा की तरह तो मेरा रग रग मानो यमुना
कब तलक ईश्वर न जाने अपना संगम तय करेगा
- अच्युतम यादव 'अबतर'
तफ़तीश : छानबीन
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जिस्म पर हर / ज़ख़्म का रुत / बा तो मरहम / तय करेगा
2122 / 2122 / 2122 / 2122
कितना हँसना / है हमें ये / बात भी ग़म / तय करेगा
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सिर्फ़ मेहनत / हाथ में थी / और अब क़िस् / मत का है खेल
2122 / 2122 / 2122 / 2122 (+1)
बीज हमने / बो दिया बा / क़ी तो मौसम / तय करेगा
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सिर्फ़ कहने / को ही इंसाँ / मानती है / दुनिया वरना
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ख़ाक भी था / या नहीं ये / वक़्त-ए-मातम / तय करेगा
2122 / 2122 / 2122 / 2122
ठीक हूँ नज़ / दीक उसके / या दुखी हूँ / दूर होके
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अब ये भी तफ़ / तीश करके / मेरा हम-दम / तय करेगा
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तुम हो गंगा / की तरह तो / मेरा रग रग / मानो यमुना
2122 / 2122 / 2122 / 2122
कब तलक ईश् / वर न जाने / अपना संगम / तय करेगा
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