221 2121 1221 212 बह्र पर ग़ज़ल
इक अर्सा बीता पर तू हमारा नहीं हुआ
भाए जो आँखों को वो नज़ारा नहीं हुआ
तू डूबता रहा मैं सहारा नहीं हुआ
तेरे लिए नदी का किनारा नहीं हुआ
हम ज़िन्दगी बनें कई लोगों की याँ मगर
अफ़सोस कोई शख़्स हमारा नहीं हुआ
बेदाद मेरे साथ हुआ है मैं क्या करूँ
मैं आसमाँ बना तू सितारा नहीं हुआ
तज़्लील तो हुई है सो गर्दिश में आ गया
मैं इसलिए कभी भी तुम्हारा नहीं हुआ
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इक अर्सा / बीता पर तू / हमारा न / हीं हुआ
221 / 2121 / 1221 / 212
भाए जो / आँखों को वो / नज़ारा न / हीं हुआ
221 / 2121 / 1221 / 212
तू डूब / ता रहा मैं / सहारा न / हीं हुआ
221 / 2121 / 1221 / 212
तेरे लि / ए नदी का / किनारा न / हीं हुआ
221 / 2121 / 1221 / 212
हम ज़िन्द / गी बनें क / ई लोगों की / याँ मगर
221 / 2121 / 1221 / 212
अफ़सोस / कोई शख़्स / हमारा न / हीं हुआ
221 / 2121 / 1221 / 212
बेदाद / मेरे साथ / हुआ है मैं / क्या करूँ
221 / 2121 / 1221 / 212
मैं आस / माँ बना तू / सितारा न / हीं हुआ
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तज़्लील / तो हुई है / सो गर्दिश में / आ गया
221 / 2121 / 1221 / 212
मैं इसलि / ए कभी भी / तुम्हारा न / हीं हुआ
221 / 2121 / 1221 / 212
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