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छोटी बह्र पर ग़ज़ल

Chhoti behr par ghazal


दोस्तो जैसा कि हमने शायरी की 32 प्रचलित बहरों में देखा कि शे'र कहने के लिए हमारे पास छोटी से लेकर बहुत बड़ी बहरें भी हैं। मेरी राय है कि अगर आपने अभी-अभी लिखना शुरू किया है तो आपको न तो बहुत छोटी न ही बहुत बड़ी बह्र पर लिखना है। आप इनके बीच में आने वाली बहरें ले सकते हैं ताकि आपको अपने ख़याल ढालने में परेशानी न हो।  

आज हम जिस बह्र पर ग़ज़ल देखने वाले हैं वह बहुत छोटी है तो मैं शायरी शुरू करने वालों को इस बह्र पर ग़ज़ल कहने की राय नहीं दूँगा। फिर भी अगर आप कोशिश करना चाहें तो अच्छी बात है। बह्र है 122 122 122
आइए अब हम ग़ज़ल की और बढ़ते हैं।


छोटी बह्र पर ग़ज़ल

करो चाँद मेरे हवाले
कि हाथों में शब के हैं छाले


उधर आँधी ज़िद पर अड़ी है
इधर दीया भी घी उछाले


ख़याल आया जब आज तेरा
हुए साफ़ कुछ दिल के जाले


मेरी नज़रें तुझ पर ही होंगी
कहीं तू न आँखें चुरा ले


सजा क़ब्र पहले किसी की
फिर आ, ज़िंदगी की हवा ले


चराग़ और दिए ग़ैर थे, पर
थे इक ही हमारे उजाले


चहकती नहीं उसकी धड़कन
क़फ़स में जो दिल अपना पाले

- अच्युतम यादव 'अबतर'


उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी ये छोटी बह्र पर ग़ज़ल पसंद आई होगी। आप भी इसी तरह कोई छोटी बह्र लीजिए जिसपे आप लिख सकें और अपना कोई शे'र या ग़ज़ल मुकम्मल करें। 

धन्यवाद।


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