2122 1122 1122 22/112 बह्र पर ग़ज़ल
वो भी राज़ी न था अंजाम पे आने के लिए
मैंने भी टोका ही था बात बढ़ाने के लिए
मैं निभाने को निभा सकता हूँ हर इक का साथ
साथ में कोई हो तो साथ निभाने के लिए
मुझको क्यों लगता है ऐसा कहीं देखा है तुम्हें
इक जनम कम पड़ा क्या तुमको भुलाने के लिए
रूह ने ख़ुदकुशी कर ली है मेरे अंदर ही
अश्क मजबूर हैं अब लाश उठाने के लिए
ख़ौफ़ वाजिब है परिंदे का दिखे जब लोहा
काम आता है यही पिंजरा बनाने के लिए
रोक लेंगे मुझे ऐसा लगा उनको लेकिन
काँटे कम पड़ गए रस्तों पे बिछाने के लिए
- अच्युतम यादव 'अबतर'
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वो भी राज़ी / न था अंजा / म पे आने / के लिए
2122 / 1122 / 1122 / 112
मैंने भी टो / का ही था बा / त बढ़ाने / के लिए
2122 / 1122 / 1122 / 112
मैं निभाने / को निभा सक / ता हूँ हर इक / का साथ
मैं निभाने / को निभा सक / ता हूँ हर इक / का साथ
2122 / 1122 / 1122 / 22 (+1)
साथ में को / ई हो तो सा / थ निभाने / के लिए
2122 / 1122 / 1122 / 112
मुझको क्यों लग / ता है ऐसा / कहीं देखा / है तुम्हें
मुझको क्यों लग / ता है ऐसा / कहीं देखा / है तुम्हें
2122 / 1122 / 1122 / 112
इक जनम कम / पड़ा क्या तुम / को भुलाने / के लिए
2122 / 1122 / 1122 / 112
रूह ने ख़ुद / कुशी कर ली / है मेरे अंदर ही
रूह ने ख़ुद / कुशी कर ली / है मेरे अंदर ही
2122 / 1122 / 1122 / 22
अश्क मजबू / र हैं अब ला / श उठाने / के लिए
2122 / 1122 / 1122 / 112
ख़ौफ़ वाजिब / है परिंदे / का दिखे जब / लोहा
ख़ौफ़ वाजिब / है परिंदे / का दिखे जब / लोहा
2122 / 1122 / 1122 / 22
काम आता / है यही पिंज / रा बनाने के लिए
2122 / 1122 / 1122 / 112
रोक लेंगे / मुझे ऐसा / लगा उनको / लेकिन
रोक लेंगे / मुझे ऐसा / लगा उनको / लेकिन
2122 / 1122 / 1122 / 22
काँटे कम पड़ / गए रस्तों / पे बिछाने / के लिए
2122 / 1122 / 1122 / 112
* इस बह्र के आख़िरी रुक्न 22 को किसी भी मिसरे में 112 भी ले सकते हैं।
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