कहते हैं कि लेखन में संजीदगी और गहराई हासिल करने में उम्रें गुज़र जाती हैं। ज़ियादातर एक लेखक या कवि बेहतर तभी लिखता है जब उसे जीवन का बहुत तजरबा हो जाता है। मगर ये धारणा तोड़ने वाले बहुत से कवि और शायर हुए हैं। उन्हीं में से एक शायरा हैं हिमांशी बाबरा। इनके ख़यालों में ऐसी गहराई है जो अक्सर वक़्त के साथ आती है। ये एक नई नस्ल की शायरा हैं जिन्हें अपने जज़्बात अलफ़ाज़ में बा-ख़ूबी ढालना आता है।
अगर हिमांशी बाबरा की शायरी की बात करें तो इनकी शायरी में उदासी और तन्हाई का एक ग़ज़ब का मेल दिखता है जो इन्हें दूसरों से अलग बनाता है। हिमांशी बाबरा शायरी की दुनिया में अपने क़दम आहिस्ता-आहिस्ता आगे की ओर रख रहीं हैं। तो आइए, आज इस पोस्ट "Himanshi Babra Shayari Collection" में हम इनकी शायरी से रू-ब-रू होते हैं।
हिमांशी बाबरा की ग़ज़लें
1
आँख को आइना समझते हो
'अक्स को जाने क्या समझते हो
दोस्त अब क्यों नहीं समझते तुम
तुम तो कहते थे ना समझते हो
अपना ग़म तुम को कैसे समझाऊँ
सब से हारा हुआ समझते हो
मेरी दुनिया उजड़ गई इस में
तुम इसे हादिसा समझते हो
आख़िरी रास्ता तो बाक़ी है
आख़िरी रास्ता समझते हो
- हिमांशी बाबरा
2
मैं जैसे तैसे कर के आ गया इक आध से आगे
निकल सकता नहीं लेकिन तिरी हर याद से आगे
मिरा भी ख़्वाब है दुनिया तुम्हारे साथ देखूँ मैं
क़दम बढ़ते नहीं लेकिन मुरादाबाद से आगे
मुझे तो तेरी बर्बादी भी बर्बादी नहीं लगती
कि मैं ने वो भी देखा है जो है बर्बाद से आगे
जहाँ जाऊँ मिरा ग़म साथ जाएगा मिरे यूँही
निकल पाया है क्या कोई कभी औलाद से आगे
- हिमांशी बाबरा
3
दिल की हालत सँभल गई है अब
याद आगे निकल गई है अब
कल तो शामिल था मेरी क़िस्मत में
मेरी क़िस्मत बदल गई है अब
वो मिरा हाल तुम से पूछे तो
उस से कहना सँभल गई है अब
तेरी यादें थीं बर्फ़ के मानिंद
बर्फ़ पूरी पिघल गई है अब
लोग सहरा की सम्त भागेंगे
शहर में आग जल गई है अब
आग रंगों की बुझ गई या'नी
मेरी तस्वीर जल गई है अब
- हिमांशी बाबरा
4
मेरी ख़ुशबू को हवाओं में उड़ाने वाला
लौट के आया नहीं छोड़ के जाने वाला
जाने किस मोड़ पे ले आई मोहब्बत मुझ को
याद आता है बहुत याद न आने वाला
प्यार के साथ मुझे ता'ने दिया करता है
तुझ में भी रंग है कुछ कुछ तो ज़माने वाला
मुद्दतें बीत गईं राह में बैठी हुई है
शहर से जा भी चुका शहर से जाने वाला
ऐसे बिछड़ा है कि मिलने की दु'आ करता है
हर मुलाक़ात पे मुँह फेर के जाने वाला
- हिमांशी बाबरा
6
दिल ऐसे मुब्तला हुआ तेरे मलाल में
ज़ुल्फ़ें सफ़ेद हो गईं उन्नीस साल में
ऐसे वो रो रहा था मिरा हाल देख कर
आया हुआ हो जैसे किसी इंतिक़ाल में
ये बात जानती हूँ मगर मानती नहीं
दिन कट रहे हैं आज भी तेरे ख़याल में
इक बार मुझ को अपनी निगहबानी सौंप दे
'उम्रें गुज़ार दूँगी तिरी देख-भाल में
वो तो सवाल पूछ के आगे निकल गया
अटकी हुई हूँ मैं मगर उस के सवाल में
- हिमांशी बाबरा
