221 1222 221 1222 बह्र पर ग़ज़ल
झगड़े भी हुए अक्सर जब हमने मोहब्बत की
पर फूल भी थे लब पर जब हमने मोहब्बत की
आने लगे थे चक्कर जब हमने मोहब्बत की
लगने लगा दफ़्तर घर जब हमने मोहब्बत की
भूले न मोहब्बत में उन रस्तों के पेच-ओ-ख़म
भटके न कभी दर-दर जब हमने मोहब्बत की
महबूब की ख़ुश्बू से हो पाया सफ़र आसाँ
कोई भी न था रहबर जब हमने मोहब्बत की
नफ़रत थी कभी हमको ये प्यार-मोहब्बत से
हँसने लगे ख़ुद इस पर जब हमने मोहब्बत की
ये वक़्त की बख़्शिश थी माँगा न कभी हमने
वरना न थे हम मुज़्तर जब हमने मोहब्बत की
- Achyutam Yadav 'Abtar'
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