"वो चेहरा"
ग़मज़दा शब में वो चेहरा
मेरे दिल के कहकशाँ में
यूँ चमकता है किसी तारे की मानिंद
नूर बे-माना नहीं जिसका कहीं से
मेरे चेहरे पे चमक है जिस ज़िया से
चोट तारीकी को करती है मुसलसल
ऐसी तारीकी कि जिस में
दफ़्न है मेरी तजस्सुस
कोई चेहरा देखने की
कोई अपना ढूँढ़ने की
पर ये तारा दस्तरस में ही नहीं है
रौशनी से इसकी कब तक और बहलूँ
फिर सवेरा होगा और फिर
मैं उसी तारीकी में ही
घुट के रह जाऊँगा आख़िर
- अच्युतम यादव 'अबतर'
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