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पिता पर ग़ज़ल जो दिल छू लेगी

पिता पर ग़ज़ल जो दिल छू लेगी


दोस्तो, आज मैं एक ऐसी ग़ज़ल आप सभी से साझा करने जा रहा हूँ जिसे पढ़के आपको अपने पिता की याद ज़रूर आएगी। पिता पर कही ये ग़ज़ल मेरे दिल के बहुत क़रीब है क्योंकि इस ग़ज़ल में एक शे'र है जिसके तख़य्युल के वक़्त मेरी भी आँखें नम हो गई थीं। हर बेटे की तरह मुझे भी अपने पिता से बेइंतिहा प्यार है और ज़ियादातर हम व्यक्त नहीं कर पाते हैं। ऐसे में काग़ज़ और कलम ज़रिया बनते हैं।   

मैं अपनी ये पिता पर ग़ज़ल उन सभी को समर्पित करता हूँ जो ख़ुद एक पिता हैं। वो इसके हक़दार भी हैं क्योंकि माँ-बाप का साथ जब छूटता है तो सदमे में इंसान महज़ पुतले की तरह हो जाता है - न वो बोलता है, कुछ खाता है। 


 पिता पर ग़ज़ल जो दिल छू लेगी 


कितना ज़िया तारीकी में लाते थे पिता जी और अज़्म ये हर रोज़ दिखाते थे पिता जी कुछ ऐसे भी दिल मेरा दुखाते थे पिता जी दुख बाँटने मुझसे नहीं आते थे पिता जी मालूम है अब एक भला बेटा बनाके इक अच्छा पिता मुझको बनाते थे पिता जी मैं मुरझा भी जाऊँ तो खिला दें मुझे यक-दम वो कैसी हवा थी जो चलाते थे पिता जी मैं आग लगाके चिता पे उनसे ये बोला "पर आप तो हर आग बुझाते थे पिता जी" थोड़ा सा गँवाता था उन्हें रोज़ मैं 'अबतर' और रोज़ मुझे थोड़ा गँवाते थे पिता जी
— Achyutam Yadav 'Abtar'
इस ग़ज़ल में पिता के प्यार, त्याग और साए को शब्दों के माध्यम से सजीव किया गया है। पिता के बिना हमारी ज़िन्दगी अधूरी सी लगती है, और उनकी दी हुई प्रेरणा और क़ुर्बानियों को शब्दों में समेट पाना मुश्किल है। पिता पर यह ग़ज़ल एक प्रयास है उस अनमोल रिश्ते को सम्मान देने का, जो हम शब्दों से कभी पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर सकते।

धन्यवाद।  

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