इस ग़ज़ल का मतला बहुत प्यारा है। सिर्फ़ यह ही नहीं, बल्कि हिमांशी बाबरा की शायरी में मुझे मतले बहुत पसंद आते हैं। मतले को ग़ज़ल का सबसे अहम शे'र कहा जाता इसलिए हिमांशी की ग़ज़लें और ज़ियादा उभर के आती हैं और उनकी शायरी का ये पहलू बहुत ख़ास है।
7
अपनी हालत का मुझे ध्यान नहीं होता है
'इश्क़ सच्चा हो तो आसान नहीं होता है
तुझ से मिल कर मुझे पहले सी ख़ुशी मिलती नहीं
तू मुझे देख के हैरान नहीं होता है
ख़ैरियत पूछता है सिर्फ़ दिखावे के लिए
वो मिरे हाल से अंजान नहीं होता है
पहले से बढ़ के मोहब्बत है मुझे तुझ से अब
क्यों यक़ीं तुझ को मिरी जान नहीं होता है
कब कहा ये कि मोहब्बत नहीं करता है तू
तेरे होने पे मुझे मान नहीं होता है
- हिमांशी बाबरा
8
लोग तो लोग हैं लोगों की तरह देखते हैं
और हम हैं तुझे बच्चों की तरह देखते हैं
हम को दुनिया ने लकड़हारा समझ रक्खा है
हम तो पेड़ों को परिंदों की तरह देखते हैं
मैं जो देखूँ तो झपकती नहीं आँखें मेरी
और हज़रत मुझे अंधों की तरह देखते हैं
तुम तो फिर ग़ैर हो तुम से तो शिकायत कैसी
मेरे अपने मुझे ग़ैरों की तरह देखते हैं
तेरा दीदार क़ज़ा होता नहीं है हम से
हम तुझे फ़र्ज़ नमाज़ों की तरह देखते हैं
- हिमांशी बाबरा
9
इस तरह मुझ को किसी दिल में जगह दी गई है
जैसे बच्ची कोई कोठे पे बिठा दी गई है
बस तिरी याद ही बाक़ी थी मिरे हाथों में
अब तिरी याद भी हाथों से गँवा दी गई है
वो किसी और से मंसूब हुई है ऐसे
जैसे बेवा किसी डोली में बिठा दी गई है
ज़ेहन किरदार से तब्दील हुआ लोगों का
बस इसी जुर्म में कातिब को सज़ा दी गई है
- हिमांशी बाबरा
10
नहीं मेरी वापसी का कोई ए'तिबार कहना
वो करे न ज़िंदगी भर मिरा इंतिज़ार कहना
वो मोहब्बतों के मौसम तुझे याद भी हैं हमदम
मिरा एक बार सुनना तेरा बार बार कहना
वो शरीफ़ आदमी है मिरा तज़्किरा करे ना
उसे जानती है दुनिया रहे होशियार कहना
जो हँसा है इत्तीफ़ाक़न तुम्हें देख कर मिरा मन
न इसे सितम समझना न इसे क़रार कहना
वो हर एक बीता लम्हा मुझे याद आ रहा है
तिरा मुझ से बात करना मिरा तुझ को यार कहना
ज़रा एहतियात रक्खे मिरे सामने न आए
मिरा देखना न कर दे उसे शर्मसार कहना
- हिमांशी बाबरा
11
अपने होंटों पे तिरा नाम न आने दूँगी
मैं तिरे हिज्र को बे-कार न जाने दूँगी
अब न वो तू है न वो 'इश्क़ जो पहले था कभी
तू अगर दूर भी जाएगा तो जाने दूँगी
आँसुओं में बहा दूँगी मिरे दिल के टुकड़े
अपनी आँखों को तिरा रंज मनाने दूँगी
मेरे महबूब तिरे बा'द कभी अपना हाल
न सुनाऊँगी किसी को न सुनाने दूँगी
तू अगर सामने आया तो बहुत देखूँगी
और अगर आँख चुराएगा चुराने दूँगी
- हिमांशी बाबरा
12
वो हाथ मेरे हाथ से बेहद क़रीब था
फिर भी मैं छू नहीं सकी मेरा नसीब था
अब तुझ से बन गई तो ज़माने से बन गई
जब तू रक़ीब था तो ज़माना रक़ीब था
तर्क-ए-त'अल्लुक़ात पे आया नहीं समझ
तेरा नसीब था कि ये मेरा नसीब था
कुछ वक़्त में ही मुझ से बहुत दूर हो गया
वो एक शख़्स जो मिरे सब से क़रीब था
आया है ख़ाली हाथ वो बाज़ार-ए-'इश्क़ से
यादें भी ला नहीं सका इतना ग़रीब था
- हिमांशी बाबरा
13
लग ही नहीं रहा है कि सालों से दूर हैं
हम आज-कल तुम्हारे ख़यालों से दूर हैं
