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2122 2122 2122 बह्र पर ग़ज़ल और तक़्तीअ

 
"2122 2122 2122" बह्र पर ग़ज़ल

2122 2122 2122 बह्र पर ग़ज़ल 

इस उदासी को रुलाना चाहता हूँ
मैं मसर्रत को चुराना चाहता हूँ

कोई रंजिश हो या कोई हादसा हो
मैं तो केवल मुस्कुराना चाहता हूँ

क्यों नहीं कम होती मेरे घर में शक्कर
तुम से मिलने का बहाना चाहता हूँ

तेरा दिल दरिया है तो उसमें मैं अपनी
दिल की कश्ती को डुबाना चाहता हूँ

ज़िन्दगी के साथ कब तक बैठे रहते
अब यहाँ से उठ के जाना चाहता हूँ

अब कहाँ से लाएँ इतना सारा पानी
आग अश्कों से बुझाना चाहता हूँ

 - अच्युतम यादव 'अबतर'

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ग़ज़ल की तक़्तीअ

नोट : जहाँ कहीं भी मात्रा गिराई गई है वहाँ underline करके दर्शाया गया है।  

इस उदासी / को रुलाना / चाहता हूँ
2122 / 2122 / 2122

मैं मसर्रत / को चुराना / चाहता हूँ
2122 / 2122 / 2122

कोई  रंजिश / हो या कोई / हादसा हो
2122 / 2122 / 2122 

मैं तो केवल / मुस्कुराना / चाहता हूँ
2122 / 2122 / 2122 

क्यों नहीं कम / होती मेरे / घर में शक्कर
2122 / 2122 / 2122 

तुम से मिलने / का बहाना / चाहता हूँ
2122 / 2122 / 2122 

तेरा दिल दरि / या  है  तो उस / में मैं अपनी
2122 / 2122 / 2122 

दिल की कश्ती / को डुबाना / चाहता हूँ
2122 / 2122 / 2122 

ज़िन्दगी के / साथ कब तक / बैठे रहते
2122 / 2122 / 2122 

अब यहाँ से / उठ के जाना / चाहता हूँ
2122 / 2122 / 2122 

अब कहाँ से / लाएँ  इतना / सारा पानी
2122 / 2122 / 2122 

आग अश्कों / से बुझाना / चाहता हूँ
2122 / 2122 / 2122 

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