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221 1222 221 1222 बह्र पर ग़ज़ल और तक़्तीअ

221 1222 221 1222 बह्र पर ग़ज़ल

221 1222 221 1222 बह्र पर ग़ज़ल 


झगड़े भी हुए अक्सर जब हमने मोहब्बत की
पर फूल भी थे लब पर जब हमने मोहब्बत की

आने लगे थे चक्कर जब हमने मोहब्बत की
लगने लगा दफ़्तर घर जब हमने मोहब्बत की

भूले न मोहब्बत में उन रस्तों के पेच-ओ-ख़म
भटके न कभी दर-दर जब हमने मोहब्बत की

महबूब की ख़ुश्बू से हो पाया सफ़र आसाँ
कोई भी न था रहबर जब हमने मोहब्बत की

नफ़रत थी कभी हमको ये प्यार-मोहब्बत से
हँसने लगे ख़ुद इस पर जब हमने मोहब्बत की

ये वक़्त की बख़्शिश थी माँगा न कभी हमने
वरना न थे हम मुज़्तर जब हमने मोहब्बत की


 - अच्युतम यादव 'अबतर'

पेच-ओ-ख़म : टेढ़े-मेढ़े 
मुज़्तर : व्याकुल


ग़ज़ल की तक़्तीअ 

नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है।

झगड़े भी / हुए अक्सर / जब हमने / मोहब्बत की
221 / 1222 / 221 / 1222

पर फूल / भी थे लब पर / जब हमने / मोहब्बत की
221 / 1222 / 221 / 1222



आने ल / गे थे चक्कर / जब हमने / मोहब्बत की
221 / 1222 / 221 / 1222

लगने ल / गा दफ़्तर घर / जब हमने / मोहब्बत की
221 / 1222 / 221 / 1222



भूले न / मोहब्बत में / उन रस्तों / के पेच-ओ-ख़म
221 / 1222 / 221 / 1222

भटके न / कभी दर-दर / जब हमने / मोहब्बत की
221 / 1222 / 221 / 1222



महबूब / की ख़ुश्बू से / हो पाया / सफ़र आसाँ
221 / 1222 / 221 / 1222

कोई भी / न था रहबर / जब हमने / मोहब्बत की
221 / 1222 / 221 / 1222



नफ़रत थी / कभी हमको / ये प्यार- / मोहब्बत से
221 / 1222 / 221 / 1222

हँसने ल / गे ख़ुद इस पर / जब हमने / मोहब्बत की
221 / 1222 / 221 / 1222



ये वक़्त / की बख़्शिश थी / माँगा न / कभी हमने
221 / 1222 / 221 / 1222

वरना न / थे हम मुज़्तर / जब हमने / मोहब्बत की
221 / 1222 / 221 / 1222


कुछ ज़रूरी बातें :

1. ध्यान रखें कि शिकस्ता बह्र 2 बराबर हिस्सों में टूटती है इसलिए एक हिस्से में कही गई बात के बाद एक pause आना चाहिए और फिर दूसरे हिस्से में बात आगे बढ़ानी है। पहले हिस्से का कोई लफ़्ज़ दूसरे हिस्से में नहीं जाना चाहिए।  

2. यह एक शिकस्ता बह्र है इसलिए इसमें वह स्थान जहाँ से बह्र दो बराबर हिस्सों में टूटती है वहाँ बाएँ हिस्से के अंत में +1 लेने की छूट होती है। जैसे  221 1222 +1 // 221 1222

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