उस को कई बरस से नहीं देखा दोस्तों
या'नी कई बरस से उजालों से दूर हैं
उस रोज़ तेरा सर मिरे हाथों से दूर था
ये हाथ आज तक तिरे बालों से दूर हैं
देखो हमारे दिल में उजाले हैं हर तरफ़
हम इस के बावजूद उजालों से दूर हैं
तू हम को अपने चाहने वालों में जानियो
हम लोग तेरे चाहने वालों से दूर हैं
- हिमांशी बाबरा
14
सब को पागल बना रही हूँ मैं
अपना क़िस्सा सुना रही हूँ मैं
जाँ सँभलती नहीं है और उस पर
याद का बोझ उठा रही हूँ मैं
जी में आता है पूछ लूँ उस से
क्या तुझे याद आ रही हूँ मैं
इक मोहब्बत है और उस का भी
क्या तमाशा बना रही हूँ मैं
किस की यादें हैं बारहा जिन को
आँसुओं में बहा रही हूँ मैं
कोई पूछे तो उस को बतलाऊँ
याद कैसे छुपा रही हूँ मैं
- हिमांशी बाबरा
15
अपने होंटों पे तिरा नाम न आने दूँगी
मैं तिरे हिज्र को बे-कार न जाने दूँगी
अब न वो तू है न वो 'इश्क़ जो पहले था कभी
तू अगर दूर भी जाएगा तो जाने दूँगी
आँसुओं में बहा दूँगी मिरे दिल के टुकड़े
अपनी आँखों को तिरा रंज मनाने दूँगी
मेरे महबूब तिरे बा'द कभी अपना हाल
न सुनाऊँगी किसी को न सुनाने दूँगी
तू अगर सामने आया तो बहुत देखूँगी
और अगर आँख चुराएगा चुराने दूँगी
- हिमांशी बाबरा
तो ये थीं हिमांशी बाबरा की कुछ ग़ज़लें। लेकिन जब बात हिमांशी बाबरा की शायरी की हो तो उनके कुछ चुनिंदा तन्हा अश'आर भी देख लेते हैं।
हिमांशी बाबरा के चुनिंदा अश'आर
दिल की बस्ती में उजाला नहीं होने वाला
मेरी रातों का ख़सारा नहीं होने वाला
मैं ने उल्फ़त में मुनाफ़े' को नहीं सोचा है
मेरा नुक़्सान ज़ियादा नहीं होने वाला
- हिमांशी बाबरा
जाने किस मोड़ पे ले आई मोहब्बत मुझ को
याद आता है बहुत याद न आने वाला
- हिमांशी बाबरा
अपनी हसरत का गला घोंट दिया है मैं ने
अब दिलासों से मुलाक़ात नहीं होती है
- हिमांशी बाबरा
बेहतर तो अब यही है तुझे मैं भी छोड़ दूँ
इस रास्ते के आगे कोई रास्ता नहीं
- हिमांशी बाबरा
कल तो शामिल था मेरी क़िस्मत में
मेरी क़िस्मत बदल गई है अब
- हिमांशी बाबरा
साथ देने का दिलाया था भरोसा तू ने
और फिर छोड़ दिया मुझ को अकेला तू ने
अपनी मर्ज़ी से मुझे छोड़ के जाने वाले
मेरी मर्ज़ी को कहाँ छोड़ दिया था तू ने
- हिमांशी बाबरा
तू लाख बेवफ़ा है मगर सर उठा के चल
दिल रो पड़ेगा तुझ को पशेमान देख कर
- हिमांशी बाबरा
मेरी आँखें ही सहारा नहीं देतीं वर्ना
चाहती हूँ तिरी तस्वीर बनाऊँ मैं भी
- हिमांशी बाबरा
मेरी दुनिया उजड़ गई इस में
तुम इसे हादिसा समझते हो
- हिमांशी बाबरा
जो हँसा है इत्तीफ़ाक़न तुम्हें देख कर मिरा मन
न इसे सितम समझना न इसे क़रार कहना
- हिमांशी बाबरा
आया है ख़ाली हाथ वो बाज़ार-ए-'इश्क़ से
यादें भी ला नहीं सका इतना ग़रीब था
- हिमांशी बाबरा
तो दोस्तों उम्मीद करता हूँ कि आपको ये पोस्ट "Himanshi Babra Shayari Collection" बेहद पसंद आई होगी। मुझे कॉमेंट बॉक्स के ज़रिए अपनी पसंदीदा ग़ज़ल या शे'र ज़रूर बताएँ। अंत तक बने रहने के लिए शुक्रिया।
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