दोस्तो, कुछ रदीफें ऐसी होती हैं जिनका एक अलग ही निखार होता है। ये छोटी भी हो सकती हैं और लंबी भी लेकिन होतीं इतनी unique और ख़ूबसूरत हैं कि सुनने वाले के दिल में अलग ही जगह बना लेती हैं। हालाँकि, एक शायर के नज़रिए से भी देखें तो unique radeef पर उसे भी ख़याल बुनने में थोड़ी मुश्किलात आती हैं जिन्हें उस शायर को सब्र रखकर पार करना होता है।
Ghazal on Unique Radeef
ख़ुद से ज़रा ख़फ़ा हूँ मैं आम आदमी हूँ
ख़ुद पे ही इक सज़ा हूँ मैं आम आदमी हूँ
कोई वजूद मेरा मिलता नहीं किसी को
बस यूँ ही जी रहा हूँ मैं आम आदमी हूँ
रस्ते मिले न मुझको जो औरों को मिले थे
तन्हा ही मैं खड़ा हूँ मैं आम आदमी हूँ
ज़रदारों में नहीं दी अपनी मिसाल मैंने
कब से ये कह रहा हूँ मैं आम आदमी हूँ
कोई न हल निकाले कोई न याद रक्खे
इक ऐसा मसअला हूँ मैं आम आदमी हूँ
- अच्युतम यादव 'अबतर'
दोस्तो, मेरी पूरी कोशिश थी कि इस रदीफ़ को अच्छी तरह से निभाऊँ क्योंकि इस तरह की रदीफ़ को अच्छी तरह से निभाना आसान नहीं होता। उम्मीद करता हूँ कि आपको इस unique radeef पर मेरी ये ग़ज़ल पसंद आई होगी।
धन्यवाद।
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