वाव-ए-अत्फ़ के नियम

उर्दू भाषा में जब दो शब्दों के बीच 'व', 'तथा', या 'और' शब्द का प्रयोग किया जाता है वहाँ वाव-ए-अत्फ़ का प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर दिल और दिमाग़ को दिल-ओ-दिमाग़, सुब्ह और शाम को सुब्ह-ओ-शाम भी कहा जा सकता है। 

इसे लिखते सुब्ह-ओ-शाम हैं मगर इसका उच्चारण 'सुब्हो-शाम' है। 

ध्यान रखें कि वाव-अत्फ़ लगाने पर शब्दों का स्थान नहीं बदलता है, जैसा कि इज़ाफ़त में होता है।

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वाव-ए-अत्फ़ की मात्रा गणना :

1. वाव अर्थात 'ओ' का मूल वज़्न 1 होता है मगर इज़ाफ़त की तरह ही यहाँ भी ज़रुरत पड़ने पर मात्रा उठाकर 2 भी ले सकते हैं।  

2. अगर पहले शब्द का आख़िरी अक्षर लघु है तो 'ओ' जुड़ने के बाद भी वो लघु ही रहता है लेकिन हम यहाँ पर मात्रा उठा कर उसे 2 भी कर सकते हैं। उदाहरण - रोज़-ओ शब का मूल वज़न होगा रो 2 ज़ो 1 शब 2 लेकिन ज़रुरत पड़ने पर हम मात्रा उठा कर रो 2 ज़ो 2 शब 2 भी कर सकते हैं।

3. अगर पहले शब्द के आख़िरी अक्षर के साथ कोई दीर्घ स्वर जुड़ा हुआ है तो 'ओ' जुड़ने पर भी उस में कोई बदलाव नहीं आता। ध्यान रखें इस जगह पर 'ओ' स्वतंत्र रूप से लिखा जाता है जो कि 1 या 2 किसी भी वज़्न में बाँधा जा सकता है। उदाहरण - पियाला-ओ-मीना का वज़्न 122 1 22 या मात्रा उठा कर 122 2 22 ले सकते हैं।   

नोट :

1. वाव-ए-अत्फ़ केवल उर्दू के भाषा व्याकरण में मान्य है हिंदी में नहीं इसलिए केवल उन्हीं शब्दों में अत्फ़ किया जा सकता है जो उर्दू, अरबी, और फ़ारसी मूल के हों।  

2. हिंदी और उर्दू के शब्द को मिला कर वाव अत्फ़ करना भी ग़लत व अस्वीकृत है।  उदाहरण के तौर पर दिल-ओ-दिमाग़ की जगह 'दिल-ओ-मश्तिष्क' ग़लत है। 

3. रही बात कि एक मिसरे में कितनी बार वाव-ए-अत्फ़ का इस्तेमाल कर सकते हैं तो उसकी संख्या है ज़ियादा से ज़ियादा तीन बार। हालाँकि कई शायरों ने तीन से भी ज़ियादा बार एक मिसरे में वाव-ए-अत्फ़ का इस्तेमाल किया है लेकिन तीन ही मान्य है। वैसे आम तौर पर तो एक से ज़ियादा वाव-ए-अत्फ़ इस्तेमाल नहीं होता है। 

दोस्तो, उम्मीद करता हूँ कि आपको वाव-ए-अत्फ़ के नियम समझ आ गए होंगे। मैंने पूरी कोशिश की है कि इस विषय से जुड़ी मेरे पास जितनी भी जानकारी है वो मैं इस ब्लॉग पोस्ट के ज़रिए आप से साझा कर सकूँ। इसी तरह शायरी की बारीकियाँ सीखने के लिए हमारी वेबसाइट के Blog section पर आते रहें। अंत तक बने रहने के लिए शुक्रिया।